Bank of Maharashtra: सरकारी बैंक का बड़ा फैसला: नए साल 2025 से ग्राहकों पर पड़ेगा असर

Edited By Anu Malhotra,Updated: 23 Dec, 2024 02:53 PM

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सरकारी बैंक बैंक ऑफ महाराष्ट्र ने ग्राहकों को झटका देते हुए अपनी मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड्स बेस्ड लेंडिंग रेट (MCLR) में 0.05% की बढ़ोतरी का एलान किया है। इस फैसले का असर जनवरी 2025 से दिखाई देगा। बैंक ने यह जानकारी एक्सचेंज पर साझा की, जिसके बाद...

नेशनल डेस्क: सरकारी बैंक बैंक ऑफ महाराष्ट्र ने ग्राहकों को झटका देते हुए अपनी मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड्स बेस्ड लेंडिंग रेट (MCLR) में 0.05% की बढ़ोतरी का एलान किया है। इस फैसले का असर जनवरी 2025 से दिखाई देगा। बैंक ने यह जानकारी एक्सचेंज पर साझा की, जिसके बाद सोमवार को बैंक के शेयरों में हलचल देखी गई।

शेयर बाजार में हलचल
सोमवार, 23 दिसंबर 2024 को बैंक ऑफ महाराष्ट्र का शेयर 54.74 रुपये पर बंद हुआ था। अगले दिन यह 55 रुपये पर खुला, लेकिन शुरुआती गिरावट के बाद शेयर का निचला स्तर 53.94 रुपये तक पहुंच गया। हालांकि, जैसे ही दरों में बढ़ोतरी की खबर आई, शेयर ने तेजी पकड़ते हुए 55 रुपये का स्तर फिर से पार कर लिया।

क्या है MCLR और इसका असर?
MCLR यानी मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड्स बेस्ड लेंडिंग रेट, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा लागू एक प्रणाली है, जिसके तहत बैंकों की न्यूनतम कर्ज देने की ब्याज दर तय होती है।

इस दर के बढ़ने का सीधा असर बैंकों के ग्राहकों पर पड़ता है, खासकर उन लोगों पर जिनके लोन फ्लोटिंग रेट पर आधारित हैं।

MCLR के बढ़ने का मतलब:

  1. उधार लेना होगा महंगा:
    जिन ग्राहकों ने फ्लोटिंग रेट लोन लिया है, उनकी ब्याज दरें बढ़ जाएंगी। इसके चलते उनकी मासिक किस्त (EMI) में इजाफा होगा या लोन की अवधि बढ़ सकती है।

  2. पुराने ग्राहकों पर असर:
    जिनके लोन MCLR पर आधारित हैं, उनकी ब्याज दरें लोन के रीसेट पीरियड (जैसे हर 6 महीने या साल) पर बढ़ सकती हैं। हालांकि, फिक्स्ड रेट लोन वालों पर इसका असर नहीं होगा।

  3. नए ग्राहकों के लिए चुनौती:
    जो लोग नए लोन लेने की योजना बना रहे हैं, उन्हें अब अधिक ब्याज दरों का भुगतान करना होगा।

कैसे तय होती है MCLR?

MCLR कई कारकों पर आधारित होती है, जिनमें शामिल हैं:

  • बैंक की फंडिंग लागत (जमा पर दी जाने वाली ब्याज दर)
  • संचालन लागत
  • कैश रिजर्व रेशियो (CRR) पर कोई ब्याज न मिलने से होने वाला नुकसान
  • अलग-अलग अवधि के लिए लागू प्रीमियम

ग्राहकों पर दीर्घकालिक प्रभाव:

  • बढ़ी हुई EMI के चलते लोन चुकाना महंगा हो सकता है।
  • परिवार के अन्य खर्चों को कम करना पड़ सकता है, जिससे बाजार की मांग प्रभावित होगी।
  • यह बदलाव विशेष रूप से गृह और व्यक्तिगत ऋण धारकों के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

आगे क्या?

बैंकिंग सेक्टर में यह बढ़ोतरी अन्य बैंकों को भी अपने ब्याज दरों को संशोधित करने के लिए प्रेरित कर सकती है। ऐसे में ग्राहकों को अपने वित्तीय निर्णयों में सतर्कता बरतने की सलाह दी जाती है।

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