Edited By Mahima,Updated: 06 Jan, 2025 04:40 PM
गाजियाबाद के विद्यावती मुकुंदलाल गर्ल्स कॉलेज में 47वां रक्तदान मेला आयोजित किया गया, जिसमें कई दानवीरों ने अपने रक्त से अनजान लोगों की जिंदगी बचाने का कार्य किया। इन दानवीरों की प्रेरक कहानियां यह दर्शाती हैं कि रक्तदान न केवल जीवन बचाता है, बल्कि...
नेशनल डेस्क: रविवार को गाजियाबाद के विद्यावती मुकुंदलाल गर्ल्स कॉलेज में 47वां रक्तदान मेला आयोजित किया गया, जो एक अनूठी पहल है। इस मेले की शुरुआत करीब 50 साल पहले सेठ जयप्रकाश ने अपने पिता के जन्मदिन के अवसर पर की थी। सेठ जयप्रकाश का यह विचार था कि रक्तदान से ना केवल लोगों की जान बचाई जा सकती है, बल्कि यह एक समाजसेवी कार्य भी है। इस आयोजन में लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और अपने रक्त से दूसरों की जिंदगी को रोशन करने की कोशिश की। Aajtak.in ने इस रक्तदान मेले में भाग लेने वाले कुछ दानवीरों से बातचीत की, जिनमें से कई ने 60 से भी अधिक बार रक्तदान किया है, वहीं कुछ ऐसे भी हैं जिन्होंने अपनी आंखें तक दान कर दीं, ताकि किसी जरूरतमंद की दुनिया रोशन हो सके।
गाजियाबाद के 55 वर्षीय एडवोकेट संदीप गोयल ने अब तक 69 बार रक्तदान किया है। उनका कहना है कि पहली बार जब उन्होंने किसी जरूरतमंद को रक्तदान किया और उसकी जान बची, तो उन्हें भीतर से एक अनोखी शांति का अहसास हुआ। तभी से उन्होंने रक्तदान को अपनी नियमित आदत बना लिया। संदीप गोयल सिर्फ रक्तदान में ही नहीं, बल्कि नेत्रदान में भी विश्वास रखते हैं। उनका कहना है कि, "हमारा पूरा परिवार सात्विक जीवन जीता है ताकि हम स्वस्थ रहें और जरूरतमंदों की मदद कर सकें। मेरी दादी का स्वर्गवास हुआ तो मैंने उनके नेत्रदान की प्रक्रिया पूरी की और अब हमारी पूरी फैमिली इस रास्ते पर चल रही है।" संदीप के बेटे अभय गोयल भी रक्तदान में सक्रिय हैं और यह परिवार समाज सेवा को अपनी जिम्मेदारी मानता है।
35 वर्षीय पेशेवर कारपेंटर नितिन कुमार ने अब तक 8 बार रक्तदान किया है। उनका कहना है कि एक बार जब उनके पिता की तबियत बिगड़ी, तब अस्पताल से एक रक्तदाता का नंबर मिला, जिसने बिना किसी शोर-शराबे के रक्तदान किया। नितिन के अनुसार, "यह घटना मेरे लिए प्रेरणा बन गई, और तभी मैंने तय किया कि मैं भी रक्तदान करूंगा। मैं अपनी सेहत का खास ख्याल रखता हूं ताकि मेरा रक्त शुद्ध रहे।" वह यह भी कहते हैं कि रक्तदान से ही सच्ची खुशी मिलती है और यह एक बड़ा पुण्य कार्य है, जिससे न केवल मदद मिलती है, बल्कि आत्मिक संतुष्टि भी मिलती है।
52 वर्षीय मैथ्स टीचर संजीव शर्मा का मानना है कि रक्तदान किसी को दिखाने या श्रेय लेने के लिए नहीं किया जाना चाहिए। वह हमेशा गुप्त रूप से रक्तदान करते हैं और कभी भी रक्त प्राप्त करने वाले का नाम तक नहीं पूछते। उनका कहना है, "एक बार किसी लड़के के एक्सीडेंट होने की खबर व्हाट्सऐप ग्रुप में मिली। मैं अस्पताल पहुंचा और वहां जाकर रक्तदान किया। मैंने नाम नहीं पूछा, बस अपनी जिम्मेदारी निभाई।" संजीव जी का यह भी मानना है कि रक्तदान करना एक सामाजिक दायित्व है और वह हमेशा जरूरतमंदों की मदद के लिए तैयार रहते हैं।
