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महाकुंभ में नागा साधु कैसे देते हैं मां गंगा को सम्मान? जानिए उनके विशेष स्नान की प्रक्रिया

Edited By Mahima,Updated: 23 Jan, 2025 04:12 PM

how do naga sadhus pay respect to mother ganga in maha kumbh

महाकुंभ मेला में नागा साधु गंगा स्नान से पहले अपनी पवित्रता का ध्यान रखते हैं। वे पहले शिविर में स्नान करते हैं और फिर भगवान शिव की भस्म लगा कर गंगा में पवित्र डुबकी लगाते हैं। 29 जनवरी को दूसरा अमृत स्नान होगा, जिसमें सबसे पहले नागा साधुओं को स्नान...

नेशनल डेस्क: महाकुंभ मेला हिन्दू धर्म के प्रमुख धार्मिक आयोजन में से एक है, जहां लाखों श्रद्धालु गंगा नदी में स्नान करने के लिए जुटते हैं। इस मेले के दौरान गंगा नदी का विशेष महत्व होता है, क्योंकि इसे 'मुक्तिदायिनी' और 'पुण्य प्रदायिनी' माना जाता है। विशेष रूप से नागा साधु, जो अपनी तपस्या और साधना के लिए प्रसिद्ध हैं, गंगा स्नान के समय अपनी पवित्रता का विशेष ध्यान रखते हैं।

स्नान करने से केवल शारीरिक शुद्धि ही नहीं, बल्कि...
नागा साधु अपनी गहरी आस्था के साथ महाकुंभ में गंगा स्नान करते हैं। वे जानते हैं कि गंगा के पवित्र जल में स्नान करने से केवल शारीरिक शुद्धि ही नहीं, बल्कि आत्मिक शुद्धि भी होती है। नागा साधुओं के लिए गंगा केवल एक नदी नहीं, बल्कि देवी मां का रूप है। इस आस्था के साथ वे गंगा में डुबकी लगाते हैं। लेकिन यह डुबकी साधारण नहीं होती, बल्कि इसके साथ एक लंबी प्रक्रिया जुड़ी होती है, जिसमें पवित्रता और सावधानी दोनों का विशेष ध्यान रखा जाता है।

शरीर पर भगवान शिव की भस्म लगाते  
नागा साधु जब गंगा में स्नान करने के लिए जाते हैं, तो सबसे पहले वे अपने शिविरों में स्नान करके अपने शरीर को साफ करते हैं। यह इसलिये होता है ताकि किसी भी तरह की गंदगी या अपवित्रता गंगा के पवित्र जल में न चली जाए। इस विशेष स्नान को करने के बाद वे अपने शरीर पर भगवान शिव की भस्म लगाते हैं, जो उनके आत्मिक शुद्धि और शिव की कृपा का प्रतीक मानी जाती है। भस्म को अपने शरीर पर रगड़ने के बाद, वे गंगा में पवित्र डुबकी लगाने जाते हैं।

महाकुंभ के अमृत स्नान का महत्व
महाकुंभ मेला केवल धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि यह एक विशेष आध्यात्मिक अवसर भी होता है। हर साल अमृत स्नान का आयोजन होता है, जो खास तौर पर उन तिथियों पर होता है, जिन्हें शास्त्रों में विशेष महत्व दिया गया है। इस साल महाकुंभ में पहला अमृत स्नान 14 जनवरी को हुआ था और दूसरा अमृत स्नान 29 जनवरी को होगा। इस दौरान सबसे पहले नागा साधुओं को गंगा में स्नान करने का अधिकार दिया जाता है। उनका मानना है कि इस विशेष स्नान से उनके पुण्य का स्तर और अधिक ऊंचा होता है।

आत्मिक शुद्धि की भी कामना 44
नागा साधु अपने शरीर की शुद्धि के लिए पवित्रता को सर्वोपरि मानते हैं। वे गंगा स्नान करते समय केवल शारीरिक शुद्धि नहीं, बल्कि आत्मिक शुद्धि की भी कामना करते हैं। उनका मानना है कि गंगा के पानी में स्नान करने से उनके सभी पाप समाप्त हो जाते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दौरान उनका ध्यान सिर्फ अपने शरीर की शुद्धि और गंगा के पवित्र जल की पूजा पर केंद्रित रहता है।

विशेष रूप से अपने तप और साधना के लिए प्रसिद्ध 
महाकुंभ में गंगा स्नान का न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व भी है। यह केवल एक व्यक्तिगत अनुभव नहीं होता, बल्कि यह पूरे समाज के लिए एक सांस्कृतिक उत्सव का रूप ले लेता है। श्रद्धालु विभिन्न अनुष्ठानों और पूजा विधियों के माध्यम से गंगा के पवित्र जल में स्नान करने का पुण्य अर्जित करने के लिए उमड़ते हैं। यहां तक कि नागा साधु, जो विशेष रूप से अपने तप और साधना के लिए प्रसिद्ध होते हैं, भी इस अवसर को पवित्रता के प्रतीक के रूप में देखते हैं।

कैसी होती है नागा साधुओं की श्रद्धा और आस्था
नागा साधुओं के लिए गंगा नदी एक जीवंत देवी का रूप है, और उनका मानना है कि गंगा के जल में स्नान करने से उनकी तपस्या और साधना को शक्ति मिलती है। इसीलिए वे गंगा स्नान के लिए पूरी तरह से पवित्रता का पालन करते हैं, ताकि गंगा के पवित्र जल में उनका शरीर शुद्ध रहे और उनकी तपस्या का फल उन्हें प्राप्त हो। यह साधु अपने शरीर पर भस्म और अन्य पवित्र चिह्न लगाकर गंगा में स्नान करते हैं, ताकि उनकी आस्था और समर्पण स्पष्ट रूप से दर्शाए जा सकें।

कब है दूसरा अमृत स्नान?
महाकुंभ का दूसरा अमृत स्नान 29 जनवरी को होगा। इस दिन नागा साधुओं को पहले गंगा में स्नान करने का अवसर मिलता है। इसके बाद अन्य श्रद्धालु गंगा में स्नान करेंगे। यह दिन विशेष रूप से गंगा की पवित्रता के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है और लाखों लोग इस अवसर का लाभ उठाने के लिए महाकुंभ मेला में पहुंचते हैं। 

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