Edited By Rohini Oberoi,Updated: 27 Feb, 2025 09:14 AM
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अब आपका दिल्ली से मुंबई पहुंचने का सपना सवा घंटे में पूरा हो जाएगा। भारत में हाइपरलूप ट्रैक के जरिए 1100 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से ट्रेनें चलाने की योजना पर तेजी से काम हो रहा है। हाल ही में आईआईटी मद्रास और भारतीय रेलवे के सहयोग से 422 मीटर लंबा...
नेशनल डेस्क। अब आपका दिल्ली से मुंबई पहुंचने का सपना सवा घंटे में पूरा हो जाएगा। भारत में हाइपरलूप ट्रैक के जरिए 1100 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से ट्रेनें चलाने की योजना पर तेजी से काम हो रहा है। हाल ही में आईआईटी मद्रास और भारतीय रेलवे के सहयोग से 422 मीटर लंबा हाइपरलूप टेस्ट ट्रैक तैयार किया गया है। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इस टेस्ट ट्रैक का वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर किया। इस सफलता के बाद सरकार अब 50 किलोमीटर लंबा कमर्शियल हाइपरलूप कॉरिडोर बनाने की तैयारी में है जो दुनिया का सबसे लंबा हाइपरलूप ट्रैक हो सकता है।
9 करोड़ की ग्रांट दी जा चुकी है
रेल मंत्री ने बताया कि इस हाइपरलूप प्रोजेक्ट के लिए IIT मद्रास को पहले दो बार 1 मिलियन डॉलर (करीब 9 करोड़ रुपये) की ग्रांट मिल चुकी है। अब तीसरी बार भी 1 मिलियन डॉलर की मदद दी जाएगी जिससे हाइपरलूप प्रोजेक्ट को और बेहतर तरीके से विकसित किया जा सकेगा। उन्होंने यह भी कहा कि जब हाइपरलूप ट्रैक का प्री-कमर्शियल मॉडल पूरी तरह तैयार हो जाएगा तब रेलवे अपना पहला कमर्शियल प्रोजेक्ट शुरू करेगा। वैष्णव ने यह बात एशिया की पहली ग्लोब हाइपरलूप कंपटीशन के समापन समारोह के दौरान कही।
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क्या है हाइपरलूप ट्रैक?
हाइपरलूप एक हाईटेक ट्रांसपोर्ट सिस्टम है जिसमें कम दबाव वाली ट्यूब के अंदर बहुत तेज गति से पॉड्स से यात्रा की जा सकती है। इस सिस्टम में 1,200 किलोमीटर प्रति घंटे तक की गति हासिल की जा सकती है। अगर यह तकनीक सफल होती है तो यह दो शहरों के बीच यात्रा के समय को काफी हद तक कम कर सकती है। उदाहरण के लिए दिल्ली से मुंबई का सफर हाइपरलूप के जरिए सिर्फ सवा से डेढ़ घंटे का हो सकता है।
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2024 में पूरा होगा पहला हाइपरलूप टेस्ट ट्रैक
रिपोर्ट के अनुसार भारतीय रेलवे इस तकनीक की उपयोगिता समझने के लिए एक कमर्शियल टेस्ट ट्रैक तैयार करेगा। दिसंबर 2024 तक IIT मद्रास द्वारा पहला सफल हाइपरलूप टेस्ट ट्रैक तैयार किया जाएगा जो आने वाले समय में इस तकनीक को विकसित करने का आधार बनेगा। हाइपरलूप ट्रैक का विचार सबसे पहले 1970 के दशक में स्विस प्रोफेसर मार्सेल जफर ने दिया था। इसके बाद 1992 में स्विसमेट्रो SA नामक कंपनी इस प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए बनाई गई लेकिन 2009 में इसे बंद कर दिया गया।
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कई कंपनियां हाइपरलूप टेक्नोलॉजी पर काम कर रही हैं
दुनियाभर में कई कंपनियां हाइपरलूप तकनीक पर काम कर रही हैं। इनमें वर्जिन हाइपरलूप अमेरिका के नेवादा में अपने सिस्टम का परीक्षण कर रही है। इसके अलावा कनाडा की ट्रांसपॉड कंपनी भी अपने डिजाइन को मान्यता दिलाने के लिए टेस्ट ट्रैक तैयार कर रही है। रेल मंत्रालय के आधिकारिक बयान के अनुसार IIT मद्रास और भारतीय रेलवे हाइपरलूप ट्रैक के अलावा वर्टिकल टेक-ऑफ और लैंडिंग व्हीकल्स (जो बिना रनवे के उड़ान भर सकते हैं) पर भी मिलकर काम करेंगे।
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वहीं अगर हाइपरलूप तकनीक सफल हो जाती है तो यह भारत में यात्रा के एक नए युग की शुरुआत हो सकती है जहां हाई स्पीड ट्रांसपोर्टेशन से यात्रियों का समय बचाया जा सकेगा। साथ ही यह तकनीक देश में परिवहन के एक नए और सुरक्षित विकल्प के रूप में सामने आ सकती है।