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संकट में अन्नदाता ? भारत के किसान की कमाई, खर्च और कर्ज पर सामने आई चौंकाने वाली रिपोर्ट

Edited By Mahima,Updated: 06 Dec, 2024 03:17 PM

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NABARD की रिपोर्ट के अनुसार, 2021-22 में भारतीय किसान परिवारों की औसत आय ₹13,661 प्रति माह है, जिसमें से ₹11,710 खर्च होते हैं और केवल ₹1,951 बचत होती है। खेती से केवल 33% आय मिलती है, और 55.4% किसान परिवार कर्ज में डूबे हैं। किसानों को उनके फसलों...

नेशनल डेस्क:  भारत में कृषि, किसान और उनके मुद्दे सदियों से चर्चा का विषय रहे हैं, और हाल ही में किसानों की स्थिति को लेकर एक चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है, जिसने कृषि संकट की गंभीरता को एक बार फिर उजागर किया है। यह रिपोर्ट किसानों की आय, खर्च, कर्ज और खेती के हालात को लेकर कई अहम आंकड़े और खुलासे प्रस्तुत करती है, जो भारतीय कृषि नीति और किसान आंदोलन के संदर्भ में महत्वपूर्ण हैं। रिपोर्ट को नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चरल एंड रूरल डेवलपमेंट (NABARD) द्वारा तैयार किया गया है, और यह देश के 30 राज्यों के 710 जिलों में 1 लाख से अधिक परिवारों पर आधारित है।

किसान परिवारों की औसत आय
NABARD की रिपोर्ट के अनुसार, 2021-22 में भारतीय किसान परिवारों की औसत मासिक आय सिर्फ ₹13,661 रही। इनमें से लगभग ₹11,710 खर्च हो जाते हैं, जिससे किसान परिवार के पास केवल ₹1,951 बचत रह जाती है। यह बात इस बात को स्पष्ट करती है कि किसान परिवार की आय इतनी कम है कि उनका जीवन यापन काफी मुश्किल हो रहा है। अगर इसे रोज़ के हिसाब से देखें तो यह बचत मात्र ₹65 प्रतिदिन होती है। 

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि किसान परिवारों की कुल आय में खेती से जो हिस्सा आता है, वह सिर्फ 33% है, यानी औसतन ₹4,476 प्रति माह। इसका मतलब यह हुआ कि एक किसान परिवार खेती से हर दिन ₹150 भी नहीं कमा पा रहा है, जो कि किसी भी किसान के लिए बेहद निराशाजनक आंकड़ा है। खासतौर पर जब देखा जाए तो कृषि को किसानों की मुख्य आजीविका का स्रोत माना जाता है, लेकिन यह अब सिर्फ उनके लिए एक अस्तित्व की लड़ाई बनकर रह गया है।

खेती का खर्च भी बढ़ा
रिपोर्ट के अनुसार, कृषि परिवारों का खर्च गैर-कृषि परिवारों की तुलना में अधिक है। जहां गैर-कृषि परिवार का औसत मासिक खर्च ₹10,675 है, वहीं खेती करने वाले परिवारों का खर्च ₹11,710 प्रति माह है। इस आंकड़े से यह स्पष्ट हो जाता है कि किसान परिवारों को महंगाई का ज्यादा सामना करना पड़ता है। उनका खर्च बढ़ता जा रहा है, जबकि आय में कोई विशेष वृद्धि नहीं हो रही है। इससे किसानों की आर्थिक स्थिति और भी कमजोर हो रही है।

ट्रैक्टर और कृषि संसाधनों की कमी
भारत में यह मिथक फैलाया गया है कि अधिकांश किसान परिवारों के पास ट्रैक्टर होते हैं, खासकर पंजाब और हरियाणा के किसानों को लेकर जो एमएसपी की लीगल गारंटी की मांग कर रहे हैं। हालांकि, NABARD की रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है कि देश के सिर्फ 9.1% किसान परिवारों के पास ट्रैक्टर है। इसके मुकाबले, 61.3% किसान परिवारों के पास दुधारू पशु हैं, जो उनके कृषि कार्यों में सहायक होते हैं। रिपोर्ट यह भी बताती है कि 2021-22 में एक औसत किसान परिवार के पास सिर्फ 0.74 हेक्टेयर ज़मीन थी, जबकि 2016-17 में यह औसत 1.08 हेक्टेयर था। इस घटती जोत का सीधा असर किसानों की आय और उत्पादन पर पड़ रहा है। 

