Edited By rajesh kumar,Updated: 31 Oct, 2024 05:12 PM
भारत, चीन और रूस जैसे देशों का ब्रिक्स+ समूह वैश्विक वस्तु निर्यात और आयात में अपनी हिस्सेदारी तेजी से बढ़ा रहा है और 2026 तक यह जी7 समूह से आगे निकल सकता है।
नई दिल्ली: भारत, चीन और रूस जैसे देशों का ब्रिक्स+ समूह वैश्विक वस्तु निर्यात और आयात में अपनी हिस्सेदारी तेजी से बढ़ा रहा है और 2026 तक यह जी7 समूह से आगे निकल सकता है। वित्तीय सलाहकार कंपनी ईवाई इंडिया ने ईवाई इकोनॉमी वाच के हालिया संस्करण में यह अनुमान जताया गया है। वैश्विक माल निर्यात में ब्रिक्स+ समूह की हिस्सेदारी 2000 में 10.7 प्रतिशत से 12.6 प्रतिशत बढ़कर 2023 में 23.3 प्रतिशत हो गई है।
दूसरी ओर, वैश्विक निर्यात में जी7 समूह की हिस्सेदारी इसी अवधि में 45.1 प्रतिशत से 16.2 प्रतिशत गिरकर 28.9 प्रतिशत रह गई है। इस अवधि के दौरान दुनिया के बाकी हिस्सों की हिस्सेदारी काफी हद तक स्थिर रही है और इसमें मामूली वृद्धि हुई है जो 44.2 प्रतिशत से बढ़कर 47.9 प्रतिशत हो गई है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इसका मतलब यह है कि मोटे तौर पर यह ब्रिक्स+ समूह है जिसने वैश्विक व्यापारिक निर्यात में हिस्सेदारी के मामले में जी7 समूह की जगह ले ली है। व्यापारिक आयात में हिस्सेदारी के मामले में भी यही पैटर्न दिखाई देता है। जबकि ब्रिक्स+ समूह की हिस्सेदारी 2000 में 7.2 प्रतिशत से बढ़कर 2023 में 18.9 प्रतिशत हो गई है, जी7 समूह की हिस्सेदारी 2000 में 49.8 प्रतिशत से गिरकर 2023 में 33.7 प्रतिशत रह गई है।
एक बार फिर, शेष विश्व की हिस्सेदारी काफी हद तक स्थिर रही है, जो 43.0 प्रतिशत से मामूली रूप से बढ़कर 47.4 प्रतिशत हो गई है। रिपोर्ट में कहा गया, “अर्थव्यवस्था के आकार और विश्व निर्यात और आयात में उनकी हिस्सेदारी के संदर्भ में ब्रिक्स+ देशों के समूह का महत्व लगातार बढ़ रहा है। ब्रिक्स+ समूह विश्व आर्थिक नीतियों के निर्धारण के लिए जी-7 समूह के साथ प्रतिस्पर्धा करने के साथ-साथ सहयोग भी करेगा।”
ईवाई इंडिया के मुख्य नीति सलाहकार और 16वें वित्त आयोग सलाहकार परिषद के सदस्य डी के श्रीवास्तव ने कहा, “वर्तमान रुझानों और ब्रिक्स+ समूह में कई नए सदस्यों के शामिल होने की संभावना को देखते हुए वैश्विक वस्तु निर्यात में ब्रिक्स+ की हिस्सेदारी 2026 तक जी-7 समूह से आगे निकल सकती है।” वैश्विक आर्थिक मामलों के प्रबंधन में जी-7 की अग्रणी भूमिका पर प्रश्नचिह्न लगने की संभावना है, क्योंकि वैश्विक जनसंख्या, विश्व सकल घरेलू उत्पाद और विश्व व्यापार में हिस्सेदारी के संदर्भ में ब्रिक्स+ समूह का महत्व बढ़ रहा है।