Edited By Parminder Kaur,Updated: 08 Mar, 2025 11:22 AM

भारतीय संस्कृति में महिलाओं के सशक्तिकरण के सिद्धांत को लाखों वर्षों से अपनाया गया है। हमारी पौराणिक कथाओं को देखें, तो सभी महत्त्वपूर्ण ज़िम्मेदारियाँ महिलाओं को दी गई हैं। देवी पुराण और देवी भागवतम में कई निदर्शन मिलते हैं- रक्षा मंत्रालय दुर्गा,...
नेशनल डेस्क. भारतीय संस्कृति में महिलाओं के सशक्तिकरण के सिद्धांत को लाखों वर्षों से अपनाया गया है। हमारी पौराणिक कथाओं को देखें, तो सभी महत्त्वपूर्ण ज़िम्मेदारियाँ महिलाओं को दी गई हैं। देवी पुराण और देवी भागवतम में कई निदर्शन मिलते हैं- रक्षा मंत्रालय दुर्गा, वित्त मंत्रालय लक्ष्मी और शिक्षा मंत्रालय सरस्वती को सौंपा गया है। हम अपने देश को 'भारत माता' कहते हैं -दुनिया में कोई अन्य राष्ट्र अपने देश को 'माता' नहीं कहता।
महिलाएँ हमें इस संसार में लाती हैं और हमें जीने की शिक्षा देती हैं। एक माँ ही हमारी पहली गुरु होती है, जो हमें जीवन का पहला पाठ सिखाती है। महिला समाज में कई रूपों में अपनी भूमिका निभाती है- एक पिता के लिए बेटी, भाई के लिए बहन, पुत्र के लिए माता होती है।
माताओं के लिए सुझाव
जब माताएँ अपने बच्चों को डाँटती हैं, तो वे अक्सर ग्लानि महसूस करती करती हैं। आप सोचती हैं, 'मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए' लेकिन यह समझने की आवश्यकता है कि बच्चों को डांटना गलत नहीं है। यह लगभग टीकाकरण की तरह है। यह आपके बच्चों को मजबूत बनाता है। यदि वे घर में कोई डांट नहीं सुनते हैं तो बाहर थोड़ा भी विरोध होने पर बिखर जाते हैं।
महिलाएँ जन्मजात शिक्षक
आपकी माँ आपकी पहली गुरु होती हैं। महिलाएँ अपने भाइयों, बेटों, पिताओं को सिखाती हैं। इस अर्थ में हर महिला एक शिक्षक है। आज कई महिलाएँ स्कूलों और कॉलेजों में शिक्षक के रूप में काम कर रही हैं क्योंकि उन्हें स्वाभाविक रूप से बच्चों से प्रेम होता है और वे उन्हें संभालना जानती हैं। यदि हम महिलाओं की भूमिका को देखें, तो यह कहना कठिन होगा कि वे क्या-क्या करती हैं, बल्कि यह कहना अधिक उचित होगा कि वे क्या नहीं करतीं। महिलाएँ समाज की रीढ़ होती हैं।
स्वयं की देखभाल भी आवश्यक
आज महिलाएँ घर, समाज और राष्ट्र की विभिन्न भूमिकाओं में महत्वपूर्ण योगदान दे रहीं हैं। लेकिन इन सब के बीच उन्हें अपने स्वास्थ्य और मानसिक शांति का भी ध्यान रखना चाहिए। अक्सर महिलाएँ अपनी भलाई की उपेक्षा कर देती हैं और अपनी जिम्मेदारियों में इतना खो जाती हैं कि वे स्वयं को ही भूल जाती हैं। इसका सीधा प्रभाव उनकी भावनात्मक स्थिति पर पड़ता है, जिससे वे तनाव, अवसाद का शिकार हो सकती हैं। इसलिए हर महिला को चाहिए कि वह अपने लिए भी समय निकाले, अपने मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य का ध्यान रखे और स्वयं को केवल एक जिम्मेदारी निभाने वाली नहीं, बल्कि एक सशक्त, आत्मनिर्भर और खुशहाल व्यक्ति के रूप में देखे।
स्वयं को समझे सशक्त
महिलाओं को स्वयं में सशक्त महसूस करना चाहिए और कभी भी स्वयं को पीड़ित नहीं समझना चाहिए। जब आप स्वयं को पीड़ित महसूस करती हैं, तो आप अपनी ऊर्जा, उत्साह और शक्ति खो देती हैं और एक संकुचित सोच में बंध जाती हैं। यदि आप स्वयं को अपराधी मानती हैं, तो आप कर्ता होने के अपराध बोध में फंस जाती हैं। आध्यात्मिक मार्ग वह है, जहाँ आप पीड़ित मानसिकता और अपराधी मानसिकता, दोनों से छुटकारा पा सकती हैं। इसलिए खुद को दोष देना बंद करें और अपनी प्रशंसा करना शुरू करें क्योंकि प्रशंसा करना एक ईश्वरीय गुण है।
समाज में बदलाव के लिए आगे बढ़ें
समाज में महिलाओं के हित में कुछ बदलाव लाने की आवश्यकता है लेकिन यह मत सोचें कि मैं एक महिला हूँ। इसलिए मेरे साथ भेदभाव हो रहा है। आप इसे बिना स्वयं को पीड़ित महसूस किए भी कर सकती हैं। यदि आपको ऐसा कहीं अन्याय लगता है और आप खड़ी होती हैं, तो कोई भी आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। आपके पास इतनी शक्ति है कि आप अपने अधिकारों को स्थापित कर सकती हैं।