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कैसा था IAS बनने का सफर? डॉ. सुमिता मिश्रा ने दिए 10 सवालों के जवाब

Edited By Ajay Chandigarh,Updated: 18 Jul, 2023 03:16 PM

how was the journey to become an ias dr sumita misra answered 10 questions

मैं डॉक्टर्स के परिवार से आती हूँ। मेरे पिता प्रो एन सी मिश्रा सर्जन थे। किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के सर्जिकोंगलॉजी के विभागाध्यक्ष थे। मेरी माँ प्रो पी के मिश्रा किंग पैड्रियेटिक्स की विभागाध्यक्ष थी और जॉर्ज मेडिकल कॉलेज की प्रिंसिपल भी रहीं।

नई दिल्ली। चिकित्सा, शिक्षा एवं अनुसंधान विभाग तथा महिला एवं बाल विकास विभाग की अतिरिक्त मुख्य सचिव डॉ. सुमिता मिश्रा आईएएस ने अपने जीवन से जुड़े कई पहलुओं को उजागर किया। आईएएस बनने का सपना कहां से आया और यहां तक पहुंचने के लिए किन किन बातों का ध्यान देना चाहिए, इसके संबंध में हुए कई सवालों पर सुमित्रा ने अपनी राय रखी। आइने जानें उनकी निजी जिंदगी और आईएएस बनने की कहानी के बारे में-

1- आप अपनी फैमिली के बारे में कुछ बताइए?

- मैं डॉक्टर्स के परिवार से आती हूँ। मेरे पिता प्रो एन सी मिश्रा सर्जन थे। किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के सर्जिकोंगलॉजी के विभागाध्यक्ष थे। मेरी माँ प्रो पी के मिश्रा किंग पैड्रियेटिक्स की विभागाध्यक्ष थी और जॉर्ज मेडिकल कॉलेज की प्रिंसिपल भी रहीं। मेरे भाई भी सर्जन हैं और फ़िलहाल अटल बिहारी मेडिकल यूनिवर्सिटी में कुलाधिपति हैं। तो पूरे परिवार का माहौल ही पढ़ाई वाला था। मेरे पिता अक्सर कहा करते थे, ‘असंभव मूर्खों के शब्दकोश का शब्द है’। दूसरी बात वे कहते थे कि ‘चाहे जहां रहो ख़ुद का सर्वोत्तम दो’। और यही वो बातें थी जिससे हम सबके भीतर सकारात्मक ऊर्जा का संचार हमेशा बना रहता था, जो आज भी अनवरत विद्यमान है। 

2- शुरुआती पढ़ाई आपकी कहां से हुई? आईएएस बनने का सपना कहाँ से आया। 

- मैंने आईसीएससी बोर्ड से पढ़ाई की है। दसवीं में मैं ऑल इंडिया टॉपर की सूची में रही पर इंटरमीडिएट में मैंने विज्ञान की जगह अर्थशास्त्र चुना। तब ऐसा करना आसान नहीं था। बीए लखनऊ विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में और एमए भी अर्थशास्त्र में ही किया। बीए और एमए दोनों में मैं गोल्ड मेडलिस्ट रही। बहुत पहले से मेरे मन में था कि मुझे जनसेवा में ही अपना जीवन लगाना है। मैं देश की सेवा करना चाहती थी, इसके विकास की यात्रा का सक्रिय हिस्सा बनना चाहती थी, और इन सबके लिए आईएएस से बेहतर और क्या होता भला। 

3- आईएएस बनने के लिए किन किन बातों का ध्यान देना चाहिए।

- ख़ुद पर भरोसा होना सबसे पहली और प्राथमिक माँग है। आपका लक्ष्य स्पष्ट होना चाहिए कि आपको करना क्या है। सुबह जगने का मेरा कोई रूटीन नहीं था; ना तब था न अब है। 8, 8:30 तक उठना, चाय-नाश्ता करना फिर चार घंटे पढ़ना। फिर दोपहर का भोजन, फिर 2-5 तीन घंटे तक पढ़ना। हफ़्ते में दो तीन दिन घर के पास ही एक स्टडी सर्कल ग्रुप था, डॉ अमृता दास उसे चलाती थीं, उसमें जाती थी करेंट अफ़ेयर्स और बाक़ी विषयों पर संवाद के लिए। मूलतः वह मन को हल्का करने का ज़रिया था। जहां आपके भीतर औरों को सुनकर सीखने और ख़ुद का आकलन करने का मौक़ा मिलता था। 

तो शाम को खाने से पहले 2-3 घंटे पढ़ाई, फिर रात के खाने के बाद 2-3 घंटे की पढ़ाई। मतलब कुल मिलाकर 10-12 घंटे का अध्ययन घर पर कर लेते थे।  तब सोशल मीडिया नहीं था, तो हम मन बहलाने के लिए दोस्तों से मिला करते थे। जो शायद अब बहुत ही कम हो गया है, अब मिलते भी हैं तो सब उस वक़्त भी सोशल मीडिया में लगे रहते हैं। 
 
4- आईएएस बनने के लिए क्या-क्या संघर्ष करना पड़ा?

