Edited By Mahima,Updated: 18 Mar, 2025 09:42 AM

फ्रांस के एक नेता ने अमेरिका से 'स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी' को वापस करने की मांग की। अमेरिका ने जवाब में कहा कि अगर उसने द्वितीय विश्व युद्ध में फ्रांस की मदद नहीं की होती तो आज फ्रांस में जर्मन भाषा बोली जाती। यह टिप्पणी अमेरिकी भूमिका पर आधारित है, जब...
नेशनल डेस्क: हाल ही में, एक फ्रांसीसी नेता ने अमेरिका से प्रसिद्ध 'स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी' (स्वतंत्रता की प्रतिमा) को वापस करने की मांग की है, जिसे 1886 में फ्रांस ने अमेरिका को उपहार के रूप में दिया था। यह प्रतिमा न्यूयॉर्क शहर के हाडसन नदी के किनारे स्थित है और एक प्रतीक के रूप में अमेरिका के स्वतंत्रता और लोकतंत्र के आदर्शों को दर्शाती है। लेकिन इस मांग पर प्रतिक्रिया देते हुए अमेरिका ने कड़ा जवाब दिया है और इस विवाद में एक ऐतिहासिक संदर्भ को जोड़ते हुए कहा कि यदि अमेरिका ने द्वितीय विश्व युद्ध में फ्रांस की मदद नहीं की होती, तो आज फ्रांसीसी लोग जर्मन भाषा बोल रहे होते।
क्या है अमेरिका की प्रतिक्रिया
व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव, कैरोलिन लेविट ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी और कहा, "बिल्कुल नहीं। फ्रांसीसी नेता को यह याद रखना चाहिए कि आज अगर फ्रांस में लोग जर्मन नहीं बोल रहे हैं, तो इसके पीछे सिर्फ और सिर्फ अमेरिका का हाथ था।" लेविट ने यह बयान उस समय के ऐतिहासिक संदर्भ को ध्यान में रखते हुए दिया, जब अमेरिका ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान फ्रांस को नाजी जर्मनी से मुक्त कराया था। कैरोलिन लेविट ने कहा, "अमेरिका ने द्वितीय विश्व युद्ध में फ्रांस को बचाने के लिए अपनी जान की बाजी लगाई थी, और अगर वह मदद न करता, तो फ्रांस आज न केवल युद्ध हार चुका होता, बल्कि वहां की संस्कृति और भाषा भी जर्मनी के प्रभाव में होती।" यह प्रतिक्रिया अमेरिका द्वारा दिए गए कड़े जवाब का हिस्सा थी, जिसमें उन्होंने फ्रांस को यह याद दिलाया कि स्वतंत्रता की प्रतिमा एक उपहार था, और उसे वापस मांगने के बजाय, फ्रांस को अमेरिका का आभारी होना चाहिए।
नाजी जर्मनी ने यूरोप के अधिकांश हिस्से पर कर लिया था कब्जा
यह विवाद द्वितीय विश्व युद्ध से जुड़ा हुआ है, जब नाजी जर्मनी ने यूरोप के अधिकांश हिस्से पर कब्जा कर लिया था। 1940 में जर्मन सेना ने फ्रांस पर आक्रमण किया और पेरिस सहित पूरे देश के अधिकांश हिस्सों पर कब्जा कर लिया। फ्रांस की सेना ने नाजी जर्मनी के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था, और जर्मन सेना ने फ्रांस के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया था। उस समय फ्रांस में एक सहयोगी सरकार स्थापित की गई, जिसे जर्मनी ने समर्थन दिया था। लेकिन 1944 में, मित्र राष्ट्रों ने फ्रांस पर आक्रमण किया, और अमेरिकी सेना ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। अमेरिका ने नाजी जर्मनी से फ्रांस को मुक्त करने के लिए अपने सैनिकों का बलिदान किया था, जिसके परिणामस्वरूप फ्रांस को स्वतंत्रता मिली। यह घटनाक्रम न केवल फ्रांस की आज़ादी के लिए महत्वपूर्ण था, बल्कि यह अमेरिकी और फ्रांसीसी रिश्तों के बीच एक गहरा और स्थायी बंधन भी स्थापित कर गया।
अमेरिका ने यूरोपीय देशों के खिलाफ उठाए कई आर्थिक कदम
यह घटना तब सामने आई है जब अमेरिका और यूरोप के बीच के रिश्ते तनावपूर्ण हो गए हैं, खासकर जब से डोनाल्ड ट्रंप ने सत्ता संभाली थी। ट्रंप के समय में अमेरिका ने यूरोपीय देशों के खिलाफ कई आर्थिक कदम उठाए थे, जिसमें टैरिफ में बढ़ोतरी शामिल थी, जिससे अमेरिका और यूरोप के रिश्तों में तनाव बढ़ा था। इसके साथ ही, अमेरिका की विदेश नीति में बदलाव और यूरोपीय देशों के खिलाफ कठोर बयानबाजी ने रिश्तों में और भी खटास डाली थी। फ्रांस के नेता द्वारा स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी को वापस करने की मांग इस तनाव का एक नया पहलू है, जहां अब उपहारों और प्रतीकों को लेकर भी विवाद पैदा हो रहा है। यह अंतरराष्ट्रीय राजनीति के जटिल खेल को दर्शाता है, जहां किसी प्रतीकात्मक उपहार की भी अहमियत होती है और वह राष्ट्रों के बीच के रिश्तों की स्थिति को प्रभावित कर सकता है।