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दिल्ली हाईकोर्ट- 'गर्भावस्था से रेप साबित नहीं होता...', लूडो खेलने के बहाने महिला से रेप

Edited By Ashutosh Chaubey,Updated: 04 Apr, 2025 02:52 PM

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गर्भावस्था से दुष्कर्म सिद्ध नहीं होता…लूडो के बहाने युवती से रेप मामले के आरोपी को हाईकोर्ट ने किया बरीदिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में बलात्कार के आरोपी को बरी कर दिया। अदालत ने स्पष्ट किया कि केवल डीएनए टेस्ट रिपोर्ट से यह साबित नहीं...

नेशनल डेस्क: गर्भावस्था से दुष्कर्म सिद्ध नहीं होता…लूडो के बहाने युवती से रेप मामले के आरोपी को हाईकोर्ट ने किया बरीदिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में बलात्कार के आरोपी को बरी कर दिया। अदालत ने स्पष्ट किया कि केवल डीएनए टेस्ट रिपोर्ट से यह साबित नहीं किया जा सकता कि यौन संबंध सहमति के बिना बनाए गए थे। हाईकोर्ट ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत किसी भी अपराध को साबित करने के लिए सहमति के अभाव को प्रमाणित करना अनिवार्य है।

डीएनए टेस्ट से केवल पितृत्व सिद्ध, बलात्कार नहीं

दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि डीएनए टेस्ट यह तो साबित कर सकता है कि आरोपी ही नवजात शिशु का जैविक पिता है, लेकिन इससे यह नहीं साबित होता कि संबंध सहमति के बिना बनाए गए थे। न्यायमूर्ति अमित महाजन की अध्यक्षता में सुनवाई करते हुए कोर्ट ने अभियोजन पक्ष की दलीलों को कमजोर पाया और आरोपी को संदेह का लाभ देते हुए उसे बरी कर दिया।

‘अत्यधिक असंभव’ मामला, देरी से दर्ज हुई एफआईआर

हाईकोर्ट ने अभियोजन पक्ष की दलीलों को ‘अत्यधिक असंभव’ करार दिया। अदालत ने पाया कि महिला द्वारा दायर एफआईआर में देरी की गई थी, जिससे यह संदेह उत्पन्न होता है कि मामला वास्तविक है या नहीं। कोर्ट ने यह भी कहा कि समाज के दबाव में सहमति से बने संबंध को रेप का मामला बनाने की कोशिश की गई हो सकती है।

महिला के बयानों में विरोधाभास, गवाही पर उठे सवाल

कोर्ट ने पाया कि महिला के बयानों में कई विरोधाभास थे।

  • महिला ने बताया कि आरोपी ने उसे लूडो खेलने के बहाने अपने घर बुलाया और उसके साथ दुष्कर्म किया।

  • उसने दावा किया कि अक्टूबर-नवंबर 2017 में आखिरी बार दुष्कर्म हुआ था और बाद में वह गर्भवती हो गई।

  • महिला ने जनवरी 2018 में एफआईआर दर्ज कराई, लेकिन अदालत ने सवाल उठाया कि उसने तुरंत पुलिस को सूचना क्यों नहीं दी।

कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि महिला लगातार आरोपी के घर जाती रही और दोनों के बीच दोस्ती थी, तो यह संदेह पैदा करता है कि संबंध जबरदस्ती बनाए गए थे या नहीं।

चुप्पी को सहमति नहीं माना जा सकता, लेकिन साक्ष्य जरूरी

अदालत ने कहा कि किसी भी महिला की चुप्पी को सहमति नहीं माना जा सकता, लेकिन यह भी आवश्यक है कि अभियोजन पक्ष अपने दावों को पर्याप्त सबूतों से प्रमाणित करे। इस मामले में महिला की ओर से कोई ठोस चिकित्सा या फोरेंसिक प्रमाण पेश नहीं किया गया, जिससे रेप के आरोप को सही ठहराया जा सके।

पहले निचली अदालत ने दी थी 10 साल की सजा

इस मामले में 2022 में निचली अदालत ने आरोपी को दोषी मानते हुए 10 साल की सजा सुनाई थी। लेकिन आरोपी ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी और कहा कि दोनों के बीच सहमति से संबंध बने थे। हाईकोर्ट ने मामले की गहराई से जांच की और पाया कि अभियोजन पक्ष आरोपी पर लगे आरोपों को साबित करने में असफल रहा।

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