उपासना स्थल अधिनियम पर चंद्रचूड़ का फैसला, धार्मिक विवादों के बीच पूर्व CJI आलोचनाओं में घिरे

Edited By Mahima,Updated: 03 Dec, 2024 03:48 PM

chandrachud s decision on places of worship act controversies

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व CJI डी.वाई. चंद्रचूड़ के 2023 के फैसले ने ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वे की अनुमति दी, जिससे धार्मिक स्थलों पर विवाद बढ़े हैं। AIMPLB और विपक्ष ने इस फैसले को 1991 के पूजा स्थल अधिनियम के खिलाफ बताया है। उपासना स्थल अधिनियम, 1991,...

नेशनल डेस्क: उत्तर प्रदेश के संभल जिले में स्थित शाही जामा मस्जिद और राजस्थान के अजमेर में स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह को लेकर हाल ही में विवाद उत्पन्न हुआ है। इन विवादों के बीच, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी.वाई. चंद्रचूड़ के 2023 के फैसले ने आलोचनाओं को जन्म दिया है। यह विवाद खासतौर पर उस फैसले के बाद बढ़ा, जिसमें ज्ञानवापी मस्जिद के परिसर में सर्वेक्षण की अनुमति दी गई थी।

2023 का सुप्रीम कोर्ट का फैसला
साल 2023 में, सुप्रीम कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वेक्षण करने की अनुमति दी थी। कोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को यह निर्देश दिया कि ज्ञानवापी परिसर का सर्वेक्षण "नॉन-इनवेसिव" (अवांछनीय हस्तक्षेप से बचते हुए) तकनीकों के जरिए किया जाए, ताकि यह पता चल सके कि क्या यह मस्जिद किसी मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी। इस फैसले में अदालत ने पूजा स्थल अधिनियम की धारा 3 को ध्यान में रखते हुए स्पष्ट किया कि किसी पूजा स्थल के धार्मिक स्वरूप का निर्धारण करने पर कोई रोक नहीं है, हालांकि धारा 4 के तहत 15 अगस्त, 1947 के बाद पूजा स्थलों के स्वरूप में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता। इस फैसले के बाद से धार्मिक स्थलों के सर्वेक्षण की प्रक्रिया को लेकर विवाद उठने लगे हैं। खासकर, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) और विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि जस्टिस चंद्रचूड़ का यह निर्णय पूजा स्थल अधिनियम (Places of Worship Act) के खिलाफ है, क्योंकि इसके बाद देशभर में अन्य धार्मिक स्थलों के सर्वेक्षण की मांग हो सकती है।

पासना स्थल अधिनियम (Places of Worship Act) क्या है?
उपासना स्थल अधिनियम, 1991, भारत सरकार द्वारा सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने और धार्मिक विवादों को टालने के उद्देश्य से लाया गया था। इसके तहत 15 अगस्त, 1947 के बाद देश में जो भी धार्मिक स्थल था, उसे उसी रूप में बरकरार रखना अनिवार्य है। इसका उद्देश्य विशेष रूप से उन स्थलों की रक्षा करना है जो सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, जैसे मस्जिदें, मंदिर, चर्च और गुरुद्वारे। यह कानून धार्मिक स्थलों के स्वरूप में किसी भी प्रकार के बदलाव को रोकता है। अगर कोई व्यक्ति किसी धार्मिक स्थल को बदलने की कोशिश करता है या उसे किसी अन्य धर्म के अनुसार स्थापित करने का प्रयास करता है, तो यह कानून के तहत अपराध माना जाता है। इसके उल्लंघन पर तीन साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है। हालांकि, इस कानून के तहत राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को बाहर रखा गया था, ताकि उसकी स्थिति पर कोई असर न पड़े।

शाही जामा मस्जिद विवाद
संभल जिले की शाही जामा मस्जिद हाल ही में विवादों में आ गई है। कुछ हिंदू संगठनों ने दावा किया कि इस मस्जिद के नीचे एक हिंदू मंदिर था। इन संगठनों का कहना है कि यह मस्जिद हरिहर मंदिर के स्थान पर बनाई गई थी। याचिकाकर्ताओं का दावा है कि 1528 में मीर हिंदू बेग द्वारा निर्मित इस मस्जिद का वास्तुकला अन्य मुग़ल मस्जिदों से भिन्न है, जो यह संकेत करता है कि यहां पहले कोई हिंदू मंदिर था। इसके बाद, इन संगठनों ने अदालत से इस स्थल के धार्मिक स्वरूप की जांच के लिए सर्वेक्षण की मांग की। कोर्ट ने इस मामले में सर्वेक्षण का आदेश दिया, जिससे उपासना स्थल अधिनियम और धार्मिक स्थलों के संरक्षण को लेकर कानूनी सवाल उठने लगे हैं। यह मामला अब जस्टिस चंद्रचूड़ के 2023 के फैसले से जुड़ा हुआ है, जिसे मुस्लिम संगठनों और कई राजनीतिक दलों ने चुनौती दी है।

राजनीतिक और धार्मिक प्रतिक्रियाएं
जस्टिस चंद्रचूड़ के फैसले पर विरोधी पक्ष ने तीखी आलोचना की है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने आरोप लगाया कि उनके फैसले ने धार्मिक स्थलों पर सर्वे के लिए रास्ता खोल दिया है। AIMPLB का कहना है कि इस फैसले के बाद देशभर में धार्मिक स्थलों को लेकर विवाद बढ़ सकते हैं। समाजवादी पार्टी के सांसद जिया-उर-रहमान बर्क और एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी ने भी इस फैसले पर सवाल उठाए हैं। ओवैसी ने कहा कि जब 1991 का पूजा स्थल अधिनियम पहले से ही स्पष्ट रूप से कहता है कि धार्मिक स्थलों के स्वरूप में कोई बदलाव नहीं हो सकता, तो ऐसे सर्वेक्षणों का क्या मतलब है? इसके अलावा, संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भी 2022 में कहा था कि "हर मस्जिद में शिवलिंग देखने की जरूरत नहीं है", जिस पर भी आलोचनाएं की जा रही हैं। कई नेताओं ने इन सर्वेक्षणों को रोकने की अपील की है। उपासना स्थल अधिनियम, 1991, देश में धार्मिक स्थलों के स्वरूप को संरक्षित करने और सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने के लिए लाया गया था। हालांकि, जस्टिस चंद्रचूड़ का ज्ञानवापी मस्जिद पर दिया गया फैसला इस कानून से जुड़ी बहस को और तेज कर रहा है। यह देखा जाएगा कि आने वाले दिनों में क्या कोर्ट के फैसले और इस कानून के प्रभाव से अन्य धार्मिक स्थलों पर विवाद और सर्वेक्षण की प्रक्रिया बढ़ेगी या इसमें बदलाव होगा।

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