Edited By Pardeep,Updated: 19 Dec, 2024 04:08 AM
दिल्ली में साइबर फ्रॉड से जुड़ा एक दिलचस्प मामला सामने आया है। अशोक विहार इलाके में छोले-भटूरे बेचकर गुजर-बसर करने वाले एक व्यक्ति के बैंक खाते में महज 105 रुपये जमा होने के बाद उसका खाता फ्रीज कर दिया गया था।
नेशनल डेस्कः दिल्ली में साइबर फ्रॉड से जुड़ा एक दिलचस्प मामला सामने आया है। अशोक विहार इलाके में छोले-भटूरे बेचकर गुजर-बसर करने वाले एक व्यक्ति के बैंक खाते में महज 105 रुपये जमा होने के बाद उसका खाता फ्रीज कर दिया गया था। जब पीड़ित ने बैंक से संपर्क किया तो पता चला कि ये रकम साइबर फ्रॉड से जुड़ी हो सकती है। मामला इतना गंभीर हो गया कि व्यक्ति को कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा।
क्या था मामला?
याचिकाकर्ता, जो दिल्ली के अशोक विहार में ठेला लगाकर छोले-भटूरे बेचता है, ने बताया कि उसकी आजीविका पूरी तरह दैनिक कमाई पर निर्भर है। अक्टूबर में जब उसने अपने बैंक खाते से पैसे निकालने की कोशिश की तो पता चला कि खाता फ्रीज कर दिया गया है। बैंक ने जानकारी दी कि उसके खाते में 105 रुपये जमा हुए थे, जो साइबर धोखाधड़ी से जुड़े थे। यह जानने के बाद व्यक्ति ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर की।
हाई कोर्ट का फैसला
दिल्ली हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता को राहत देते हुए यूनियन बैंक ऑफ इंडिया को आदेश दिया कि वह खाते पर लगी रोक हटाए और इसे सामान्य रूप से चालू करे। जस्टिस मनोज जैन ने कहा, "याचिकाकर्ता की स्थिति को समझा जा सकता है। वह एक छोटा व्यवसायी है, जो अपने परिवार की आजीविका के लिए ठेले पर छोले-भटूरे बेचता है। उसके खिलाफ साइबर क्राइम में शामिल होने का कोई ठोस सबूत नहीं है।"
कोर्ट ने बैंक खाते पर प्रतिबंध को अनुचित ठहराते हुए कहा कि इस तरह की कार्रवाई व्यक्ति के आजीविका के अधिकार का उल्लंघन है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि 105 रुपये को छोड़कर खाते में जमा अन्य रकम को किसी भी धोखाधड़ी से नहीं जोड़ा जा सकता।
धोखाधड़ी का पूरा मामला
जांच एजेंसियों के मुताबिक, इस साइबर फ्रॉड से कुल 71,000 रुपये की धोखाधड़ी की गई थी। हालांकि, याचिकाकर्ता के खाते में केवल 105 रुपये ट्रांसफर किए गए। कोर्ट ने बैंक से कहा कि वह जांच एजेंसी के साथ सहयोग करे और इस मामले में आवश्यक जानकारी प्रदान करे।
याचिकाकर्ता का बयान
याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि वह एक ईमानदार मेहनतकश है, जो रोजाना ठेले पर छोले-भटूरे बेचकर अपनी आजीविका कमाता है। उसने कभी किसी भी अवैध गतिविधि में भाग नहीं लिया और न ही उसे पता था कि उसके खाते में जमा 105 रुपये साइबर फ्रॉड से जुड़े थे।
महत्वपूर्ण पहलू
- कोर्ट का तर्क: किसी भी व्यक्ति को उसकी आजीविका के अधिकार से वंचित करना गैर-कानूनी है।
- बैंक की जिम्मेदारी: धोखाधड़ी की जांच एजेंसी को सहयोग करना, लेकिन निर्दोष खाताधारकों को अनावश्यक रूप से परेशान न करना।
- याचिकाकर्ता की स्थिति: रोज कमाने-खाने वाले व्यक्ति के लिए खाता फ्रीज करना अनुचित और अमानवीय है।
न्यायालय के आदेश का महत्व
यह फैसला उन लोगों के लिए मिसाल बन सकता है जो साइबर धोखाधड़ी में अनजाने में फंस जाते हैं। हाई कोर्ट ने इस मामले में न केवल याचिकाकर्ता के अधिकारों की रक्षा की, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया कि जांच एजेंसियां अपने काम में पारदर्शिता और संवेदनशीलता बरतें।