Edited By Ashutosh Chaubey,Updated: 12 Apr, 2025 07:45 PM
भारत की प्रतिष्ठित नृत्यांगना और कथक को नई दिशा देने वाली गुरु कुमुदिनी लाखिया का 12 अप्रैल की सुबह निधन हो गया। वे 94 वर्ष की थीं। अहमदाबाद स्थित उनके घर पर उन्होंने अंतिम सांस ली।
नेशनल डेस्क: भारत की प्रतिष्ठित नृत्यांगना और कथक को नई दिशा देने वाली गुरु कुमुदिनी लाखिया का 12 अप्रैल की सुबह निधन हो गया। वे 94 वर्ष की थीं। अहमदाबाद स्थित उनके घर पर उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन से भारतीय शास्त्रीय नृत्य जगत में शोक की लहर है। उन्होंने कथक को मंच पर एक नया स्वरूप, सोच और सौंदर्य दिया था। कुमुदिनी लाखिया का निधन 12 अप्रैल को सुबह लगभग 6 से 6:30 बजे के बीच हुआ। यह जानकारी उनके संस्थान ‘कदम्ब सेंटर फॉर डांस’ की एडमिनिस्ट्रेटर पारुल ठाकुर ने बीबीसी गुजराती से बातचीत में दी। उनका पार्थिव शरीर उनके अहमदाबाद स्थित निवास पर अंतिम दर्शन के लिए रखा गया है। उनकी अंतिम यात्रा दोपहर 1 बजे उनके आवास से निकलेगी।
पद्म विभूषण से हुई थीं सम्मानित
इस वर्ष 2024 में भारत सरकार ने उन्हें देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से नवाजा था। यह उनके जीवन भर के योगदान और भारतीय नृत्य को दिए गए नवाचारों की पहचान है। इससे पहले उन्हें 2010 में पद्म भूषण और 1987 में पद्मश्री से सम्मानित किया जा चुका है। उनके सम्मान केवल पुरस्कारों में नहीं बल्कि उनके शिष्यों, रचनाओं और देश-विदेश में फैले कथक प्रेमियों के दिलों में हैं।
‘कदम्ब’ की स्थापना और नृत्य में नवाचार
कुमुदिनी लाखिया ने 1964 में अहमदाबाद में ‘कदम्ब सेंटर फॉर डांस’ की स्थापना की। इसकी शुरुआत उन्होंने कुछ स्टूडेंट्स के छोटे से समूह के साथ की थी। यह संस्था न सिर्फ एक प्रशिक्षण केंद्र बनी बल्कि कथक को प्रयोगात्मक रंग देने वाला मंच भी बन गई। उन्होंने कथक को पारंपरिक बंदिशों से निकाल कर सामाजिक, समकालीन और सौंदर्यपरक संदर्भों से जोड़ा।
कोरियोग्राफर के रूप में अलग पहचान
1973 में कुमुदिनी लाखिया ने कोरियोग्राफी की दुनिया में कदम रखा। उनके नृत्य-नाटकों और प्रस्तुतियों में कथक का परंपरागत स्वरूप तो था ही साथ ही उसमें आधुनिक रंग, विचार और अभिव्यक्ति भी होती थी। उन्होंने समूह नृत्य को कथक में खास पहचान दी, जिससे यह शास्त्रीय नृत्य जनमानस से अधिक जुड़ सका।
भारतीय सांस्कृतिक संस्थानों ने भी दिया सम्मान
कुमुदिनी लाखिया को उनके विशिष्ट योगदान के लिए भारत के कई सांस्कृतिक संगठनों ने सम्मानित किया। उन्होंने देश-विदेश में भारतीय शास्त्रीय नृत्य की एक सशक्त पहचान बनाई। उनकी कोरियोग्राफ की गई प्रस्तुतियाँ न केवल मंच पर सराही गईं बल्कि अकादमिक और कला जगत में भी चर्चा का विषय बनीं।
नृत्य की दुनिया में खालीपन
उनके जाने से भारतीय शास्त्रीय नृत्य के क्षेत्र में जो खालीपन आया है, उसे भर पाना मुश्किल है। उन्होंने जिस पीढ़ी को तैयार किया, वह उनके विचारों और शैली को आगे बढ़ा रही है लेकिन उनका करिश्मा, उनकी सोच और उनकी आत्मा अब सिर्फ स्मृतियों में ही ज़िंदा रहेगी।