Delhi Election : दिल्ली में चुनावी इतिहास पर एक नजर, 2013 में आया था नया मोड़

Edited By Rahul Singh,Updated: 07 Jan, 2025 08:02 PM

delhi election 2025 a look at the electoral history of delhi

दिल्ली में पहली बार विधानसभा चुनाव 1951 को हुए थे। उस समय कुल 48 सीटों पर चुनाव हुए थे। इस चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने 39 सीटों पर जीत हासिल की और बहुमत प्राप्त किया। इसके बाद चौधरी ब्रह्मप्रकाश को दिल्ली का पहला मुख्यमंत्री बनाया गया, लेकिन उनका...

नैशनल डैस्क : दिल्ली में पहली बार विधानसभा चुनाव 1952 को हुए थे। उस समय कुल 48 सीटों पर चुनाव हुए, जिसमें कांग्रेस ने 39 सीटों पर जीत हासिल की और बहुमत प्राप्त किया। इसके बाद चौधरी ब्रह्मप्रकाश को दिल्ली का पहला मुख्यमंत्री बनाया गया, लेकिन उनका कार्यकाल विवादों में घिर गया। इसके बाद सरदार गुरमुख निहाल सिंह को दूसरा मुख्यमंत्री बनाया गया।

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1956 में विधानसभा और मंत्रिपरिषद भंग:
1956 में राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिशों के बाद दिल्ली की विधानसभा और मंत्रिपरिषद को भंग कर दिया गया। इसके बाद दिल्ली में केंद्र का सीधा शासन लागू किया गया। यह दिल्ली की राजनीति के लिए एक बड़ा बदलाव था और इसने दिल्ली के प्रशासनिक ढांचे को नया रूप दिया।

मेट्रोपॉलिटन काउंसिल का गठन (1966):
दिल्ली में लोकतांत्रिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए 1966 में दिल्ली प्रशासन अधिनियम लागू किया गया, जिसके तहत मेट्रोपॉलिटन काउंसिल का गठन हुआ। इस काउंसिल में 56 सदस्य चुने जाते थे, जबकि 5 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत होते थे। काउंसिल का काम दिल्ली के प्रशासन को संभालना था, लेकिन यह केवल सलाहकार भूमिका निभाती थी, क्योंकि इसके पास विधायी शक्तियां नहीं थीं।

मेट्रोपॉलिटन काउंसिल का कार्यकाल (1966-1990):
1966 से लेकर 1990 तक मेट्रोपॉलिटन काउंसिल दिल्ली के प्रशासन का संचालन करती रही। इस दौरान कई महत्वपूर्ण कार्यकारी पार्षद बने, जिनमें मीर मुश्ताक अहमद, विजय कुमार मल्होत्रा, केदार नाथ साहनी और जग प्रवेश चंद्र जैसे नेता शामिल थे। हालांकि, काउंसिल को विधायी शक्तियां नहीं थीं, जिससे इसका कार्यक्षेत्र सीमित था।

दिल्ली को फिर से विधानसभा कैसे मिली?
1987 में केंद्र सरकार ने सरकारिया समिति का गठन किया, जिसका उद्देश्य दिल्ली के प्रशासन से जुड़ी समस्याओं का समाधान ढूंढना था। समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह सिफारिश की कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता, लेकिन दिल्ली की जनता के मामलों को संभालने के लिए एक विधानसभा दी जा सकती है। इस सिफारिश को ध्यान में रखते हुए 1991 में संविधान के 69वें संशोधन को पारित किया गया, जिसके तहत दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) का विशेष दर्जा मिला और फिर से दिल्ली विधानसभा का गठन हुआ।

