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पुणे और सोलापुर में गुलेन बैरी सिंड्रोम का कहर, 100 से ज्यादा लोग हुए संक्रमित

Edited By Parminder Kaur,Updated: 27 Jan, 2025 10:42 AM

gbs wreaks havoc in pune and solapur more than 100 people infected

पुणे और सोलापुर में गुलेन बैरी सिंड्रोम (GBS) बीमारी ने चिंता बढ़ा दी है। पुणे में एक हफ्ते के अंदर 100 से ज्यादा लोग इस बीमारी का शिकार हो चुके हैं और 16 मरीज वेंटिलेटर पर हैं। वहीं, सोलापुर में GBS से एक मरीज की मौत भी हो गई है। हालांकि, मौत की...

नेशनल डेस्क. पुणे और सोलापुर में गुलेन बैरी सिंड्रोम (GBS) बीमारी ने चिंता बढ़ा दी है। पुणे में एक हफ्ते के अंदर 100 से ज्यादा लोग इस बीमारी का शिकार हो चुके हैं और 16 मरीज वेंटिलेटर पर हैं। वहीं, सोलापुर में GBS से एक मरीज की मौत भी हो गई है। हालांकि, मौत की पुष्टि पर आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन रिपोर्ट्स के अनुसार, पीड़ित को पुणे में संक्रमण हुआ था और बाद में वह सोलापुर गया था। ऐसे में यह जानना महत्वपूर्ण है कि गुलेन बैरी सिंड्रोम (GBS) क्या है, इसके लक्षण क्या हैं और इससे बचने के उपाय क्या हैं।

गुलेन बैरी सिंड्रोम (GBS) क्या है?

गुलेन बैरी सिंड्रोम एक ऑटोइम्यून न्यूरोलॉजिकल बीमारी है, जिसमें इम्यून सिस्टम शरीर के खुद के तंत्रिका तंत्र (नर्वस सिस्टम) पर हमला करता है। इसके कारण व्यक्ति को चलने-फिरने में परेशानी होती है और सांस लेने में भी समस्या आ सकती है। इस बीमारी का असर मुख्य रूप से पेरिफेरल नर्वस सिस्टम (जो शरीर के बाकी हिस्सों में नर्व्स होती हैं) पर पड़ता है, जबकि सेंट्रल नर्वस सिस्टम (ब्रेन और रीढ़ की हड्डी) प्रभावित नहीं होता।

गुलेन बैरी सिंड्रोम का इतिहास

गुलेन बैरी सिंड्रोम को फ्रांसीसी न्यूरोलॉजिस्ट जॉर्जेस गुलेन और जीन एलेक्जेंडर बैरी के नाम पर नामित किया गया था, जिन्होंने इस बीमारी पर 1916 में शोध किया था। इस बीमारी ने अमेरिका के राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट की जान भी ले ली थी। हालांकि, पहले उनकी मौत का कारण पोलियो बताया गया था, बाद में शोध से यह सामने आया कि वे गुलेन बैरी सिंड्रोम से पीड़ित थे।

गुलेन बैरी सिंड्रोम के लक्षण

गुलेन बैरी सिंड्रोम की शुरुआत अक्सर हाथों और पैरों में झुनझुनी, कमजोरी और दर्द से होती है। इसके लक्षण तेजी से बढ़ सकते हैं और लकवे का रूप ले सकते हैं। इसके प्रमुख लक्षण हैं:

हाथों, पैरों, टखनों या कलाई में झुनझुनी और कमजोरी।

चलने में समस्या, सीढ़ियां चढ़ने में परेशानी।

बोलने, चबाने या खाना निगलने में दिक्कत।

आंखों में डबल विजन या आंखों को हिलाने में कठिनाई।

मांसपेशियों में तेज दर्द।

पेशाब और मल त्याग में समस्या।

सांस लेने में कठिनाई।

यह बीमारी कुछ ही दिनों में गंभीर रूप ले सकती है और 2 हफ्तों के भीतर इसके लक्षण अपने चरम पर पहुंच सकते हैं।

गुलेन बैरी सिंड्रोम के प्रकार

गुलेन बैरी सिंड्रोम के मुख्य तीन प्रकार हैं:

AIDP (Acute Inflammatory Demyelinating Polyneuropathy): यह सबसे सामान्य प्रकार है, जो उत्तर अमेरिका और यूरोप में पाया जाता है। इसमें नर्व्स की परत (मायलिन) में सूजन होती है।

Miller Fisher Syndrome (MFS): इसमें सबसे पहले आंखों में जलन और दर्द होता है। यह सिंड्रोम मुख्य रूप से एशिया में पाया जाता है।

Acute Motor Axonal Neuropathy (AMAN): यह सिंड्रोम मुख्य रूप से चीन, जापान और मेक्सिको में देखा जाता है।

गुलेन बैरी सिंड्रोम के कारण

गुलेन बैरी सिंड्रोम का कारण पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है, लेकिन यह आमतौर पर किसी वायरल या बैक्टीरियल संक्रमण के बाद देखा जाता है। यह बीमारी अक्सर सांस और पाचन तंत्र के संक्रमण के बाद हो सकती है और कभी-कभी किसी गंभीर चोट या सर्जरी के बाद भी यह विकसित हो सकता है।

गुलेन बैरी सिंड्रोम से बचाव और इलाज

इस बीमारी का कोई स्थायी इलाज नहीं है, लेकिन इसके लक्षणों को नियंत्रित करने और रिकवरी की प्रक्रिया को तेज करने के लिए इलाज उपलब्ध है। इसके लिए कुछ प्रमुख उपचार विधियां हैं:

प्लाज्मा एक्सचेंज: इसमें रक्त से प्लाज्मा को निकालकर बदलने की प्रक्रिया होती है, जिससे शरीर से हानिकारक तत्वों को बाहर निकाला जाता है और तंत्रिका तंत्र को राहत मिलती है।

इम्यूनोग्लोबुलिन थेरेपी: इसमें शरीर के इम्यून सिस्टम को शांत करने के लिए विशेष एंटीबॉडी दिए जाते हैं, जो तंत्रिका कोशिकाओं को ज्यादा नुकसान से बचाते हैं।

इसके अलावा पेन किलर्स (दर्द निवारक दवाइयां) और फिजियोथेरेपी भी दी जाती है ताकि मरीज जल्दी ठीक हो सकें।

क्या यह खतरनाक है?

जी हां, यह बीमारी खतरनाक हो सकती है। विश्वभर में इस सिंड्रोम से प्रभावित 7.5% लोगों की मौत हो जाती है। हालांकि, यह बीमारी रेयर (दुर्लभ) होती है और हर साल एक लाख में से एक या दो लोग ही इससे प्रभावित होते हैं। इस बीमारी का इलाज अगर समय पर किया जाए तो लोग पूरी तरह से ठीक हो सकते हैं, लेकिन इलाज में देर होने पर यह जानलेवा भी साबित हो सकती है।

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