Edited By Mahima,Updated: 28 Nov, 2024 04:27 PM
अजमेर दरगाह पर विवाद उठ रहा है, जिसमें दावा किया गया है कि दरगाह पहले एक प्राचीन शिव मंदिर के स्थान पर बनी थी। एडवोकेट योगेश सुरोलिया ने 1911 की किताब का हवाला देते हुए यह दावा किया। हिंदू सेना ने याचिका दायर की, जबकि मुस्लिम पक्ष इसे बेबुनियाद...
नेशनल डेस्क: राजस्थान के अजमेर शरीफ दरगाह को लेकर एक नया विवाद उठ खड़ा हुआ है। इस विवाद में यह दावा किया जा रहा है कि अजमेर दरगाह की जगह पहले एक प्राचीन शिव मंदिर था, जिसे तोड़कर दरगाह की नींव रखी गई। इस मामले में अदालत में याचिका दायर की गई है, और अदालत ने इस पर 20 दिसंबर 2024 को सुनवाई की तारीख तय की है। आइए जानते हैं इस विवाद के पीछे की पूरी कहानी।
क्या है याचिका में दावा?
एडवोकेट योगेश सुरोलिया ने अदालत में याचिका दायर कर यह दावा किया है कि अजमेर दरगाह वास्तव में एक प्राचीन शिव मंदिर के अवशेषों पर बनी है। सुरोलिया ने अपनी याचिका में बिलास सारदा की 1911 में प्रकाशित किताब "अजमेर: हिस्टोरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव" का हवाला दिया है। किताब के अनुसार, अजमेर दरगाह की स्थल पर पहले एक विशाल शिव मंदिर हुआ करता था, जिसे बाद में ध्वस्त कर दिया गया और उस स्थान पर दरगाह की नींव रखी गई। इस संदर्भ में, किताब में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि दरगाह का निर्माण शिव मंदिर के अवशेषों पर हुआ है।
कैसे बढ़ा यह विवाद?
यह विवाद इस साल सितंबर में तब शुरू हुआ जब हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने अदालत में इस मुद्दे को लेकर याचिका दायर की। गुप्ता ने भी यही दावा किया कि अजमेर दरगाह पहले शिव मंदिर का हिस्सा थी, और इसे तोड़ा गया था। हालांकि, इस याचिका पर पहले कोई सुनवाई नहीं हो सकी। अदालत ने याचिका पर आगे की सुनवाई करने का आदेश दिया और याचिकाकर्ताओं से 38 पन्नों का सबूत पेश करने को कहा। याचिकाकर्ताओं ने अदालत के सामने दस्तावेज़ पेश किए, जिन्हें देखकर अदालत ने याचिका स्वीकार कर ली और मामले की अगली सुनवाई 20 दिसंबर 2024 को तय कर दी है।
मुस्लिम पक्ष की राय
इस विवाद पर मुस्लिम पक्ष का कहना है कि हिंदू पक्ष का दावा बेबुनियाद है। अंजुमन मोइनिया फकीरा कमेटी के सचिव सय्यद सरवर चिश्ती ने कहा कि हिंदू पक्ष के आरोप पूरी तरह से निराधार हैं और इससे देश में सांप्रदायिक तनाव पैदा हो सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि अजमेर दरगाह मुस्लिम समुदाय के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है और यह मक्का और मदीना के बाद मुस्लिमों के लिए तीसरा सबसे पवित्र स्थान है। चिश्ती ने स्पष्ट किया कि इस तरह के दावे मुस्लिम समुदाय की भावनाओं को आहत कर सकते हैं, और दुनिया भर के मुसलमानों को ठेस पहुंचा सकते हैं। उन्होंने इसे एक सांप्रदायिक शांति को भंग करने की कोशिश बताया और कहा कि इस तरह के विवाद से विभाजन बढ़ सकता है।
अजमेर दरगाह का ऐतिहासिक महत्व
अजमेर दरगाह, ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह है, जो 12वीं सदी के एक महान सूफी संत थे। वे भारत में इस्लाम के प्रचारक थे और उनकी दरगाह को मुस्लिम समुदाय में अत्यधिक सम्मान प्राप्त है। अजमेर की दरगाह को मक्का और मदीना के बाद मुस्लिमों के लिए तीसरे सबसे पवित्र स्थल के रूप में माना जाता है। यहां हर साल लाखों श्रद्धालु आते हैं, और इसे एक प्रमुख तीर्थ स्थल के रूप में जाना जाता है।
20 दिसंबर को होगी अगली सुनवाई
अदालत ने इस मामले में आगामी 20 दिसंबर 2024 को सुनवाई की तारीख तय की है। याचिका में प्रस्तुत किए गए सबूतों की जांच के बाद ही अदालत इस विवाद पर अपना निर्णय सुनाएगी। इस मामले की सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों को अपने-अपने दावे और सबूत प्रस्तुत करने का अवसर मिलेगा। अजमेर दरगाह पर चल रहे इस विवाद ने देशभर में एक नया सांप्रदायिक मुद्दा पैदा कर दिया है। जहां एक पक्ष का दावा है कि यह स्थान पहले एक शिव मंदिर था, वहीं दूसरा पक्ष इसे बेबुनियाद और सांप्रदायिक शांति को नुकसान पहुंचाने वाला कदम मानता है। 20 दिसंबर को होने वाली सुनवाई इस विवाद का अगला महत्वपूर्ण मोड़ हो सकती है, और यह तय करेगी कि क्या यह विवाद आगे बढ़ेगा या इसका समाधान होगा।