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गुजरात: अरबपति हीरा कारोबारी की 8 साल की बेटी हो गई संन्यासिनी, कभी न टीवी देखा- न रेस्टोरेंट गईं

Edited By Anu Malhotra,Updated: 19 Jan, 2023 10:26 AM

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हमारे देश की एक प्रचलित कृष्ण भक्तन मेवाड़ की रानी मीराबाई थी जिसने अपने प्रभु के प्रेम में अपना सारा राज ठुकरा दिया और वहीं अब एक और मीराबाई की तरह एक नन्ही बच्ची का अपने गुरूओं के प्रति प्यार देखने को मिला जिसने अपने खेलने कूदने की उम्र में जैन...

सूरत: हमारे देश की एक प्रचलित कृष्ण भक्तन मेवाड़ की रानी मीराबाई थी जिसने अपने प्रभु के प्रेम में अपना सारा राज-पाठ ठुकरा दिया और वहीं अब एक और मीराबाई की तरह एक नन्ही बच्ची का अपने गुरूओं के प्रति प्यार देखने को मिला जिसने अपने खेलने कूदने की उम्र में जैन धर्म ग्रहण कर संन्यासिनी बन गई।

दरअसल,   गुजरात के बड़े हीरा कारोबारी की 8 साल की बेटी साध्वी हो गई है. देवांशी संघवी पिछले हफ्ते तक अरबों की दौलत की वारिस थी. आठ साल की देवांशी ने तमाम सुख-साधनों को त्याग कर साध्वी हो जाने का फैसला किया. इसी हफ्ते चार दिन तक चले समारोह के बाद वह संन्यासिन हो गई. देवांशी संघवी सूरत के मशहूर हीरा कारोबारी परिवार संघवी एंड संस की वारिस हैं. डायमंड सिटी में उनके परिवार का बड़ा कारोबार है, जिसकी शुरुआत 1981 में हुई थी. 

भारतीय क्रेडिट एजेंसी आईसीरए के मुताबिक इस परिवार की संपत्ति पांच अरब रुपये से ज्यादा की है. परिवार की बच्ची आठ साल की देवांशी ने बुधवार को संन्यास आश्रम में प्रवेश किया. स्थानीय मीडिया में चार दिन चले इस समारोह की तस्वीरें भी छपी हैं. समारोह के आखिरी दिन देवांशी को हाथियों द्वारा खींचे जा रहे रथ में बिठाकर मंदिर में लाया गया. बचपन से ही शांत मंदिर में देवांशी ने अपने दुनियावी वस्त्र त्याग कर श्वेत सूती वस्त्र ग्रहण किए और इस तरह संन्यासी जीवन में प्रवेश किया. तब उसके बाल निकाले जा चुके थे. 

समारोह में मौजूद रहे एक व्यक्ति ने बताया कि देवांशी शुरू से ही शांत स्वभाव की बच्ची रही है और हमेशा मंदिरों व धार्मिक समारोहों में दिखाई देती थी. स्थानीय जैन समाज में देवांशी को उसकी सरलता और सादगी के लिए जाना जाता है. इस व्यक्ति ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया, वह ना तो बचपन से टीवी या फिल्में देखती थी ना मॉल या रेस्तराओं में जाती थी.

स्थानीय मीडिया के मुताबिक देवांशी के माता-पिता ने बताया कि वह बचपन से ही संन्यास की ओर उत्सुक थी और साध्वी हो जाने की उसमें बहुत तीव्र इच्छा थी. जैन साधू होने वालों में देवांशी अब तक के सबसे युवा लोगों में शामिल हो गई है. कठोर जीवन ट्विटर पर इस घटना की खासी चर्चा है और कुछ लोगों ने इतनी कम उम्र में संन्यास जैसा कदम उठाने को लेकर बच्चों की अपनी इच्छा होने पर आशंका भी जताई है. 

माना जाता है कि कुछ जैन परिवार अपने बच्चों को संन्यास लेने के लिए प्रेरित करते हैं क्योंकि वे मानते हैं कि इससे समाज में उनकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी. प्रदीप प्रभु नामक एक ट्विटर यूजर लिखते हैं, सिर्फ वयस्कों को जैन धर्म में संन्यास की अनुमति होनी चाहिए. आठ साल की देवांशी संघवी अपने फैसले के परिणामों को समझने के लिए बहुत छोटी है.” नेपाल में हर साल हजारों बच्चों को कौन कर रहा लापता जैन संन्यासी अपने कठिन अनुशासन के लिए जाने जाते हैं. कुछ संन्यासी तो अपना मुंह ढककर रखते हैं ताकि हवा के साथ उनके मुंह में सूक्ष्म जीव भी ना जाएं.

 जैन धर्म के अनुयायी भी बहुत अनुशासित जीवन जीने के लिए जाने जाते हैं. वे एकदम शाकाहारी खाना खाते हैं और कई लोग तो कठोर व्रत भी करते हैं, जिस दौरान कुछ लोगों की मौत हो जाती है. 2016 में हैदराबाद में 13 साल की एक बच्ची की मौत पर काफी हंगामा हुआ था. यह बच्ची एक प्रायश्चित के लिए दो महीने से व्रत पर थी. इस दौरान वह कोमा में चली गई और उसकी मौत हो गई. इस व्रत के दौरान उसे दिन में सिर्फ दो बार गर्म पानी पीने की इजाजत थी. पुलिस ने बच्ची के माता-पिता पर गैर-इरादतन हत्या का मुकदमा दर्ज किया था

 

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