किसान अपने डेयरी फॉर्मों में दूध ही नहीं रसोई गैस और बिजली का भी कर रहे हैं उत्पादन

Edited By Mahima,Updated: 24 Jul, 2024 09:23 AM

farmers are not only producing milk but also cooking gas

कृषि और पशुपालन को ग्रामीण जीवन की रीढ़ माना जाता है। खासकर दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में किसान अब नए आयाम स्थापित कर रहे हैं।

नेशनल डेस्क: कृषि और पशुपालन को ग्रामीण जीवन की रीढ़ माना जाता है। खासकर दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में किसान अब नए आयाम स्थापित कर रहे हैं। देश के कई हिस्सों में किसान अपने डेयरी फॉर्मों में बायोगैस प्लांट लगाकर जहां बिजली और गैस का उत्पादन कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर उनकी यह पहल ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने में भी मददगार साबित होगी और गांव का पर्यावरण भी स्वच्छ रहेगा।

1,000 यूनिट बिजली और 330 किलो एलपीजी का उत्पादन
इसका सबसे अच्छा उदाहरण दिल्ली के दो किसान भाइयों का है। बायोगैस प्लांट से संदीप और मंदीप पर्यावरण संरक्षण के साथ स्वच्छता में सहयोग कर रहे हैं। संदीप सिंह बताते हैं कि फरीदाबाद, नजफगढ़ व बल्लभगढ़ समेत आसपास के जिले के किसानों से पशुओं का चारा आता है। उसके बदले वे अपने खाली वाहन में डेरी से सूखी और तरल जैविक खाद ले जाते हैं। उन्होंने बायोगैस प्लांट लगाकर न सिर्फ गोबर व चारे से नालियों व सीवर को जाम होने से बचाया है, बल्कि उससे गैस बनाकर बिजली और गैस मद में हर माह तीन से चार लाख रुपये की बचत कर अपनी डेरी को आत्मनिर्भर बनाया है।

इस प्लांट से उनके साथ 30 डेरियों के संचालक भी जुड़े हुए स्थिति यह है कि न सिर्फ उनकी, बल्कि आसपास के उन सभी 30 डेरियों का बिजली बिल शून्य हो गया है। एक रिपोर्ट में संदीप के हवाले से बताया गया है कि वर्ष 2022 में उनका प्लांट चालू हो गया था, जिससे अब तक गैस व बिजली मद में 72 लाख रुपये की सीधी बचत कर चुके हैं। इस प्लांट से प्रतिदिन 10 टन गोबर से 1,000 यूनिट बिजली और 330 किलो एलपीजी तैयार होती है, जिसे डेरी संचालकों को गोबर देने के बदले बांट दी जाती है।

पंजाब के किसान दिया गांव के हर घर को गैस कनैक्शन
इसी तरह पंजाब के रुपनगर के एक किसान गगनदीप सिंह एक डेयरी किसान है, जिनके फार्म पर करीब 150 गौवंश हैं। इन गौवंशों से ना सिर्फ दूध उत्पादन मिल रहा है, बल्कि गाय के गोबर से भी बढ़िया आमदनी हो रही है। गगनदीप सिंह ने डेयरी फार्म के साथ-साथ एक बायोगैस संयंत्र लगाया है, जिसमें गाय का गोबर इकट्ठा करके बायोगैस और जैविक खाद बनाई जा रही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि बायोगैस प्लांट से निकली गैस से आज पूरे गांव का चूल्हा जल रहा है।

वहीं बाकी बचे गोबर के अवशेष से जैविक खाद बनाकर किसानों को दिया जा रहा है। इस नवाचार का यह असर हुआ है कि आज पूरे गांव में किसी के घर रसोई गैस का सिंलेंडर नहीं आता, बल्कि बायोगैस प्लांट से निकले गैस से मुफ्त में खाना बन रहा है। गगनदीप सिंह ने अपने 150 गाय के डेयरी फार्म के साथ 140 क्यूबिक मीटर का अंडरग्राउंड बायोगैस प्लांट लगाया है, जिससे एक पाइपलाइन निकाल दी। इस पाइपलाइन से गांव के हर घर को बायोगैस का कनेक्शन दे दिया। अब इस पाइपलाइन कनेक्शन के जरिए हर रसोई को 6 से 7 घंटे रोजाना खाना बनाने के लिए बायोगैस मिल जाती है। यह गैस पूरी तरह मुफ्त में उपलब्ध करवाई जा रही है, जिससे गांव के हर घर में सिलेंडर का 800 से 1000 रुपये का खर्चा बच रहा है।

500 लीटर की टंकी में बायोगैस प्लांट
इसी तरह बरेली के एक पशुपालक प्रतीक बजाज भी हैं जिन्होने पानी की 500 लीटर की टंकी में एक बायोगैस प्लांट तैयार किया हुआ है। बरेली जिले से करीब 20 किमी दूर परदौली ब्लॉक में प्रतीक का डेयरी फार्म बना हुआ है। प्रतीक के फार्म में 30 गाय-भैंस है। प्रतीक बताते हैं कि इस प्लांट को लगाने के बाद सिलंडर की जरुरत नहीं पड़ती है। हर महीने के दो सिंलडर का खर्च भी बच जाता है और इसको बनाने में ज्यादा खर्चा भी नहीं आया। पहले गोबर से सिर्फ वर्मीकमोस्ट बनाते थे।

बायोगैस इसका मुख्य घटक हाइड्रो-कार्बन है, जो ज्वलनशील है और जिसे जलाने पर ताप और ऊर्जा मिलती है। बायोगैस का उत्पादन एक जैव-रासायनिक प्रक्रिया द्वारा होता है, जिसके तहत कुछ विशेष प्रकार के बैक्टीरिया जैविक कचरे को उपयोगी बायोगैस में बदला जाता है। चूंकि इस उपयोगी गैस का उत्पादन जैविक प्रक्रिया (बायोलॉजिकल प्रॉसेस) द्वारा होता है, इसलिए इसे जैविक गैस (बायोगैस) कहते हैं। गैस के साथ ही खाद भी बनती है। जानवरों के गोबर को प्लांट में डाला जाता है और इससे निकलने वाला वेस्ट खाद के तौर पर खेतों में उपयोग होता है।

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