55.4% किसान परिवार कर्ज में डूबे
किसानों पर कर्ज का बोझ लगातार बढ़ रहा है, और यह स्थिति उनके लिए बेहद संकटपूर्ण बन चुकी है। NABARD की रिपोर्ट के अनुसार, देश के 55.4% कृषि परिवार कर्जदार हैं। इन परिवारों पर औसतन ₹91,231 का कर्ज है, जो उनके लिए एक और आर्थिक संकट का कारण बन रहा है। इसके अलावा, 23.4% किसान परिवार अब भी बैंकों से कर्ज नहीं लेते और वे निजी स्रोतों जैसे रिश्तेदारों और दोस्तों से पैसा उधार लेते हैं। इन परिवारों को साहूकारों से लोन लेने की जरूरत कम पड़ी है, लेकिन फिर भी उनके लिए कर्ज एक बड़ा बोझ बन चुका है।

किसान आंदोलन से क्या-क्या हुआ नुकसान
किसान आंदोलन के बीच यह सवाल भी उठा है कि भारतीय किसानों को उनके उत्पादों का उचित मूल्य नहीं मिल रहा, और यही कारण है कि वे कर्ज के जाल में फंसते जा रहे हैं। आर्गेनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (OECD) की रिपोर्ट के अनुसार, 2000 से 2016-17 के बीच भारतीय किसानों को उनके फसलों का उचित दाम न मिलने के कारण करीब ₹45 लाख करोड़ का नुकसान हुआ है। इस आंकड़े से यह साफ हो जाता है कि अगर किसानों को उनकी फसलों का उचित मूल्य मिलता, तो उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हो सकता था।

किसानों की समस्याओं पर उपराष्ट्रपति की टिप्पणी
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने हाल ही में किसानों की खराब स्थिति पर टिप्पणी की थी, और उनके बयानों ने यह साबित किया कि भारतीय कृषि नीति में कई खामियां हैं। उन्होंने कहा कि किसानों के प्रति सरकार का दृष्टिकोण स्पष्ट नहीं है और यह समय की मांग है कि कृषि संकट से निपटने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं। उनका यह बयान किसानों की समस्याओं को राजनीतिक नज़रिए से हटकर एक गंभीर आर्थिक और सामाजिक मुद्दा मानते हुए दिया गया था।

राजनीतिक वादे और किसानों का विश्वास टूटना
किसान आंदोलन में यह भी देखा गया है कि किसानों का विश्वास भाजपा और कांग्रेस दोनों से टूट चुका है। दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों ने किसानों से जो वादे किए थे, उन्हें पूरा नहीं किया। न ही उनकी आय में कोई खास बढ़ोतरी हुई और न ही उनके उत्पादों के दामों में कोई बदलाव आया। इस वजह से किसानों का आत्मविश्वास कमजोर हुआ है और वे लगातार अपनी समस्याओं का समाधान पाने के लिए सड़कों पर आंदोलन कर रहे हैं।NABARD की रिपोर्ट ने भारतीय किसानों की दर्दनाक स्थिति को उजागर किया है, और यह सवाल खड़ा किया है कि क्या वर्तमान कृषि नीतियों और सरकारी मदद से कृषि संकट का समाधान संभव है? किसानों की आय बढ़ाने, कर्ज मुक्त करने और उनकी फसलों के उचित दाम की गारंटी देने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।

सरकार को चाहिए कि वह किसानों के लिए एक समग्र नीति तैयार करे, जो उनके आर्थिक, सामाजिक और मानसिक स्वास्थ्य को सुधारने में मदद करे। कृषि एक ऐसा क्षेत्र है जो न केवल देश की अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह करोड़ों भारतीयों की आजीविका का भी मुख्य स्रोत है। अगर हमें भविष्य में कृषि संकट को हल करना है और किसानों को उनकी मेहनत का उचित मूल्य देना है, तो यह जरूरी है कि हम उनके लिए नीतियां बनाएं जो उनके जीवन स्तर को बेहतर बना सकें। तभी हम एक मजबूत और समृद्ध कृषि क्षेत्र की कल्पना कर सकते हैं।

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