24 वर्षीय चांद पिलखुआ में अपना बिजनेस करते हैं और उनका रक्तदान की ओर रुझान एक व्यक्तिगत घटना से हुआ। उन्होंने पहली बार अपने दोस्त की बहन की खराब हालत को देखकर रक्तदान किया। चांद बताते हैं, "उस समय मुझे एहसास हुआ कि रक्तदान से बड़ा कोई पुण्य का काम नहीं हो सकता। इसके बाद मैंने तय किया कि मैं नियमित रूप से रक्तदान करूंगा। अब तो मेरे फ्रेंड्स भी मेरे साथ रक्तदान करने आ गए हैं।" चांद का कहना है कि रक्तदान के बाद जो मानसिक शांति मिलती है, वह असाधारण होती है और यही उनकी प्रेरणा है।
54 वर्षीय अरविंद कुमार पेशे से बिजनेसमैन हैं और उन्होंने अपनी पहली बार रक्तदान की कहानी साझा की। वह बताते हैं कि जब वह 14 साल के थे, तब उनके पिता को हार्ट अटैक आया था और एम्स में ऑपरेशन के लिए रक्त की जरूरत थी। अरविंद ने अपनी उम्र को 18 साल बताकर रक्तदान किया और यह घटना उनके जीवन का टर्निंग प्वाइंट बनी। आज अरविंद के परिवार में उनकी बेटी उपासना अग्रवाल और भतीजी सुरभि अग्रवाल भी रक्तदान करने वाली दानी बन चुकी हैं।
इस रक्तदान मेला का आयोजन विद्यावती मुकुंदलाल गर्ल्स कॉलेज में किया गया। कॉलेज की कार्यवाहक प्राचार्या प्रो. रचना प्रसाद ने बताया कि इस कॉलेज की स्थापना सेठ जयप्रकाश ने अपनी बेटी नीलम की शिक्षा के लिए की थी, और आज यह कॉलेज लाखों लड़कियों की शिक्षा का स्तंभ बन चुका है। प्रो. रचना ने बताया कि रक्तदान मेला कॉलेज के छात्र-छात्राओं, शिक्षकों और स्थानीय लोगों के लिए एक महोत्सव की तरह मनाया जाता है। कॉलेज में रक्तदान का माहौल इतना उत्साहजनक है कि यह किसी मेडिकल कैंप से ज्यादा एक त्योहार जैसा लगता है।
कॉलेज की मीडिया प्रभारी अंजलि सिंह ने बताया कि, "हम इस मेला को खुशी-खुशी आयोजित करते हैं और यहां रक्तदान करने वाले सभी लोग उत्साह के साथ इस अभियान का हिस्सा बनते हैं।" मेला प्रभारी प्रो. शशि मलिक ने बताया कि इस शिविर में इंडियन रेड क्रॉस सोसाइटी और सरकारी एमएमजी हॉस्पिटल का सहयोग प्राप्त था, जिसमें एक अनुभवी टीम ने रक्तदान का आयोजन किया। इन सभी दानवीरों के अनुभव यह साबित करते हैं कि रक्तदान सिर्फ एक शारीरिक जरूरत नहीं, बल्कि यह एक सामाजिक कर्तव्य भी है। यह केवल जीवन बचाने का तरीका नहीं है, बल्कि यह एक सकारात्मक मानसिकता और समुदाय के लिए एक प्रेरणा भी है। दिल्ली-एनसीआर में ऐसे रक्तदान शिविरों के आयोजन से समाज में एक नई जागरूकता पैदा हो रही है, और लोग एक-दूसरे की मदद करने के लिए आगे आ रहे हैं। रक्तदान से न केवल किसी की जिंदगी बचाई जा सकती है, बल्कि इससे उस व्यक्ति को मानसिक शांति और संतुष्टि भी मिलती है। यह एक ऐसा दान है, जो किसी भी व्यक्ति की जिंदगी को सशक्त बना सकता है, और यही कारण है कि इन दानवीरों की कहानियां आज के समय में प्रेरणा का स्रोत बन चुकी हैं।