Edited By Ashutosh Chaubey,Updated: 26 Jan, 2025 04:48 PM
हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया कि किसी का विवाह अस्वीकार करना या विवाह का विरोध करना भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 306 के तहत आत्महत्या के लिए उकसाने के समान नहीं हो सकता। यह टिप्पणी उस मामले पर की गई, जिसमें एक महिला पर...
नेशनल डेस्क: हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया कि किसी का विवाह अस्वीकार करना या विवाह का विरोध करना भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 306 के तहत आत्महत्या के लिए उकसाने के समान नहीं हो सकता। यह टिप्पणी उस मामले पर की गई, जिसमें एक महिला पर आरोप था कि उसने दूसरी महिला को आत्महत्या के लिए उकसाया था। मामला एक महिला के खिलाफ था, जिसे एक अन्य महिला की आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोपी बनाया गया था। आरोप था कि महिला ने अपने बेटे से विवाह करने से इनकार करने पर, मृतक महिला को अपमानजनक टिप्पणी की थी। मृतक महिला ने उस महिला के बेटे से प्रेम किया था, लेकिन आरोपी महिला ने शादी करने से मना कर दिया था, जिसके बाद मृतक ने आत्महत्या कर ली थी।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने आरोपपत्र को खारिज करते हुए कहा कि किसी भी व्यक्ति का विवाह अस्वीकार करना, आत्महत्या के लिए उकसाने के समान नहीं है। जस्टिस बीवी नागरत्ना और सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने यह टिप्पणी की और कहा कि इस मामले में आरोपों और गवाहों के बयान सही मानने के बावजूद, आरोपी के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं थे।
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मृतक का परिवार था रिश्ते से असहमत
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि मृतक के परिवार को इस रिश्ते से कोई सहमति नहीं थी और उन्हें इस रिश्ते से नाखुशी थी। इस स्थिति में, आरोपी महिला का विवाह का विरोध करना आत्महत्या के लिए उकसाने की स्थिति में नहीं आता। अदालत ने यह भी कहा कि मृतक से यह कहना कि "यदि वह अपने प्रेमी से शादी किए बिना नहीं रह सकती तो उसे जीवित नहीं रहना चाहिए" जैसी टिप्पणी को उकसावे की स्थिति में नहीं माना जा सकता।
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अदालत का दृष्टिकोण
अदालत ने यह भी कहा कि आरोपी महिला के कृत्य इतने अप्रत्यक्ष थे कि वे धारा 306 के तहत आत्महत्या के लिए उकसाने के अपराध में नहीं आते। अदालत ने इस तरह के मामलों में स्पष्ट किया कि किसी व्यक्ति के व्यक्तिगत कृत्य के कारण, किसी अन्य व्यक्ति को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप नहीं लगाया जा सकता, जब तक कि कोई ठोस और प्रत्यक्ष प्रमाण न हो।