Edited By Mahima,Updated: 02 Jan, 2025 01:00 PM
2025 में भारत की अर्थव्यवस्था के लिए संभावनाएं और चुनौतियां दोनों हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत का वित्तीय क्षेत्र, कर्ज, महंगाई और वैश्विक मंदी से निपटने के लिए महत्वपूर्ण सुधारों की आवश्यकता है। इसके बावजूद, इंफ्रास्ट्रक्चर सुधार और रोजगार...
नेशनल डेस्क: नया साल 2025 शुरू हो चुका है, और इसके साथ ही भारत की अर्थव्यवस्था के भविष्य को लेकर अटकलें और विश्लेषण तेज़ हो गए हैं। क्या यह साल भारत के लिए समृद्धि और विकास का होगा, या फिर यह देश को आर्थिक संकट के कगार पर खड़ा कर देगा? विशेषज्ञों का मानना है कि भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर काफी मिश्रित संकेत मिल रहे हैं। एक तरफ भारत की दीर्घकालिक विकास संभावनाएं उज्जवल हैं, तो दूसरी तरफ कुछ कठिनाइयों और वैश्विक अनिश्चितताओं का सामना भी करना पड़ेगा।
कैसी है भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति
भारत की अर्थव्यवस्था के मौजूदा हालात की बात करें तो 2024 की पहली तीन तिमाहियों में विकास दर अपेक्षाकृत धीमी रही। हालांकि, दीर्घकालिक दृष्टिकोण से भारत की विकास दर 6% से ऊपर रहने की संभावना है। अगले पांच वर्षों में भारत दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था बने रहने का अनुमान है, जिसमें सालाना 6.5% से ज्यादा की वृद्धि की उम्मीद जताई जा रही है। इससे भारत की स्थिति वैश्विक स्तर पर मजबूत हो सकती है। भारत की वृद्धि दर, चीन, जापान और साउथ कोरिया जैसे देशों के मुकाबले थोड़ी कम हो सकती है, जिनकी विकास दर कभी 8% या उससे भी अधिक थी। लेकिन, एक सवाल यह उठता है कि क्या भारत के लिए 6% से ऊपर की वृद्धि दर पर्याप्त होगी, खासकर तब जब भारत को 2030 तक हर साल 80 लाख नौकरियों की आवश्यकता होगी। इन तमाम मुद्दों पर एबीपी न्यूज ने एसोचैम के पूर्व चीफ एडवाइजर डॉ. जीपी श्रीवास्तव से विस्तार से चर्चा की, जिन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था के भविष्य को लेकर अपनी महत्वपूर्ण राय दी।
चुनौतियों के बावजूद ग्रोथ की उम्मीद
डॉ. जीपी श्रीवास्तव के अनुसार, 2025 भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक चुनौतीपूर्ण वर्ष हो सकता है, लेकिन साथ ही यह विकास के लिए अपार संभावनाएं भी लेकर आएगा। यदि भारत को अमेरिका और चीन जैसे देशों से आगे बढ़ना है तो इसके लिए कई बदलावों की आवश्यकता होगी। विशेष रूप से आर्थिक सुधारों को फिर से लागू करना, बैंकिंग सेक्टर की समीक्षा करना और नई नीतियां बनाना अनिवार्य है। उन्होंने कहा, "हमारी चुनौतियां निश्चित रूप से बढ़ रही हैं, लेकिन यदि हम भविष्य में एक विकसित देश बनना चाहते हैं तो हमें इन बदलावों को पूरी गंभीरता से अपनाना होगा।" भारत के इंफ्रास्ट्रक्चर, आईटी, इलेक्ट्रॉनिक्स और डिफेंस सेक्टर में सुधार हुए हैं, लेकिन इस सबके बावजूद एक समस्या बनी हुई है। डॉ. श्रीवास्तव ने कहा कि जब तक आसपास के देशों में शांति और स्थिरता नहीं होगी, तब तक भारत के लिए विकास में रुकावट आ सकती है। इसका कारण यह है कि भारत को अपनी सुरक्षा और वैश्विक प्रभाव के लिए पड़ोसी देशों पर अतिरिक्त खर्च करना पड़ता है, जिसका सीधा असर देश की आर्थिक स्थिति पर पड़ता है।
भारत की वित्तीय स्थिति और बड़े सुधार की जरूरत
डॉ. जीपी श्रीवास्तव ने भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने सबसे बड़ी चुनौती वित्तीय क्षेत्र को बताया। उनका मानना है कि अगर भारत का वित्तीय क्षेत्र मजबूत नहीं रहेगा तो न केवल विदेशी निवेश (FDI) में कमी आएगी, बल्कि देश का निर्यात भी प्रभावित होगा। वित्तीय प्रणाली के कमजोर होने से बैंकों पर दबाव बढ़ सकता है, जिससे उनकी लेंडिंग क्षमता में कमी आएगी और देश की आर्थिक स्थिति बिगड़ सकती है। भारत में सरकार, कंपनियों और आम लोगों का कर्ज लगातार बढ़ रहा है, और अगर इसे नियंत्रित नहीं किया गया तो यह भारतीय वित्तीय प्रणाली के लिए खतरा बन सकता है। विशेष रूप से, बैंकों के फंसे हुए कर्ज (NPAs) की समस्या अभी भी बनी हुई है। यदि इस समस्या का समाधान नहीं किया गया तो बैंकिंग क्षेत्र की क्षमता पर इसका गंभीर असर पड़ेगा, जिससे देश की समग्र विकास दर प्रभावित हो सकती है। इसके अलावा, अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध, बढ़ती महंगाई और अन्य वैश्विक कारक भी भारतीय वित्तीय क्षेत्र पर नकारात्मक असर डाल सकते हैं।
