Edited By rajesh kumar,Updated: 08 Feb, 2025 05:51 PM
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दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के नेतृत्व में 15 साल तक सरकार चलाने के बाद सत्ता से बाहर हुई कांग्रेस इस बार के विधानसभा चुनाव में कुल 70 में से सिर्फ तीन सीटों पर ही अपनी जमानत बचा सकी और लगातार तीसरी बार चुनाव में उसका खाता तक नहीं खुला।
नई दिल्ली: दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के नेतृत्व में 15 साल तक सरकार चलाने के बाद सत्ता से बाहर हुई कांग्रेस इस बार के विधानसभा चुनाव में कुल 70 में से सिर्फ तीन सीटों पर ही अपनी जमानत बचा सकी और लगातार तीसरी बार चुनाव में उसका खाता तक नहीं खुला। यह बात जरूर है कि देश की मुख्य विपक्षी पार्टी ने राष्ट्रीय राजधानी में पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले इस बार अपनी वोट हिस्सेदारी में दो प्रतिशत से अधिक की बढ़ोतरी की है। उसने करीब 6.4 प्रतिशत वोट हासिल किए, जबकि 2020 के विधानसभा चुनाव में उसे 4.26 प्रतिशत वोट मिले थे।
पांच साल बाद सत्ता में वापसी करेंगे- कांग्रेस
कांग्रेस ने अपने इस प्रदर्शन पर निराशा जताई और साथ ही कहा कि उसने 2025 के विधानसभा चुनाव में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है और पांच साल बाद सत्ता में वापसी करेगी। कांग्रेस के जो तीन उम्मीदवार दिल्ली में अपनी जमानत बचाने में सफल रहे उनमें प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष देवेंद्र यादव भी शामिल हैं जिन्हें 40 हजार से अधिक मत और 27 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले। वह तीसरे स्थान पर रहे। यदि किसी उम्मीदवार को डाले गए कुल वोटों का कम से कम छठा हिस्सा नहीं मिलता है तो जमानत स्वरूप उसके द्वारा निर्वाचन आयोग के समक्ष दी गई राशि जब्त हो जाती है। दिल्ली के कस्तूरबा नगर विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस उम्मीदवार अभिषेक दत्त न सिर्फ अपनी जमानत बचाने में सफल रहे, बल्कि दूसरे स्थान पर भी रहे। यह दिल्ली की इकलौती सीट हैं जहां कांग्रेस दूसरे पर स्थान पर रही।
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दत्त ने 27019 वोट हासिल किए और उन्हें भाजपा उम्मीदवार नीरज बसोया से 11 हजार से अधिक मतों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा। उन्हें करीब 32 प्रतिशत वोट हासिल हुए। नांगलोई जाट तीसरी ऐसी सीट है जहां कांग्रेस जमानत बचाने में सफल रही। यहां से पार्टी के उम्मीदवार और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के पूर्व सचिव रोहित चौधरी ने 31918 वोट और 20.1 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किया। वह तीसरे स्थान पर रहे। संदीप दीक्षित, अलका लांबा, कृष्णा तीरथ, मुदित अग्रवाल, हारून यूसुफ और राजेश लिलोठिया ऐसे नेता रहे जो अपनी जमानत बचाने में विफल रहे। पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र से चुनौती देने वाले पूर्व सांसद दीक्षित सिर्फ 4568 वोट हासिल कर सके और वह तीसरे स्थान पर रहे।
कालकाजी सीट से हारीं अलका लांबा
इस सीट पर भाजपा नेता प्रवेश वर्मा ने केजरीवाल को 4089 मतों के अंतर से पराजित किया। मुख्यमंत्री आतिशी के खिलाफ कालकाजी से चुनाव लड़ने वाली अखिल भारतीय महिला कांग्रेस की अध्यक्ष अलका लांबा को सिर्फ 4392 वोट मिले। मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार में महिला एवं बाल विकास मंत्री रहीं कृष्णा तीरथ को इस बार कांग्रेस ने पटेल नगर से टिकट दिया था, लेकिन उन्हें सिर्फ 4654 वोट से संतोष करना पड़ा और वह तीसरे स्थान पर रहीं। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अनुसूचित जाति प्रकोष्ठ के अध्यक्ष राजेश लिलोठिया को 11823 वोट मिले और वह तीसरे स्थान पर रहे। शीला दीक्षित सरकार में कई महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री रहे हारून यूसुफ बल्लीमारान से महज 13059 वोट ही हासिल कर सके और उनकी जमानत जब्त हो गई।
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कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता रागिनी नायक को वजीरपुर से 63,848 वोट, दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष चौधरी अनिल कुमार को 16549 वोट तथा दिल्ली नगर निगम के पूर्व महापौर फरहाद सूरी को जंगपुरा से 7350 वोट हासिल हुए। दिल्ली की राजनीति में 1998 से 2013 तक अपना सुनहरा दौर देखने वाली कांग्रेस के लिए यह लगातार तीसरा विधानसभा चुनाव था जिसमें उसे एक भी सीट नहीं मिली। इस चुनाव में 12 सीटें ऐसी हैं जहां आम आदमी पार्टी को भाजपा से जितने मतों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा उससे अधिक मत कांग्रेस को मिले हैं। ऐसी एक सीट नई दिल्ली हैं जहां आप के संयोजक और पूर्व मुख्यमंत्री केजरीवाल को भाजपा उम्मीदवार प्रवेश वर्मा से 4089 मतों के अंतर से हार का मुंह देखना पड़ा, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी संदीप दीक्षित को इस सीट पर 4568 वोट मिले। कांग्रेस 2015 और 2020 के विधानसभा चुनाव में भी अपना खाता नहीं खोल सकी थी।
1998 से 2013 तक रहा कांग्रेस का सर्वश्रेष्ठ दौर
दिल्ली में 1993 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 14 सीटें जीती थीं, जबकि भारतीय जनता पार्टी ने 49 सीटें जीतकर सरकार बनाई थी। कांग्रेस का सर्वश्रेष्ठ दौर 1998 से 2013 तक का रहा। शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस ने लगातार तीन चुनाव (1998, 2003, और 2008) जीते और दिल्ली में 15 साल तक सत्ता में रही। 1998 में कांग्रेस ने 52 सीटें, 2003 में 47 सीटें और 2008 में 43 सीटें हासिल कीं। आम आदमी पार्टी के उदय के बाद दिल्ली की राजनीति में कांग्रेस का पराभव शुरू हुआ और 2013 के चुनाव में उसे सिर्फ 8 सीटें मिलीं।
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क्या बोले जयराम रमेश?
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश कांग्रेस ने इस निराशाजनक प्रदर्शन के बारे में कहा, ‘‘कांग्रेस को बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद थी, हालांकि वोट शेयर बढ़ा है। कांग्रेस का प्रचार अभियान जोरदार था। विधानसभा में भले ही न हो लेकिन दिल्ली में इसकी उपस्थिति जरूर है।'' रमेश ने कहा कि यह ऐसी उपस्थिति है जिसे लाखों कांग्रेस कार्यकर्ताओं के निरंतर प्रयासों से चुनावी रूप से विस्तारित किया जाएगा तथा 203O में दिल्ली में एक बार फिर कांग्रेस सरकार बनेगी।