-  सबसे बड़ा संघर्ष अपनी लगन, दृढ़ संकल्प और सटीक लक्ष्य पर नज़र बनाये रखना होता है। एमए की अंतिम परीक्षा के अगले दिन ही मेरे प्रिलिम्स था और उसमें मेरा हो भी गया, मेंस में जैसे तैसे दूसरा पेपर चुना पढ़ाई की और इंटरव्यू तक दे आयी। पर अगली बार मैंने पूरे प्लान के साथ पढ़ाई की और ऑल इंडिया रैंक 10 आया मेरा। तो अनवरत मेहनत मेरे परिणाम लेकर आये।

5- एक आईएएस को नौकरी के दौरान किन किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?

- किसी सेमिनार या सार्वजनिक मंच पर बोलते हुए ख़ासकर जब महिलाओं से रूबरू होती हूँ तो मैं अक्सर ये बात कहती हूँ कि आपकी सबसे बड़ी कमाई, आपकी ताक़त आपका आत्मविश्वास है, आपका भरोसा है। और मुझे यह भरोसा मेरे माँ-बाप से मिला। मैं इसे टेफ़्लोन कोटेड कॉन्फिडेंस कहता हूँ। चुनौतियाँ आती हैं तब यही भरोसा काम आता है। चुनौतियाँ हैं तो अवसर भी हैं कुछ करने का, कुछ बेहतर बनाने का, कुछ सकारात्मक बदलने का। ये चुनौतियाँ न हों तो पुरस्कृत भी कहाँ होंगे आप! 

6- एक महिला के लिए नौकरी और फैमिली को मैनेज करना कितना मुश्किल होता है?

- एक बेहतर इंसान एक बेहतर प्रबंधक होता है। मुश्किल तब होती है जब आप मैनेज नहीं कर पाते हैं। जब आप अधिकतर समय मैनेज करते हुए सबको उसके समय का हिस्सा दे पाते हैं तब आपात स्थिति में आपको अपने वालों से पूरा साथ मिलता है। वे आपका संबल बनते हैं। आपको आपके परिवार का, आपके पति का सहयोग मिलना सबसे ज़रूरी है। आप अपनी संतानों को अच्छी परवरिश दे पाएँ यह तभी संभव होगा जब सबका साथ हो। हमारी नौकरी 24*7 की होती है, जन सेवा आसान नहीं है पर समय का प्रबंधन करना आये तो सब हो जाता है। वक़्त को बरतने का हुनर आना चाहिए।  लेकिन फिर भी कभी-कभी खलती है यह बात कि देश और समाज के लिए पूरा वक़्त देने के बावजूद आप अपने बच्चों को पर्याप्त समय नहीं दे पातें।

7- क्या कभी आपके मन में नौकरी छोड़ने का ख्याल आया?

- बिलकुल भी नहीं। जिस नौकरी के लिए बचपन से सोच रखा था उसे छोड़ने का ख्याल आना आसान भी कहाँ है। मैंने हमेशा चुनौतियों का आगे बढ़कर सामना किया है। और सफल होकर निकली हूँ, ऐसा करना आपको आत्मविश्वास देता है। फिर आप अपने काम से प्रेम करने लगते हैं। 

8- इतने बड़े पदों पर आप रह चुके हैं आज IAS की तैयारी कर रहे बच्चों के लिए आपकी क्या सलाह है?

- सलाह के तौर पर इतना कि स्वयं में यक़ीन कभी मत खोना। यह यक़ीन हर बड़ी बाधा को पार करने का हौसल देती है। सपना, संकल्प और समर्पण इन तीन को साध कर रखिए फिर लक्ष्य तक पहुँचना आसान हो जाता है। धैर्य बनाये रखना है, ज़िद पकड़े रहना है, फिर हार का मुँह तो आप क़तई नहीं देखेंगे। 

9:- इतने व्यस्त ज़िंदगी में आप लेखन के लिए कैसे समय निकाल पाती हैं।

- जब आप समाज के लोगों के बीच काम करते हैं तो जाने-अनजाने मानवीय मूल्यों, भावनाओं, संवेदनाओं से आपका साक्षात्कार होता है, ऐसे में हृदय में अनगिनत भावों का फूटना लाज़िमी है। यहीं से आगे लेखन आता है। मैं रोक नहीं पाती फिर समय निकल ही आता है। जो भी कार्य आपकी प्राथमिक ज़रूरतों में शामिल हो जाता है, उसके लिए आपके पास समय होता ही है। मेरे लिए लेखन बेचैनी से आती है। मैं बेचैन होती हूँ, भावों का झंझावात उठता और और रचने बैठ जाती हूँ। 

10:- आप रहने वाली लखनऊ की हैं, वो अदब की नगरी मानी जाती है, फिर हरियाणा राज्य से आपने क्या सीखा।

- हरियाणा के लोगों की भाषा में हास-परिहास का पुट रहता है, वे आपको कभी उदास नहीं होने देते। उनकी मेहनत और लगन के सब क़ायल हैं। आज हरियाणा ने शूटर दादियाँ दीं तो एक से बढ़कर एक महिला पहलवान। हरियाणा ने मुझमें अलग तरह का आत्मविश्वास जगाया।

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