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दिल्ली की 12 सीटों पर बीजेपी की सियासी जंग, क्या पार्टी तोड़ेगी अपनी पुरानी हार का रिकार्ड?

Edited By Ashutosh Chaubey,Updated: 01 Feb, 2025 04:46 PM

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दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में भारतीय जनता पार्टी (BJP) अपनी पुरानी हार का हिसाब चुकता करने के लिए मैदान में है। लेकिन पार्टी के लिए सबसे बड़ा चुनौती इन 12 सीटों पर है, जहां BJP को लंबे समय से सफलता नहीं मिल पाई है। इनमें से कुछ सीटों पर तो बीजेपी...

नेशनल डेस्क: दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में भारतीय जनता पार्टी (BJP) अपनी पुरानी हार का हिसाब चुकता करने के लिए मैदान में है। लेकिन पार्टी के लिए सबसे बड़ा चुनौती इन 12 सीटों पर है, जहां BJP को लंबे समय से सफलता नहीं मिल पाई है। इनमें से कुछ सीटों पर तो बीजेपी को 1993 के बाद से कोई जीत हासिल नहीं हुई है। इन सीटों पर जीत पाने के लिए बीजेपी की रणनीतियों का बार-बार फेल होना पार्टी के लिए एक बड़ा सवाल बन चुका है।

आइए, जानते हैं दिल्ली की उन 12 सीटों के बारे में जिन पर बीजेपी की चुनावी रणनीति का सबसे बड़ा रोड़ा बना हुआ है। क्या इस बार बीजेपी इन सीटों पर अपनी हार का सिलसिला तोड़ पाएगी?

BJP के लिए बड़ी चुनौती, 12 सीटों पर लगातार हार

दिल्ली विधानसभा चुनाव के बाद से बीजेपी के लिए कुछ सीटें ऐसी बनी हुई हैं, जहां पार्टी को लंबे समय से जीत नहीं मिली है। 2008 के परिसीमन के बाद से बीजेपी को इन 12 सीटों पर कोई सफलता नहीं मिली। इनमें से 9 सीटें ऐसी हैं जिनपर बीजेपी 1993 के बाद से जीतने में असफल रही है। इन सीटों में मटिया महल, बल्लीमारान, अंबेडकर नगर, सीलमपुर, ओखला, सुल्तानपुर माजरा, मंगोलपुरी, जंगपुरा और देवली शामिल हैं। इनमें से कुछ सीटें अनुसूचित जाति (दलित) के लिए आरक्षित हैं, तो कुछ मुस्लिम बहुल इलाकों में आती हैं। इन सीटों पर BJP की रणनीतियों को सफल बनाने के लिए पार्टी ने नए तरीके अपनाए हैं, लेकिन अब तक सफलता की कोई ठोस उम्मीद नहीं जगी है।

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दलित और झुग्गी बस्तियों में बीजेपी की रणनीति

इन 12 सीटों में से 5 सीटें सुल्तानपुर माजरा, अंबेडकर नगर, देवली, मंगोलपुरी और कोंडली अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। इन सीटों पर झुग्गी बस्तियों की आबादी निर्णायक भूमिका निभाती है। इन बस्तियों में लगभग 20 लाख लोग रहते हैं, जो पहले कांग्रेस के समर्थक रहे थे, लेकिन अब आम आदमी पार्टी (AAP) ने अपनी योजनाओं के तहत इनका समर्थन हासिल किया है। बीजेपी इस बार दलित और झुग्गी बस्तियों के वोटरों को साधने के लिए पूरी ताकत लगा रही है। पार्टी के नेता घर-घर जाकर चुनाव प्रचार कर रहे हैं और झुग्गियों में 'प्रवास' कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं, जिसमें बीजेपी कार्यकर्ता बस्तियों में रुककर लोगों की समस्याओं को समझने की कोशिश कर रहे हैं। इसके अलावा बीजेपी ने दलित वोटों को अपनी ओर खींचने के लिए 55 दलित नेताओं को इन सीटों पर उम्मीदवार के रूप में उतारा है। पार्टी ने अलग-अलग जातियों से ताल्लुक रखने वाले नेताओं को टिकट दिया है, ताकि जातीय समीकरण को साधा जा सके। बीजेपी का मानना है कि इन सीटों पर जीत के लिए दलित और मुस्लिम वोटों का विभाजन अहम हो सकता है।

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नई दिल्ली सीट पर बीजेपी का बड़ा दाव

नई दिल्ली सीट इस चुनाव में सबसे चर्चित सीट बन चुकी है। यह सीट आम आदमी पार्टी (AAP) के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के लिए एक बड़ा चुनौती बन चुकी है। अरविंद केजरीवाल इस सीट से तीन बार जीत चुके हैं और इस बार भी चौथी बार जीत की उम्मीद में हैं। बीजेपी ने पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के बेटे प्रवेश वर्मा को इस सीट से मैदान में उतारा है, जबकि कांग्रेस ने शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित को अपना उम्मीदवार बनाया है। इस सीट पर खास बात यह है कि यहां मुस्लिम और ओबीसी मतदाताओं की तादाद ज्यादा है, और बीजेपी ने इस बार अपने उम्मीदवार के रूप में वाल्मिकी समुदाय के उम्मीदवार को टिकट दिया है। बीजेपी की पूरी कोशिश है कि वह हिंदू वोटों को एकजुट करके इस सीट पर जीत हासिल कर सके।

मुस्लिम बहुल सीटों पर बीजेपी की रणनीति

दिल्ली में मटिया महल, सीलमपुर, ओखला और बल्लीमारान सीटें मुस्लिम बहुल हैं। इनमें से ओखला सीट पर आम आदमी पार्टी के बड़े मुस्लिम चेहरे अमानतुल्लाह खान चुनावी मैदान में हैं। बीजेपी ने यहां मनीष चौधरी को उम्मीदवार बनाया है। इन सीटों पर बीजेपी की रणनीति हिंदू और मुस्लिम वोटों के बीच विभाजन को बढ़ाना है। इसके लिए पार्टी ने कई सांस्कृतिक कार्यक्रम और मंदिरों में पूजा पाठ आयोजित किए हैं, ताकि हिंदू वोटरों को एकजुट किया जा सके। बीजेपी का मानना है कि इस बार मुस्लिम वोटों के विभाजन से पार्टी को फायदा हो सकता है, और वह इन सीटों पर अच्छा प्रदर्शन कर सकती है।

बसपा का वोट और बीजेपी की उम्मीदें

दिल्ली में 2015 विधानसभा चुनावों के मुकाबले 2020 में बीजेपी का वोट शेयर करीब 6 फीसदी बढ़ा था। यह वृद्धि ज्यादातर सुरक्षित सीटों पर देखी गई थी। इन सीटों पर बसपा का वोट शेयर भी काफी प्रभावी था, लेकिन 2008 के बाद से पार्टी का प्रदर्शन गिरते हुए देखा गया है। अब बीजेपी ने उम्मीद जताई है कि इस चुनाव में बसपा के दलित वोट भी बीजेपी के पक्ष में जाएंगे, जिससे पार्टी को इन सीटों पर फायदा हो सकता है।

 

 

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