Edited By Mahima,Updated: 26 Nov, 2024 02:23 PM
जम्मू-कश्मीर में 26 नवंबर को पहली बार संविधान दिवस मनाया जाएगा, जो 1950 में भारतीय संविधान को अपनाने की याद में है। यह आयोजन ऐतिहासिक है क्योंकि 2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण के बाद राज्य का विशेष दर्जा समाप्त हो गया था। उपराज्यपाल मनोज सिन्हा...
नेशनल डेस्क: जम्मू-कश्मीर सरकार ने 26 नवंबर, 1950 को भारतीय संविधान को अपनाने की याद में इस वर्ष पहली बार "संविधान दिवस" मनाने का निर्णय लिया है। यह आयोजन जम्मू-कश्मीर के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, क्योंकि राज्य ने 1947 में भारत के साथ विलय के बाद अपने संविधान और झंडे को बनाए रखा था, जो अब 2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद समाप्त हो गए थे। इस समारोह का नेतृत्व श्रीनगर में जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा करेंगे। कार्यक्रम में राज्य सरकार के मंत्री, संविधान की प्रस्तावना पढ़ेंगे, जिसमें मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला, जो इस समय सऊदी अरब में उमराह के लिए गए हुए हैं, भी शामिल होते। हालांकि, उमर अब्दुल्ला इस अवसर पर मौजूद नहीं होंगे।
संविधान दिवस की ऐतिहासिकता और बदलाव
जम्मू-कश्मीर के लिए यह दिन ऐतिहासिक है, क्योंकि यह राज्य के संविधान और विशेष दर्जे की समाप्ति के बाद पहली बार संविधान दिवस मनाया जा रहा है। 2019 में केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 को समाप्त कर जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जे से वंचित कर दिया था और इसे केंद्र शासित प्रदेश में बदल दिया था। इससे पहले, जम्मू-कश्मीर भारतीय संविधान से अलग अपने राज्य संविधान के तहत चलता था। उमर अब्दुल्ला ने 16 अक्टूबर 2023 को एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए भारतीय संविधान के प्रति निष्ठा की शपथ ली थी। वह पहले जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने पद की शपथ लेते समय भारतीय संविधान की क़ीमत और उसे सम्मान देने का संकल्प लिया था। इससे पहले तक, राज्य के मुख्यमंत्री और अन्य अधिकारी राज्य के विशेष संविधान के प्रति निष्ठा की शपथ लेते थे।
पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री और संविधान
1947 में जम्मू-कश्मीर के भारत के साथ विलय के बाद, राज्य ने अपना अलग संविधान और ध्वज बनाए रखा था। राज्य के शासक को सदर-ए-रियासत (राष्ट्रपति) और सरकार के प्रमुख को प्रधानमंत्री के पद पर नियुक्त किया गया था। 1965 में इन उपाधियों को बदलकर मुख्यमंत्री और राज्यपाल का पद स्थापित किया गया था। इसके बावजूद, राज्य के संविधान और ध्वज का सम्मान बनाए रखा गया था।
संविधान दिवस के आयोजन के उद्देश्य
इस वर्ष का संविधान दिवस राज्य के नागरिकों को भारतीय संविधान के प्रति जागरूक करने और उनके अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में समझाने के उद्देश्य से मनाया जा रहा है। साथ ही यह समारोह जम्मू-कश्मीर के नवनिर्माण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। राज्य सरकार के अधिकारियों का मानना है कि संविधान दिवस का आयोजन जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को भारतीय संविधान के मूल्यों और सिद्धांतों से जोड़ने के साथ-साथ, उन्हें समानता, स्वतंत्रता और न्याय के अधिकारों से अवगत कराएगा। यह आयोजन विशेष रूप से उन बदलावों के बाद हुआ है, जब जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जे से वंचित किया गया और यह केंद्र शासित प्रदेश में बदल गया।
केंद्र शासित प्रदेश के रूप में बदलाव
2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण के बाद, जम्मू-कश्मीर ने अपने विशेष राज्य दर्जे को खो दिया था। साथ ही, इसे लद्दाख के साथ दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया गया था। इस बदलाव ने राज्य के प्रशासनिक ढांचे, कानून व्यवस्था और नागरिक अधिकारों में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन किए हैं। ऐसे में संविधान दिवस का आयोजन इस बदलाव को स्वीकार करने और भारतीय संविधान के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर के नए स्थान को पहचान देने का एक कदम है।
संविधान दिवस के कार्यक्रम की रूपरेखा
26 नवंबर के कार्यक्रम में उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के अलावा राज्य सरकार के मंत्री संविधान की प्रस्तावना का पाठ करेंगे। इसके साथ ही, जम्मू-कश्मीर के लोग इस दिन को एक राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाते हुए भारतीय संविधान के प्रति अपनी निष्ठा व्यक्त करेंगे। यह आयोजन जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के लिए भारतीय राज्य व्यवस्था और उसकी लोकतांत्रिक संरचना के महत्व को समझने का एक अवसर होगा। संविधान दिवस के इस ऐतिहासिक आयोजन को लेकर पूरे राज्य में उत्साह और जोश का माहौल है। जम्मू-कश्मीर में संविधान दिवस का यह आयोजन भारतीय संघ में जम्मू-कश्मीर की स्थिति के एक नए अध्याय की शुरुआत है। 2019 के बाद हुए बदलावों के बाद, यह पहली बार होगा जब जम्मू-कश्मीर में संविधान दिवस का आयोजन किया जाएगा, और यह राज्य के नागरिकों के लिए भारतीय संविधान के प्रति सम्मान और निष्ठा की भावना को और मजबूत करेगा।