Edited By Mahima,Updated: 09 Jan, 2025 12:10 PM
एलन मस्क ने 2100 तक भारत और चीन की जनसंख्या में गिरावट पर चिंता जताई, जिसमें भारत की जनसंख्या 400 मिलियन और चीन की 731 मिलियन घट सकती है। मस्क ने इस बदलाव के वैश्विक आर्थिक और सामाजिक प्रभावों को रेखांकित किया। वहीं, नाइजीरिया की जनसंख्या में तेजी...
नेशनल डेस्क: अरबपति तकनीकी उद्यमी एलन मस्क ने हाल ही में एक गहरी चिंता व्यक्त की है, जिसमें उन्होंने अनुमान लगाया कि 2100 तक भारत और चीन की जनसंख्या में भारी गिरावट आ सकती है। इस मुद्दे पर मस्क ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक ग्राफ पोस्ट किया, जिसमें दुनिया के प्रमुख देशों की जनसंख्या में संभावित बदलाव दिखाए गए थे। मस्क ने इसे "मानवता के लिए सबसे बड़ा खतरा" बताया, जो दुनिया की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्थितियों को प्रभावित कर सकता है।
भारत और चीन में गिरती जनसंख्या: एक गंभीर चिंता
भारत की जनसंख्या में गिरावट
आज दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाला देश होने के बावजूद, भारत की जनसंख्या में आगामी दशकों में एक भारी गिरावट आ सकती है। मस्क के पोस्ट किए गए ग्राफ के अनुसार, 2100 तक भारत की जनसंख्या लगभग 1.1 बिलियन (110 करोड़) तक सीमित हो सकती है, जो वर्तमान जनसंख्या के मुकाबले लगभग 400 मिलियन (40 करोड़) की कमी को दर्शाता है। यह गिरावट विशेष रूप से भारत के लिए चिंताजनक हो सकती है, क्योंकि यहाँ की युवा जनसंख्या वर्तमान में देश के आर्थिक विकास की धुरी है। ऐसे में जनसंख्या में कमी आने से श्रमिक वर्ग में कमी हो सकती है, जिससे विकास की गति धीमी पड़ सकती है।
चीन में जनसंख्या में भारी कमी
चीन में भी मस्क ने जनसंख्या में गिरावट का अनुमान व्यक्त किया है। 2100 तक चीन की जनसंख्या लगभग 731.9 मिलियन (73.19 करोड़) तक पहुँच सकती है, जो वर्तमान जनसंख्या के मुकाबले 731 मिलियन की कमी को दर्शाता है। चीन में भी यह गिरावट एक बड़ी सामाजिक और आर्थिक चुनौती पेश कर सकती है, खासकर जब यह देश अपनी अर्थव्यवस्था और विकास के लिए एक विशाल श्रमिक वर्ग पर निर्भर है। जनसंख्या में गिरावट से श्रमिकों की कमी हो सकती है, जो चीन की उत्पादन क्षमता को प्रभावित कर सकती है।
नाइजीरिया का बढ़ता प्रभाव
वहीं, मस्क ने यह भी उल्लेख किया कि भविष्य में नाइजीरिया का प्रभाव तेजी से बढ़ सकता है। 2100 तक नाइजीरिया की जनसंख्या 790.1 मिलियन तक पहुँचने का अनुमान है, जिससे वह दुनिया का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश बन जाएगा। नाइजीरिया में fertility rate अधिक होने के कारण उसकी जनसंख्या में वृद्धि हो रही है। इसके विपरीत, अमेरिका की जनसंख्या में मामूली वृद्धि देखने को मिल सकती है, और वह चौथे स्थान पर बना रहेगा।
क्या है पाकिस्तान का भविष्य
पाकिस्तान में भी जनसंख्या वृद्धि के संदर्भ में महत्वपूर्ण बदलाव देखे जा सकते हैं। मस्क के अनुमान के अनुसार, पाकिस्तान की जनसंख्या में भी मामूली गिरावट देखने को मिल सकती है, हालांकि यह गिरावट भारत और चीन के मुकाबले कम हो सकती है। पाकिस्तान में fertility rate अब भी अपेक्षाकृत अधिक है, लेकिन जैसे-जैसे शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार होगा, यह दर घटने की संभावना है। पाकिस्तान के लिए यह एक चिंता का विषय हो सकता है, क्योंकि बढ़ती जनसंख्या देश के संसाधनों पर दबाव बना सकती है, जबकि जनसंख्या में गिरावट से सामाजिक और आर्थिक असंतुलन उत्पन्न हो सकता है।
जनसंख्या में गिरावट के कारण
जनसंख्या में गिरावट के कई कारण हो सकते हैं, जिनमें सबसे प्रमुख हैं:
1. fertility rate में कमी: दुनिया के अधिकांश विकसित देशों में fertility rate में गिरावट आ रही है। आर्थिक अवसरों के बढ़ने, महिलाओं के लिए बेहतर शिक्षा और करियर विकल्पों की वजह से परिवारों में औसतन कम बच्चे हो रहे हैं।
2. प्रवासन: आजकल लोग बेहतर जीवनयापन के लिए एक देश से दूसरे देश में प्रवास कर रहे हैं। यह प्रवासन प्रवृत्ति विशेष रूप से गरीब देशों से समृद्ध देशों की ओर देखी जा रही है, जिससे जनसंख्या असंतुलन हो रहा है।
3. बढ़ती उम्र की आबादी: दुनिया भर में वृद्ध लोगों की संख्या बढ़ रही है, जबकि युवा वर्ग की संख्या घट रही है। यह स्थिति जनसंख्या में गिरावट को और तेज कर सकती है, खासकर विकासशील देशों में, जहाँ जीवन प्रत्याशा बढ़ रही है, लेकिन fertility rate में कमी आ रही है।
4. स्वास्थ्य और शिक्षा में सुधार: स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के कारण जीवन प्रत्याशा बढ़ रही है, जबकि fertility rate कम हो रही है। इसके परिणामस्वरूप, वृद्ध जनसंख्या का अनुपात बढ़ रहा है और युवा जनसंख्या घट रही है।
जानिए क्या है विशेषज्ञों की राय
वाशिंगटन विश्वविद्यालय के 2020 के अध्ययन के अनुसार, भारत और चीन में जनसंख्या में गिरावट तेजी से हो सकती है, जो वैश्विक स्तर पर कई आर्थिक और सामाजिक चुनौतियाँ पैदा कर सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस गिरावट का असर श्रम बाजार, सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा प्रणालियों पर पड़ सकता है। एलन मस्क के इन अनुमानित आंकड़ों ने एक नई बहस छेड़ी है कि कैसे दुनिया भर में जनसंख्या में गिरावट और वृद्धावस्था का बढ़ता प्रभाव आने वाले दशकों में वैश्विक अर्थव्यवस्था और समाज को प्रभावित करेगा। यह स्थिति केवल विकासशील देशों के लिए ही नहीं, बल्कि विकसित देशों के लिए भी चुनौतीपूर्ण हो सकती है। क्या दुनिया इस नए वैश्विक जनसंख्या संतुलन के साथ तालमेल बिठा पाएगी? यह सवाल आने वाले समय में और भी महत्वपूर्ण हो जाएगा।