भारत में बदलता बाढ़ का नक्शा: अब राजस्थान से लेकर गुजरात तक, जलप्रलय ने बढ़ाई चिंता

Edited By Mahima,Updated: 09 Sep, 2024 12:29 PM

changing flood map in india now from rajasthan to gujarat

भारत में बाढ़ का परिदृश्य तेजी से बदल रहा है, और यह बदलाव देश के विभिन्न हिस्सों को प्रभावित कर रहा है। पहले जहां बाढ़ के खतरे से प्रभावित क्षेत्र मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार और उत्तर-पूर्वी राज्यों तक सीमित थे, अब राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र,...

नेशनल डेस्क: भारत में बाढ़ का परिदृश्य तेजी से बदल रहा है, और यह बदलाव देश के विभिन्न हिस्सों को प्रभावित कर रहा है। पहले जहां बाढ़ के खतरे से प्रभावित क्षेत्र मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार और उत्तर-पूर्वी राज्यों तक सीमित थे, अब राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना जैसे राज्य भी गंभीर बाढ़ की चपेट में आ गए हैं। यह परिवर्तन स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि बाढ़ का नक्शा अब बदल चुका है और इस नए परिदृश्य को देखते हुए सरकार को एक नया बाढ़ नक्शा तैयार करने की आवश्यकता है।

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पानी की कमी की समस्या 
हाल के वर्षों में भारत में मौसम में महत्वपूर्ण बदलाव हुए हैं। खासकर बाढ़ की घटनाओं में अचानक और अनपेक्षित वृद्धि देखी गई है। पहले जिन क्षेत्रों में सूखा और पानी की कमी की समस्या थी, अब वहां तेज बारिश और बाढ़ की समस्या उत्पन्न हो गई है। इसका मुख्य कारण बंगाल की खाड़ी और अरब सागर के ऊपर बन रहे चक्रवात, डिप्रेशन और लो प्रेशर एरिया हैं। इन चक्रवातों और डिप्रेशन की वजह से मौसम की स्थितियों में अत्यधिक बदलाव हो रहा है, जिससे बाढ़ की स्थिति बन रही है।

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बाढ़ का नया नक्शा
IPE Global और ESRI-India की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले दो दशकों में गुजरात के 80 प्रतिशत जिलों में बारिश की मात्रा और तीव्रता दोनों में वृद्धि देखी गई है। इस साल सौराष्ट्र क्षेत्र में आई बाढ़ ने इस नए बदलाव को स्पष्ट रूप से दिखाया है। रिपोर्ट के अनुसार, पहले देश में 110 जिले थे जो सूखे से बाढ़ की स्थिति में आ गए थे। अब, इस संख्या में वृद्धि हो गई है और कुल 149 जिले बाढ़ की समस्याओं का सामना कर रहे हैं। 

चरम मौसमी आपदाएँ का प्रभाव
NDMA (राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण) के अनुसार, बिहार, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, गुजरात, राजस्थान, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और असम के 60 प्रतिशत जिले साल में कम से कम एक बार चरम मौसमी आपदाओं का सामना करते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, 2036 तक देश की 147 करोड़ से अधिक आबादी इन चरम मौसमी आपदाओं से प्रभावित हो सकती है।

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मौसम की भविष्यवाणी करना अब बेहद कठिन 
1973 से 2023 तक की रिपोर्ट के अनुसार, चरम मौसम घटनाओं की भविष्यवाणी करना अब बेहद कठिन हो गया है। दिल्ली, गुजरात, तेलंगाना और राजस्थान की बाढ़, वायनाड में भूस्खलन, और इस साल की भयानक गर्मी जैसी घटनाएँ अचानक और अनपेक्षित हो रही हैं। असम का 90 प्रतिशत जिले, बिहार का 87 प्रतिशत जिले, ओडिशा का 75 प्रतिशत जिले, और आंध्र प्रदेश व तेलंगाना का 93 प्रतिशत जिले चरम बाढ़ की स्थिति का सामना कर सकते हैं। 

पहले सूखा पड़ता था, अब वहां बाढ़ की समस्या 
प्रमुख वैज्ञानिक अबिनाश मोहंती ने बताया कि अब गर्मी जमीन से बहकर समुद्र की ओर जा रही है, जिससे समुद्र की गर्मी में वृद्धि हो रही है और इसका प्रभाव मौसम पर पड़ रहा है। दक्षिण भारत के क्षेत्रों में, जैसे श्रीकाकुलम, कटक, गुंटूर और बिहार का पश्चिम चंपारण, जहां पहले सूखा पड़ता था, अब वहां बाढ़ की समस्या बढ़ रही है। यह बदलाव विशेष रूप से मैदानी इलाकों में अधिक स्पष्ट हो रहा है।

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मौसम के असामान्य बदलाव
मौसम के असामान्य बदलावों का असर साफ दिखाई दे रहा है। वायनाड में भूस्खलन, गुजरात में बाढ़, और उत्तराखंड के ओम पर्वत से बर्फ का गायब होना जैसे घटनाएँ इस बदलाव को स्पष्ट करती हैं। इस बार का मॉनसून भी असामान्य था; जून में कमजोर था, लेकिन सितंबर में इसकी तीव्रता और मात्रा दोनों में वृद्धि हो गई है। इसके अलावा, पूर्वी राज्यों में सूखा और गर्म दिनों की संख्या बढ़ गई है। मौसम विभाग के पूर्व वैज्ञानिक आनंद शर्मा का कहना है कि जलवायु परिवर्तन और बढ़ता तापमान इस तरह के मौसमी बदलावों के लिए मुख्य जिम्मेदार हैं। अगर इस दिशा में प्रभावी कदम नहीं उठाए गए, तो भविष्य में चरम मौसम की घटनाएँ किसी भी स्थान पर और कभी भी हो सकती हैं, जो अत्यंत भयावह हो सकती हैं। इसलिए, सरकार और संबंधित एजेंसियों को इस समस्या से निपटने के लिए तत्काल और प्रभावी उपाय करने की आवश्यकता है। 

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