Edited By Mahima,Updated: 05 Nov, 2024 01:15 PM
हाल के वर्षों में भारत और कनाडा के बीच तनाव बढ़ा है, खासकर कनाडा में खालिस्तानी समर्थक समूहों के बढ़ते प्रभाव के कारण। यह आंदोलन 1980 के दशक से शुरू हुआ था और सिख प्रवासियों के आगमन से और मजबूत हुआ। कनाडा सरकार की खालिस्तान समर्थकों पर नरमी ने दोनों...
नेशनल डेस्क: भारत और कनाडा के रिश्तों में हाल के दिनों में गहरी खटास देखने को मिली है, विशेष रूप से खालिस्तान समर्थकों की गतिविधियों के कारण। इस तनाव के बीच, कनाडा में हाल ही में हुए एक हमले ने और भी विवाद पैदा किया है। ब्रैम्पटन शहर के एक हिंदू मंदिर के बाहर खालिस्तानी समर्थकों द्वारा हमले की घटना के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी निंदा की है और कनाडा सरकार से सख्त कार्रवाई की मांग की है। इस घटना ने भारत-कनाडा संबंधों में और तनाव बढ़ा दिया है और इसने खालिस्तान समर्थकों के बढ़ते प्रभाव को लेकर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। आइए जानते हैं कि कनाडा में खालिस्तान का नेटवर्क कैसे बना और यह विवाद अब क्यों और गहरा हो गया है।
कनाडा में सिखों का आगमन
कनाडा में सिखों का आगमन ब्रिटिश साम्राज्य के दौरान हुआ था। 1897 में जब ब्रिटिश साम्राज्य ने महारानी विक्टोरिया के डायमंड जुबली सेलिब्रेशन का आयोजन किया, तो भारतीय सैनिकों की एक टुकड़ी को लंदन आमंत्रित किया गया। इनमें से एक प्रमुख सैनिक मेजर केसूर सिंह थे, जो कनाडा में बसने वाले पहले सिख माने जाते हैं। मेजर केसूर सिंह और उनके कुछ साथी सैनिकों ने ब्रिटिश कोलंबिया में रहने का फैसला किया और यहीं से भारतीय सिखों का प्रवास कनाडा में शुरू हुआ। कुछ ही वर्षों में 5000 भारतीय कनाडा पहुंचे, जिनमें अधिकांश सिख थे।
1900 के दशक में सिखों का प्रवास
1900 के दशक के शुरुआती वर्षों में, कनाडा में सिखों का प्रवास रोजगार की तलाश में हुआ। वे मुख्य रूप से ब्रिटिश कोलंबिया में खेती और ओंटारियो में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में काम करने पहुंचे। हालांकि, प्रवासियों के लिए स्थिति आसान नहीं थी। कनाडा में उन्हें नस्लीय भेदभाव, सांस्कृतिक पूर्वाग्रह और स्थानीय लोगों से विरोध का सामना करना पड़ा। इसके अलावा, कनाडा में भारतीयों के बढ़ते प्रवासन के कारण स्थानीय प्रशासन ने सख्त नियम लागू किए, जिसके चलते 1908 के बाद भारत से कनाडा में आप्रवासन में भारी कमी आई।
कोमागाटा मारू और कनाडा में सिखों के लिए भेदभाव
1914 में कनाडा के वैंकूवर तट पर कोमागाटा मारू
नामक जापानी स्टीमशिप ने 376 दक्षिण एशियाई यात्रियों को लेकर पहुंची, जिनमें से अधिकांश सिख थे। कनाडा के अधिकारियों ने इन्हें जहाज पर बंदी बना लिया और लगभग दो महीने तक उन्हें तट पर ठहरने दिया। अंत में इन्हें वापस एशिया भेज दिया गया। इस घटना ने कनाडा में सिखों के प्रति भेदभाव को और बढ़ाया और सिख समुदाय के लिए यह एक काला अध्याय बन गया।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद कनाडा में सिखों की बढ़ती संख्या
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद कनाडा की आप्रवासन नीति में थोड़ी लचीलापन आया, जिससे सिखों की संख्या में बढ़ोतरी हुई। 1967 में कनाडा ने 'पॉइंट सिस्टम' लागू किया, जिसके तहत किसी व्यक्ति को कनाडा में प्रवेश के लिए कौशल और योग्यता के आधार पर चुना जाता था। इसके बाद 1991 के बाद कनाडा में सिखों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि हुई और 2021 तक यह संख्या 7.71 लाख तक पहुंच गई। 1991 से लेकर 2021 तक कनाडा में सिखों की आबादी में लगातार वृद्धि दर्ज की गई, और वर्तमान में वे कनाडा की कुल आबादी का 2.1% हैं।
