Edited By Ashutosh Chaubey,Updated: 26 Apr, 2025 06:13 PM
ग्लोबल वार्मिंग का कहर अब दक्षिण एशिया के देशों पर साफ दिखने लगा है। भारत, पाकिस्तान, नेपाल और अन्य पड़ोसी देश एक बड़ी प्राकृतिक आपदा की ओर बढ़ रहे हैं। दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं।
नेशनल डेस्क: ग्लोबल वार्मिंग का कहर अब दक्षिण एशिया के देशों पर साफ दिखने लगा है। भारत, पाकिस्तान, नेपाल और अन्य पड़ोसी देश एक बड़ी प्राकृतिक आपदा की ओर बढ़ रहे हैं। दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (ICIMOD) की रिपोर्ट ने चेताया है कि हिंदूकुश हिमालय क्षेत्र के बर्फीले पहाड़ पिछले कुछ दशकों में खतरनाक रफ्तार से पिघले हैं और आने वाले समय में इसके विनाशकारी परिणाम सामने आ सकते हैं।
साउथ कोल ग्लेशियर पर सबसे बड़ा संकट
विशेषज्ञों के मुताबिक, माउंट एवरेस्ट का सबसे ऊंचा बर्फीला इलाका साउथ कोल ग्लेशियर बेहद तेजी से पिघल रहा है। पिछले 30 से 35 सालों में यह ग्लेशियर 54 मीटर से ज्यादा पतला हो गया है। प्रचंड गर्मी के कारण बर्फ की मोटी परतें लगातार खत्म हो रही हैं। अगर यही रफ्तार रही तो समुद्र के जलस्तर में भारी इजाफा हो सकता है और बाढ़ जैसी आपदाओं का खतरा बढ़ सकता है।
80 फीसदी तक सिकुड़ सकते हैं ग्लेशियर
हिंदूकुश हिमालय क्षेत्र आठ देशों तक फैला है। रिपोर्ट बताती है कि साल 2011 से 2020 के बीच यहां के बड़े ग्लेशियर पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा तेजी से पिघले हैं। अगर यही हाल रहा तो आने वाले वर्षों में ये ग्लेशियर अपने 80 फीसदी आकार तक खो सकते हैं। इससे न सिर्फ जल स्रोत खत्म होंगे बल्कि पर्यावरणीय असंतुलन भी गहरा सकता है।
याला ग्लेशियर भी खतरे में
नेपाल का याला ग्लेशियर भी गंभीर खतरे का सामना कर रहा है। पिछले 45 सालों में इसका एक तिहाई हिस्सा गायब हो चुका है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि ग्लोबल वार्मिंग पर लगाम नहीं लगी तो अगले 20 से 25 सालों में यह ग्लेशियर पूरी तरह समाप्त हो सकता है।
ग्लेशियर पिघलने का सीधा असर नदियों और समुद्र के जलस्तर पर पड़ रहा है। नेपाल के अलावा भारत के पहाड़ी और मैदानी इलाकों में भी इसका खतरनाक प्रभाव देखने को मिल सकता है। बड़े बांधों, पुलों और बिजली परियोजनाओं को भी खतरा पैदा हो सकता है। अचानक आने वाली बाढ़ से लाखों लोगों का जीवन संकट में पड़ सकता है।
200 करोड़ लोगों पर जल संकट का खतरा
हिमालयी क्षेत्र गंगा, ब्रह्मपुत्र जैसी बड़ी नदियों का मुख्य स्रोत है। इन नदियों के पानी पर भारत, पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश समेत कई देशों की 200 करोड़ से ज्यादा आबादी निर्भर है। अगर ग्लेशियर तेजी से पिघले तो सिंचाई, पीने के पानी और बिजली उत्पादन पर गहरा असर पड़ेगा। इससे खाद्य संकट और आर्थिक समस्याएं भी खड़ी हो सकती हैं।
जानवरों और पौधों के लिए भी खतरा
रिपोर्ट में कहा गया है कि इंसानों के अलावा हिमालय के जीव-जंतु और वनस्पतियां भी इस बदलाव की मार झेल रही हैं। कई दुर्लभ प्रजातियां पहले ही विलुप्त होने के कगार पर हैं। अगर हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र बिगड़ता है तो इसका असर दुनियाभर के मौसम पर भी पड़ सकता है।
सिक्किम में तबाही का उदाहरण
सिक्किम में ऐसी तबाही का नजारा हाल ही में देखने को मिला था। अक्टूबर 2023 में साउथ लोनाक झील से अचानक पानी का तेज बहाव शुरू हुआ और 20 मीटर ऊंची लहर ने पूरी घाटी को तबाह कर दिया। इस हादसे में 55 से ज्यादा लोगों की जान चली गई थी और बड़े पैमाने पर संपत्ति का नुकसान हुआ था। यह घटना हिमालयी क्षेत्रों में पिघलते ग्लेशियरों के खतरे को साफ तौर पर उजागर करती है।