Government Schemes: मुफ्त सरकारी योजनाएं पर बंद होने का खतरा, सुप्रीम कोर्ट में दायर हुई याचिका , जानें क्यों?

Edited By Mahima,Updated: 17 Oct, 2024 10:26 AM

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हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका में चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त योजनाएं देने की प्रथा पर सवाल उठाया गया है, और इसे रिश्वत के रूप में मानने की मांग की गई है। अदालत ने सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया है। यदि यह...

नेशनल डेस्क:  भारत में चुनावी राजनीति में मुफ्त योजनाओं का वादा करना एक सामान्य प्रथा बन चुकी है। विभिन्न राजनीतिक दल चुनावों के दौरान जनता को आकर्षित करने के लिए कई प्रकार की मुफ्त सुविधाओं की घोषणा करते हैं, जैसे मुफ्त बिजली, पानी, बस यात्रा, और राशन। हालांकि, अब यह चर्चा जोर पकड़ रही है कि देश के कई राज्यों में चल रही इन मुफ्त योजनाओं को बंद करने का निर्णय लिया जा सकता है।

चुनावी रेवड़ियों का मामला
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में चुनावी रेवड़ियों (फ्रीबीज) को लेकर एक याचिका दायर की गई है। इस याचिका में मांग की गई है कि चुनाव के दौरान किसी भी तरह के मुफ्त वादों को रिश्वत के रूप में माना जाए। याचिका में यह भी कहा गया है कि चुनाव आयोग को इस तरह की योजनाओं पर तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए ताकि राजनीतिक दल चुनावों में मुफ्त वादों के सहारे वोट न बटोर सकें।

सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया है। न्यायालय ने याचिकाकर्ता को यह छूट भी दी है कि वह सभी लंबित याचिकाओं पर जल्द सुनवाई का अनुरोध कर सकता है। पिछले कुछ समय से चुनावों में मुफ्त योजनाओं के वादे की मांग बढ़ती जा रही है, और इस मुद्दे पर अदालत की ओर से यह कदम उठाना महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

राजनीतिक दलों की प्रतिक्रियाएं
भारत के विभिन्न राज्यों में राजनीतिक दलों ने चुनावी लाभ के लिए मुफ्त योजनाओं की घोषणा की है। उदाहरण के लिए, दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान आम आदमी पार्टी ने कुछ यूनिट मुफ्त बिजली और मुफ्त पानी देने का वादा किया। कांग्रेस ने भी कई राज्यों में इसी प्रकार के वादे किए हैं। भाजपा शासित राज्यों में भी मुफ्त योजनाएं लागू की गई हैं। यह सभी दल चुनावी लाभ के लिए मुफ्त योजनाओं का सहारा लेते हैं, जिससे जनता को लुभाना आसान हो जाता है।

सुप्रीम कोर्ट का पूर्व रुख
यह पहली बार नहीं है जब मुफ्त योजनाओं के वादों पर सवाल उठाए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे पर पहले से ही कई याचिकाएं लंबित हैं। पूर्व चीफ जस्टिस एनवी रमना और पूर्व सीजेआई जस्टिस यूयू ललित की पीठ पहले ही इस मामले की सुनवाई कर चुकी है। हाल ही में, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने भी इस मुद्दे पर चर्चा की है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि अदालत इस मामले को गंभीरता से ले रही है।

प्रभाव और संभावित परिणाम
यदि सुप्रीम कोर्ट इस याचिका को स्वीकार करता है और राजनीतिक दलों के मुफ्त वादों को रोकने का आदेश देता है, तो यह चुनावी राजनीति में एक बड़ा बदलाव ला सकता है। इससे राजनीतिक दलों के लिए एक नई चुनौती खड़ी हो जाएगी, क्योंकि उन्हें बिना मुफ्त वादों के चुनावी मैदान में उतरना पड़ेगा। ऐसे में, राजनीतिक दलों को अपने घोषणापत्र में वास्तविक विकास योजनाएं और नीतियों को शामिल करना होगा, जिससे वे जनता का विश्वास जीत सकें।

जनता की चिंता
इस स्थिति का सबसे बड़ा प्रभाव उन लोगों पर पड़ेगा जो मुफ्त योजनाओं पर निर्भर हैं। गरीब और निम्न आय वर्ग के लोग अक्सर इन योजनाओं के माध्यम से ही अपनी आवश्यकताओं को पूरा करते हैं। यदि ये योजनाएं बंद होती हैं, तो इससे उनकी जीवनशैली पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इस विषय पर आम जनता की राय भी महत्वपूर्ण होगी, क्योंकि वे ही चुनावों में मतदान करते हैं और उनकी आवश्यकताएं चुनावी नीतियों को प्रभावित करती हैं।

बता दें की मुफ्त सरकारी योजनाओं का मुद्दा हमेशा से चुनावी राजनीति में एक महत्वपूर्ण विषय रहा है। सुप्रीम कोर्ट का यह कदम राजनीतिक दलों और सरकारों के लिए एक चेतावनी हो सकती है कि उन्हें जनता को वास्तविकता के आधार पर योजनाएं प्रदान करनी चाहिए, न कि केवल चुनावी लाभ के लिए। अब यह देखना होगा कि सुप्रीम कोर्ट का निर्णय किस दिशा में जाता है और इसका राजनीतिक दलों पर क्या प्रभाव पड़ेगा। 

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