1993 में हुआ पहला विधानसभा चुनाव:
37 साल बाद 1993 में दिल्ली में विधानसभा चुनाव हुए। इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने 49 सीटों पर जीत हासिल की और मदन लाल खुराना को दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाया। हालांकि, यहां पर बीजेपी सरकार चलाने में विफल रही। उन्हें कम समय में 3 बार मुख्यमंत्री बदलने पड़े। 26 फरवरी 1996 को साहिब सिंह वर्मा को मुख्यमंत्री बना दिया गया, लेकिन 12 अक्तूबर 1998 को उनको हटा दिया गया और बीजेपी ने सुष्मा स्वराज को नया मुख्यमंत्री घोषित कर दिया। पार्टी के अंदर कार्यकाल के दौरान कलह जारी रही और फिर 1998 में सरकार फिर टूटी तो दोबारा हुए चुनावों में कांग्रेस ने जीत हासिल कर बीजेपी को झटका दे दिया। 

शीला दीक्षित लगातार 3 बार रहीं मुख्यमंत्री

शीला दीक्षित (कांग्रेस) ने तीन बार दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। उन्होंने 1998 से 2013 तक लगातार मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया और उनके कार्यकाल में दिल्ली में कई महत्वपूर्ण विकास कार्य हुए।

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2013 में आया था नया मोड़
दिल्ली में चुनावी इतिहास में एक बड़ा मोड़ 2013 में आया, जब आम आदमी पार्टी (AAP) ने अपनी शुरुआत की। यह पार्टी अरविंद केजरीवाल द्वारा 2012 में बनाई गई थी। 2013 के विधानसभा चुनाव में AAP ने धमाकेदार शुरुआत की और दिल्ली विधानसभा में 70 सीटों में से 28 सीटें जीतकर दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी। पार्टी ने इस स्थिति में कांग्रेस से समर्थन प्राप्त किया, जिसके बाद अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।

4. 2015 में AAP की ऐतिहासिक जीत
2015 में हुए विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की। AAP ने 70 में से 67 सीटों पर विजय प्राप्त की, जबकि भाजपा और कांग्रेस को बहुत कम सीटें मिलीं। यह एक निर्णायक जनादेश था, जिसने यह स्पष्ट कर दिया कि दिल्ली की जनता अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में विश्वास रखती थी। इस जीत के बाद, AAP ने दिल्ली में अपने शासन को मजबूत किया और कई जनहित योजनाओं की शुरुआत की।

PunjabKesari5. 2019 में फिर AAP भारी
दिल्ली में 2019 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने शानदार प्रदर्शन किया। दिल्ली की 7 लोकसभा सीटों में से BJP ने 6 सीटों पर जीत हासिल की। यह दिल्ली में BJP की बढ़ती हुई प्रभावी स्थिति का संकेत था। हालांकि, दिल्ली विधानसभा चुनाव में AAP ने फिर से 2020 में जीत हासिल की, जिससे दोनों प्रमुख पार्टियों के बीच एक दिलचस्प राजनीतिक संतुलन बना। आप ने 70 में से 62 सीटों पर जीत दर्ज की, जो एक जबरदस्त सफलता थी। बीजेपी को 8 सीटें मिलीं, जो 2015 में जीती गई 3 सीटों से बहुत अधिक थी, लेकिन फिर भी यह AAP के मुकाबले बहुत कम थी। कांग्रेस पार्टी ने इस चुनाव में कोई भी सीट नहीं जीती और उनका खाता भी नहीं खुला।

अब फिर भाजपा और AAP के बीच प्रतिस्पर्धा
दिल्ली में चुनावी राजनीति अब मुख्य रूप से भारतीय जनता पार्टी (BJP) और आम आदमी पार्टी (AAP) के बीच होती है। भाजपा, जो राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत पार्टी है, दिल्ली में भी प्रभावी रही है, जबकि AAP ने दिल्ली के स्थानीय मुद्दों पर अपनी पकड़ मजबूत की है और भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी छवि को आगे बढ़ाया है। दिल्ली के चुनाव अब पूरी तरह से इन दोनों दलों के बीच प्रतिस्पर्धा का रूप ले चुके हैं।  आप ने स्थानीय मुद्दों और विकास कार्यों पर जोर दिया, वहीं बीजेपी ने राष्ट्रीय सुरक्षा, शीश महल और हिंदुत्व जैसे मुद्दों को प्रमुख बनाया।

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