Edited By Pardeep,Updated: 11 Mar, 2025 01:23 AM

लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के करीबी सहयोगी और इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के प्रमुख सैम पित्रोदा के खिलाफ कर्नाटक में एफआईआर दर्ज की गई है।
नेशनल डेस्कः लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के करीबी सहयोगी और इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के प्रमुख सैम पित्रोदा के खिलाफ कर्नाटक में एफआईआर दर्ज की गई है। उन पर आरोप है कि उनके एनजीओ, फाउंडेशन फॉर रिवाइटेलाइजेशन ऑफ लोकल हेल्थ ट्रेडिशन (FRLHT) ने कर्नाटक के वन विभाग की जमीन पर अवैध कब्जा किया। यह मामला तब सामने आया जब भाजपा नेता और एंटी बेंगलुरु करप्शन फोरम के अध्यक्ष रमेश एनआर ने 24 फरवरी को ईडी और लोकायुक्त से इस संबंध में शिकायत की थी।
शिकायत के बाद जांच प्रक्रिया शुरू हुई, और सोमवार को सैम पित्रोदा, उनके एनजीओ के एक साथी, वन विभाग के 4 अफसरों, और एक रिटायर्ड आईएएस अफसर के खिलाफ केस दर्ज किया गया है। आरोप है कि पित्रोदा के एनजीओ ने वन विभाग की जमीन पर अवैध तरीके से कब्जा किया, जबकि लीज की अवधि समाप्त हो चुकी थी।
पित्रोदा का बयान
शिकायत के बाद सैम पित्रोदा ने इस मामले पर अपनी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा, "मेरे पास भारत में कोई जमीन, घर या शेयर नहीं हैं। 1980 के दशक में राजीव गांधी के साथ और 2004 से 2014 तक डॉ. मनमोहन सिंह के साथ काम करने के दौरान मैंने कभी कोई वेतन नहीं लिया। मैंने अपनी 83 साल की जिंदगी में कभी भी भारत या किसी अन्य देश में न तो रिश्वत दी है और न ही ली है।"
आरोप और जांच
शिकायतकर्ता रमेश एनआर के अनुसार, FRLHT ने 1996 में कर्नाटक राज्य वन विभाग से औषधीय जड़ी-बूटियों के संरक्षण और रिसर्च के लिए रिजर्व फोरेस्ट एरिया की 12.35 एकड़ जमीन लीज पर मांगी थी। यह भूमि येलहंका के पास जरकबांडे कवल में स्थित थी, जिसे वन विभाग ने लीज पर दे दी थी। हालांकि, लीज की अवधि 2 दिसंबर 2011 को समाप्त हो गई, और इसे बढ़ाया नहीं गया।
रमेश का आरोप है कि जब लीज का समय समाप्त हो गया, तो इस भूमि को वापस वन विभाग को लौटाना चाहिए था, लेकिन विभाग ने इसे वापस लेने के लिए कोई कदम नहीं उठाया। इसके बावजूद, पित्रोदा और उनके एनजीओ ने पिछले 14 वर्षों से इस भूमि का अवैध कब्जा बनाए रखा।
कानूनी कार्रवाई
इस मामले में अब कानूनी जांच चल रही है, और एफआईआर दर्ज होने के बाद संबंधित अधिकारियों और व्यक्तियों से पूछताछ की जाएगी। वन विभाग के अधिकारियों पर भी आरोप है कि उन्होंने जानबूझकर इस भूमि को वापस लेने का प्रयास नहीं किया। कर्नाटक सरकार के इस मुद्दे को गंभीरता से लेकर उचित कार्रवाई करने की योजना है। यह मामला कर्नाटक में सरकारी भूमि के अवैध कब्जे और प्रशासनिक लापरवाही की ओर भी इशारा करता है, और आने वाले समय में इससे जुड़े और भी खुलासे हो सकते हैं।