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माता के इस मंदिर में 100 से लगातार जल रही है अखंड ज्योति, जानें चमत्कारी रहस्य के बारे में

Edited By Ashutosh Chaubey,Updated: 01 Apr, 2025 05:37 PM

eternal flame burning continuously for 100 years in this temple of maa

उत्तराखंड के देहरादून जिले के पास स्थित डाट काली मंदिर एक रहस्यमय और चमत्कारी स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। यहां की अखंड ज्योति जो लगातार 100 सालों से जल रही है, न केवल स्थानीय लोगों के लिए बल्कि विदेशी पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र रही है।

नेशनल डेस्क: उत्तराखंड के देहरादून जिले के पास स्थित डाट काली मंदिर एक रहस्यमय और चमत्कारी स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। यहां की अखंड ज्योति जो लगातार 100 सालों से जल रही है, न केवल स्थानीय लोगों के लिए बल्कि विदेशी पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र रही है। यह मंदिर अपनी मान्यताओं, चमत्कारी घटनाओं और ऐतिहासिक महत्व के कारण लोगों का ध्यान खींचता है। आइए, जानते हैं इस मंदिर से जुड़ी कुछ खास बातें और क्यों यह मंदिर इतना खास है। डाट काली मंदिर की स्थापना लगभग 219 साल पहले हुई थी। यह शिवालिक की पहाड़ियों में स्थित है और पहले इसे माता घाठेवाली के नाम से जाना जाता था। 1804 में इस मंदिर को देहरादून के पास स्थापित किया गया और उसी समय से माता को डाट काली के नाम से पुकारा जाने लगा। मंदिर की स्थापना के बाद यह क्षेत्र एक धार्मिक स्थल के रूप में स्थापित हो गया, जहां भक्त हर दिन माता के दर्शन के लिए आते हैं।

चमत्कारी घटनाएं और अंग्रेजों का अनुभव

डाट काली मंदिर का इतिहास न केवल धार्मिक है, बल्कि इसके साथ जुड़ी कुछ चमत्कारी घटनाएं भी हैं जो इस मंदिर को और भी रहस्यमय बना देती हैं। एक प्रसिद्ध घटना है जब अंग्रेजों द्वारा सहारनपुर रोड पर टनल का निर्माण किया जा रहा था। इस टनल के निर्माण में कई कठिनाइयाँ आ रही थीं। कारीगर जितनी बार मलबा हटाते, वह फिर से उसी स्थान पर भर जाता। इस समस्या से परेशान होकर अंग्रेज अधिकारियों ने कई प्रयास किए लेकिन कोई समाधान नहीं निकला। कहा जाता है कि उसी समय मंदिर की देवी घाठेवाली ने मंदिर के पुजारी को सपने में दर्शन दिए और टनल के पास मंदिर की स्थापना का निर्देश दिया। इसके बाद, महंत सुखबीर गुसैन ने 1804 में मंदिर को टनल के पास स्थापित किया। मंदिर स्थापित होते ही टनल का निर्माण कार्य बिना किसी रुकावट के पूरा हो गया। यह देखकर स्थानीय लोग और अंग्रेज अधिकारी भी चमत्कारी घटनाओं से हैरान रह गए।

डाट काली नाम क्यों पड़ा?

इस क्षेत्र में टनल को स्थानीय भाषा में "डाट" कहा जाता है, इसलिए जब माता घाठेवाली ने टनल के निर्माण में मदद की, तो उनका नाम डाट काली पड़ा। यह नाम आज भी मंदिर के साथ जुड़ा हुआ है और लोग माता को इसी नाम से पूजते हैं।

वाहन की देवी के रूप में डाट काली

डाट काली मंदिर को वाहन की देवी के रूप में भी पूजा जाता है। माना जाता है कि जो लोग यहां पूजा करके अपनी गाड़ी से यात्रा करते हैं, उन्हें रास्ते में कोई भी दुर्घटना नहीं होती। यह परंपरा आज भी जीवित है, जहां ड्राइवर और यात्री मंदिर के दर्शन करके अपने सफर की शुरुआत करते हैं। इसके साथ ही, यहां आने वाले भक्त अपनी नई गाड़ी की पूजा भी करते हैं, ताकि उनका वाहन और वे सुरक्षित रहें।

विशेष पूजा और मन्नतें

डाट काली मंदिर में विशेष पूजा का आयोजन नवरात्रि के दौरान होता है, खासकर चैत्र और शारदीय नवरात्रि में। इसके अलावा, हर शनिवार को भी विशेष पूजा की जाती है। यहां पर आने वाले भक्तों का विश्वास है कि मां डाट काली उनकी मन्नतें पूरी करती हैं। यहां नव विवाहित दंपत्तियों का भी आना जाता है, क्योंकि उन्हें विश्वास होता है कि इस मंदिर में माता के आशीर्वाद से उनका दांपत्य जीवन सुखी रहता है।

चढ़ावा और प्रसाद

डाट काली मंदिर में भक्त नारियल, चुनरी और अन्य पूजा सामग्री चढ़ाते हैं। यहां मिलने वाला प्रसाद श्रद्धालुओं के बीच बहुत ही लोकप्रिय है और इसे भक्त खुशी-खुशी ग्रहण करते हैं। प्रसाद को लेकर भक्तों का विश्वास है कि यह उन्हें मां की कृपा का अनुभव कराता है।


 

 

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