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पश्चिम बंगाल: दलित परिवारों ने शिव मंदिर में किया प्रवेश, 300 वर्षों से जारी जाति आधारित भेदभाव का अंत

Edited By Pardeep,Updated: 12 Mar, 2025 09:49 PM

dalit families enter shiva temple ending 300 years caste based discrimination

पश्चिम बंगाल के एक ग्रामीण इलाके में 130 दलित परिवारों के प्रतिनिधियों ने लगभग तीन शताब्दियों से जारी जाति-आधारित भेदभाव की बेड़ियों को तोड़ते हुए बुधवार को पहली बार पूर्व बर्धमान जिले के गिधेश्वर शिव मंदिर के अंदर कदम रखा।

कोलकाता/कटवाः पश्चिम बंगाल के एक ग्रामीण इलाके में 130 दलित परिवारों के प्रतिनिधियों ने लगभग तीन शताब्दियों से जारी जाति-आधारित भेदभाव की बेड़ियों को तोड़ते हुए बुधवार को पहली बार पूर्व बर्धमान जिले के गिधेश्वर शिव मंदिर के अंदर कदम रखा। इसकी पुष्टि अधिकारियों ने की। 

जिले के कटवा उपखंड के गिधग्राम गांव के दासपारा क्षेत्र से दास परिवार के पांच सदस्यों का एक समूह पूर्वाह्न करीब 10 बजे मंदिर की सीढ़ियां चढ़ा, शिवलिंग पर दूध चढ़ाया और जलाभिषेक किया तथा बिना किसी बाधा के महादेव की पूजा की। इस समूह में चार महिलाएं और एक पुरुष शामिल था। इस दौरान कानून-व्यवस्था की किसी भी समस्या को रोकने के लिए मंदिर के आसपास स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों और स्थानीय थाने के कर्मियों को तैनात किया गया था।

मीडिया ने शनिवार को खबर दी थी कि कैसे दलित परिवार, जिनके उपनाम ‘दास' हैं, वे गिद्धेश्वर शिव मंदिर में पूजा करने के लिए बहुसंख्यक ग्रामीणों के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण लगभग 300 साल पहले हुआ था। 

इस संबंध में मीडिया ने बताया था कि जिन परिवारों ने 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के त्योहार के दौरान परंपरा को तोड़कर मंदिर में पूजा करने की योजना बनाई थी, उन्हें न केवल इस आधार पर मंदिर परिसर से भगा दिया गया कि वे ‘‘निम्न जाति'' से हैं, बल्कि मंदिर में पूजा करने की अपनी योजना को पूरा करने के लिए स्थानीय प्रशासन और पुलिस की मदद लेने के बाद उन्हें ग्रामीणों के एक बड़े वर्ग से आर्थिक अलगाव का भी सामना करना पड़ा। 

दिन की घटना से खुश और राहत महसूस कर रहे परिवारों ने प्रशासन और पुलिस को उनके ‘‘सक्रिय हस्तक्षेप एवं सहयोग'' के लिए धन्यवाद दिया, लेकिन इस बारे में अनिश्चितता व्यक्त की कि क्या कट्टरता को समाप्त करने का प्रयास लंबे समय तक चलेगा। संतोष दास नामक एक ग्रामीण ने कहा, ‘‘हम मंदिर में पूजा करने का अधिकार मिलने से बहुत खुश हैं। मैंने भगवान से सभी के कल्याण के लिए प्रार्थना की।'' उन्हें पहले मंदिर की सीढ़ियों पर पैर रखने से रोक दिया गया था। वहीं, एक अन्य ग्रामीण एककोरी दास ने कहा, ‘‘हमें स्थानीय पुलिस और प्रशासन से जबरदस्त समर्थन मिला, जिन पर हमने भरोसा जताया था।'' 

उन्होंने कहा, ‘‘प्रशासनिक दबाव में गांव के मुखिया इस व्यवस्था के लिए सहमत हो गए हैं। हमें देखना होगा कि पुलिस की तैनाती हटने के बाद भी मंदिर के दरवाजे हमारे लिए खुले रहते हैं या नहीं।'' ग्रामीणों ने पुष्टि की कि दास परिवारों से दूध की खरीद पर रोक बुधवार सुबह तक जारी रही, जिसे गांव से आर्थिक बहिष्कार के साधन के रूप में कुछ दिन पहले लागू किया गया था। एककोरी ने कहा, ‘‘पुलिस ने दूध खरीद केंद्रों को हमारे पालतू मवेशियों का दूध इकट्ठा करना शुरू करने का निर्देश दिया है। अगर आज शाम तक संग्रह फिर से शुरू नहीं होता है, तो हमें अधिकारियों को जानकारी देनी होगी।'' 

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