महंगाई को कंट्रोल करना एक चुनौती
महंगाई दर पर भी चिंता जताई जा रही है। नवंबर 2024 में भारत की महंगाई दर घटकर 5.48% हो गई थी, लेकिन यह अभी भी भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के 4% के लक्ष्य से ऊपर है। डॉ. श्रीवास्तव ने महंगाई को नियंत्रित करने के उपायों पर चर्चा करते हुए कहा कि महंगाई को कंट्रोल करना एक चुनौती है, लेकिन यह उतना मुश्किल नहीं है। अगर सरकार महंगाई को नियंत्रित करने के लिए कुछ त्वरित कदम उठाती है, तो इससे प्रति व्यक्ति आय पर असर पड़ सकता है। उन्होंने कहा, "जब कोई देश तेजी से बढ़ता है, तो महंगाई का बढ़ना स्वाभाविक है। जब लोगों के पास अधिक पैसा होता है तो मांग बढ़ती है, और जब आपूर्ति कम होती है, तो कीमतें बढ़ जाती हैं।" उन्होंने यह भी कहा कि अगर महंगाई को नियंत्रित करने के लिए सरकार सारे सामाजिक और विकासात्मक प्रोजेक्ट्स बंद कर देती है तो महंगाई तो कम हो सकती है, लेकिन देश के विकास की गति रुक जाएगी।
क्या है विकास की राह में अहम योगदान
भारत में इंफ्रास्ट्रक्चर और शिक्षा के क्षेत्र में हुए सुधारों का भी भारतीय अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक असर पड़ा है। डॉ. श्रीवास्तव ने उदाहरण देते हुए कहा कि दिल्ली-जयपुर राष्ट्रीय राजमार्ग (NH48) के निर्माण से न केवल यात्रा समय में कमी आई है, बल्कि इस परियोजना ने नए व्यापारिक अवसरों और रोजगार के अवसरों का सृजन भी किया है। उन्होंने यह बताया कि जब इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार होता है, तो उसके दीर्घकालिक लाभ देश की अर्थव्यवस्था में दिखते हैं। यही नहीं, बेहतर शिक्षा प्रणाली भी एक समृद्ध अर्थव्यवस्था के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अहम योगदान
रोजगार के संदर्भ में डॉ. श्रीवास्तव ने कहा कि आजकल एक गलत धारणा बन गई है कि केवल सरकारी नौकरी या स्थायी नौकरियों को ही रोजगार माना जाता है। लेकिन असल में भारत के अधिकांश लोग अनऑर्गनाइज्ड सेक्टर में काम कर रहे हैं, जैसे कि छोटे दुकानदार, रेहड़ी-पटरी वाले और छोटे व्यवसायों में लगे हुए लोग। इन लोगों को बेरोजगार मानना गलत है, क्योंकि ये लोग भी भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अहम योगदान दे रहे हैं। उन्होंने बताया कि भारत में रोजगार के अवसर बढ़ रहे हैं, और 2025 में यह संभावना और अधिक बढ़ने की उम्मीद है। छोटे और मंझले व्यवसायों, साथ ही साथ स्वरोजगार को बढ़ावा देने से भारत में बेरोजगारी दर में कमी आएगी और नए रोजगार सृजित होंगे।
अमेरिका और चीन की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में मंदी
वैश्विक मंदी का असर भारत पर पड़ सकता है, क्योंकि यूरोप, अमेरिका और चीन की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में मंदी की स्थिति बन रही है। यह भारत के निर्यात और विदेशी निवेश को प्रभावित कर सकता है। हालांकि, डॉ. श्रीवास्तव का मानना है कि भारत इस स्थिति को एक अवसर में बदल सकता है यदि हम अपनी नीतियों को सही दिशा में लागू करें। मंदी के दौर में भारत को अपने व्यापारिक संबंधों को सुधारने, नए बाजारों की पहचान करने और घरेलू मांग को बढ़ाने की रणनीति अपनानी होगी।
भारत के लिए 2025 कैसा होगा?
संक्षेप में, 2025 भारत के लिए एक महत्वपूर्ण वर्ष हो सकता है। इसके साथ ही यह चुनौतियों और अवसरों का मिश्रण भी है। भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक अनिश्चितताओं, बढ़ते कर्ज और महंगाई के प्रभावों से बचाने के लिए सुधारों की आवश्यकता होगी। हालांकि, इंफ्रास्ट्रक्चर, शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में किए गए सुधार भारत की अर्थव्यवस्था को अगले कुछ वर्षों में मजबूती प्रदान कर सकते हैं। यदि सरकार सही दिशा में कदम उठाती है और वैश्विक आर्थिक संकट के बीच अपनी नीतियों को अनुकूलित करती है, तो भारत आर्थिक वृद्धि और रोजगार सृजन के क्षेत्र में सफलता हासिल कर सकता है।