खालिस्तान आंदोलन और कनाडा में उसका प्रभाव
भारत में 1980 के दशक में खालिस्तान आंदोलन का उभार हुआ था। इस दौरान पंजाब में सिखों के बीच अलगाववादी गतिविधियों ने जोर पकड़ा और कई उग्रवादी नेताओं ने कनाडा को अपना ठिकाना बनाया। इनमें से कुछ नेताओं ने कनाडा से खालिस्तान के समर्थन में अंतरराष्ट्रीय अभियान चलाए। कनाडा में शरण लेने वाले इन खालिस्तानी समर्थकों ने यहां अपने विचारों को फैलाने के लिए कई संगठन बनाए, जिनका उद्देश्य खालिस्तान के लिए अलगाववादी आंदोलन को मजबूत करना था। कनाडा में सिखों की बड़ी आबादी होने के कारण इन आंदोलनों को समर्थन मिला और खालिस्तानी विचारधारा तेजी से फैलने लगी।
कनाडा में खालिस्तान समर्थकों का नेटवर्क
कनाडा में खालिस्तानी समर्थक संगठन आज भी सक्रिय हैं। इन समूहों का मुख्य उद्देश्य पंजाब में खालिस्तान के लिए अलग राज्य की स्थापना है। कनाडा की राजनीतिक और सामाजिक स्थितियों का फायदा उठाते हुए, ये संगठन सिख युवाओं को भावनात्मक रूप से जोड़ने के लिए सोशल मीडिया जैसे प्लेटफार्मों का उपयोग करते हैं। इसके अलावा, ये समूह कनाडा में अपने अभियान को आर्थिक रूप से भी मजबूत करने के लिए फंड जुटाते हैं। कनाडा की सरकार ने इन खालिस्तानी समूहों के खिलाफ कार्रवाई करने में हमेशा हिचकिचाहट दिखाई है। भारतीय खुफिया एजेंसियों ने कई बार कनाडा सरकार से इन समूहों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की अपील की है, लेकिन कनाडा में स्वतंत्रता और कानून का पालन करने की नीति के कारण कनाडा सरकार हमेशा इन मुद्दों को नजरअंदाज करती रही है।
भारत और कनाडा के रिश्तों में खटास
कनाडा में खालिस्तानी समर्थकों की बढ़ती गतिविधियों ने भारत और कनाडा के रिश्तों को खटास में डाल दिया है। हाल ही में ब्रैम्पटन शहर में एक हिंदू मंदिर पर हुए हमले ने दोनों देशों के रिश्तों में और दरार पैदा की है। भारत ने इस हमले की कड़ी निंदा की और कनाडा सरकार से तत्काल कार्रवाई की मांग की। भारत ने अपनी वीजा सेवा भी सस्पेंड कर दी है और कनाडा के नागरिकों के लिए भारत में यात्रा प्रतिबंध भी लगा दिए हैं।
कनाडा में खालिस्तानी विचारधारा का प्रभाव
कनाडा में सिखों की बड़ी संख्या और वहां के राजनीतिक माहौल का खालिस्तान आंदोलन पर गहरा प्रभाव पड़ा है। कनाडा में कुछ राजनीतिक दल और नेता सिख समुदाय को समर्थन देने के लिए खालिस्तानी मुद्दे को नजरअंदाज कर देते हैं या उसे अप्रत्यक्ष रूप से बढ़ावा देते हैं। इस सब के बावजूद, भारत ने बार-बार कनाडा से इस मुद्दे पर सख्त कदम उठाने की अपील की है।
कनाडा में खालिस्तान आंदोलन का भविष्य
कनाडा में खालिस्तान आंदोलन का विस्तार एक लंबी और जटिल प्रक्रिया का परिणाम है। जहां एक ओर सिखों के लिए कनाडा एक सुरक्षित स्थल बन चुका है, वहीं दूसरी ओर खालिस्तान समर्थक समूहों की गतिविधियां भारत और कनाडा के बीच संबंधों को और कठिन बना रही हैं। कनाडा की सरकार को अब इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करना होगा, ताकि दोनों देशों के रिश्तों में सुधार हो सके और वहां रहने वाले भारतीयों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।