Edited By Mahima,Updated: 15 Jan, 2025 03:06 PM
प्रयागराज में 2025 के महाकुंभ की भव्यता और आधुनिक सुविधाओं के बीच, 1954 के पहले कुंभ मेला की सादगी और परंपरा को देखना दिलचस्प है। उस समय के मेले में साधारण व्यवस्थाएं थीं, लेकिन आज के महाकुंभ में VVIP मेहमानों के लिए बेहतरीन सुविधाएं और अत्याधुनिक...
नेशनल डेस्क: प्रयागराज में हर बार महाकुंभ का आयोजन एक ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व रखता है, लेकिन 2025 का महाकुंभ खास तौर पर चर्चा में है। इस वर्ष का कुंभ मेला अत्यधिक महत्व का है क्योंकि 144 साल बाद ऐसा ग्रह योग बन रहा है जो इसे इतिहास में दर्ज होने के योग्य बनाता है। हर 12 साल में एक सामान्य कुंभ मेला होता है, लेकिन 12 पूर्ण कुंभ के बाद महाकुंभ का आयोजन किया जाता है। इस बार कुंभ मेला में अत्याधुनिक सुविधाओं और व्यवस्थाओं के साथ-साथ खास तौर पर VVIP मेहमानों के लिए लग्जरी रिवर कॉटेज, आधुनिक टेंट, मोटरबोट्स, क्रूज जैसी सुविधाएं दी जा रही हैं।
सोशल मीडिया से लेकर न्यूज़ चैनलों तक, 2025 के महाकुंभ की तस्वीरें और वीडियो की धूम मची हुई है। मेले में आधुनिक तकनीक का प्रभाव साफ तौर पर दिख रहा है। वहीं दूसरी ओर, यह जानना भी दिलचस्प है कि जब भारत स्वतंत्र हुआ था, तब के पहले कुंभ मेला का आयोजन कैसा था? क्या उस समय की व्यवस्थाएं और माहौल आज के मुकाबले बिल्कुल अलग थे? इस सवाल का जवाब ढूंढते हुए, दूरदर्शन ने अपने इंस्टाग्राम पेज पर 1954 के कुंभ मेला के कुछ दृश्य साझा किए हैं, जो उस समय के महाकुंभ का सजीव चित्रण करते हैं।
1954 में हुआ था आज़ाद भारत का पहला कुंभ मेला
आज़ाद भारत में पहला कुंभ मेला 1954 में प्रयागराज (तत्कालीन इलाहाबाद) में आयोजित हुआ था। उस समय के कुंभ में करीब पांच लाख तीर्थयात्री पहले और आखिरी दिन मेला देखने पहुंचे थे। हालांकि, बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार उस वर्ष कुंभ मेले में कुल लगभग 1 करोड़ लोग पहुंचे थे। यह वह समय था जब कुंभ मेले में आधुनिकता का नामो-निशान नहीं था, और व्यवस्थाएं अपेक्षाकृत साधारण थीं। 1954 के कुंभ के दौरान, मेले की निगरानी और नियंत्रण के लिए पांच कंप्यूटर सेंटर और 30 इलेक्ट्रॉनिक डिस्प्ले बोर्ड लगाए गए थे, जो उस समय के हिसाब से अत्याधुनिक तकनीक मानी जाती थी। इसके अलावा, विभिन्न स्थानों पर लाउडस्पीकरों का जाल बिछाया गया था ताकि लोगों तक सूचनाएं पहुंचाई जा सकें। घायलों के इलाज के लिए विशेष प्राथमिक उपचार केंद्रों की व्यवस्था की गई थी और भटके हुए लोगों के बारे में लगातार घोषणाएं की जा रही थीं। इन सुविधाओं का उद्देश्य था कि मेले के दौरान श्रद्धालुओं को कोई भी समस्या न हो।
श्रद्धालुओं को किसी भी प्रकार की कठिनाई न हो
1954 में कुंभ मेले की सुरक्षा और व्यवस्थाओं की निगरानी करने के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत ने खुद मेला स्थल का निरीक्षण किया था। वे पुलिस अधिकारियों के साथ घोड़े पर सवार होकर मेले का निरीक्षण करते थे। इसके अलावा, वे नावों में सवार होकर घाटों का जायजा लेते थे, ताकि मेले की व्यवस्था को बेहतर किया जा सके और श्रद्धालुओं को किसी भी प्रकार की कठिनाई न हो। यह घटना इस बात का उदाहरण है कि उस समय भी भारतीय प्रशासन ने तीर्थयात्रियों की सुरक्षा और सुविधाओं को प्राथमिकता दी थी, भले ही सुविधाएं कम और साधारण थीं।
महाकुंभ एक विलासिता और आधुनिकता की मिसाल
आज जहां 2025 के महाकुंभ की रौनक देखने को मिल रही है, वहां आधुनिक तकनीक का प्रभाव हर जगह दिखाई दे रहा है। हर साल आयोजित होने वाले सामान्य कुंभ मेले से यह आयोजन काफी अलग है। VVIP मेहमानों के लिए बेहतरीन टेंट, रिवर कॉटेज, कंसर्ट हॉल, और तमाम सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं। यह सब आज के महाकुंभ को एक विलासिता और आधुनिकता की मिसाल बना देता है। वहीं, 1954 के कुंभ मेले की तस्वीरें हमें एक साधारण और पारंपरिक दृश्य दिखाती हैं, जिसमें लोगों ने अपनी आध्यात्मिक यात्रा को बड़े श्रद्धा और विश्वास के साथ पूरा किया। कुंभ मेले की इन दो अलग-अलग तस्वीरों के बीच का अंतर भारतीय संस्कृति और समय के साथ आए बदलावों को दर्शाता है। दोनों ही कुंभ मेले भारतीय परंपराओं और संस्कृति के प्रतीक रहे हैं, भले ही उनका रूप और व्यवस्था अलग-अलग रही हो।