ICRA ESG रेटिंग रिपोर्ट: भारत ने नेट-जीरो लक्ष्यों में छठा स्थान किया प्राप्त, UK सबसे ऊपर

Edited By Rahul Rana,Updated: 04 Dec, 2024 02:42 PM

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आईसीआरए ईएसजी रेटिंग्स द्वारा जारी एक रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत ने कॉर्पोरेट जलवायु कार्रवाई के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर छठा स्थान हासिल किया है। रिपोर्ट के मुताबिक 127 भारतीय कंपनियां अब नेट-जीरो लक्ष्यों के प्रति प्रतिबद्ध हैं और ये...

नॅशनल डेस्क। आईसीआरए ईएसजी रेटिंग्स द्वारा जारी एक रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत ने कॉर्पोरेट जलवायु कार्रवाई के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर छठा स्थान हासिल किया है। रिपोर्ट के मुताबिक 127 भारतीय कंपनियां अब नेट-जीरो लक्ष्यों के प्रति प्रतिबद्ध हैं और ये कंपनियां मुख्य रूप से कपड़ा, सॉफ्टवेयर, और फार्मास्यूटिकल्स जैसे गैर-कठिन-से-कम करने वाले क्षेत्रों से संबंधित हैं।

भारत की नेट-जीरो प्रतिबद्धता

भारत में 127 कंपनियों में से लगभग 7% निर्माण सामग्री और खनन जैसे उच्च उत्सर्जन वाले क्षेत्रों से हैं जबकि बाकी कंपनियां कपड़ा, सॉफ्टवेयर, और सेवाओं जैसे क्षेत्रों से संबंधित हैं जिन्हें आमतौर पर कम से मध्यम स्तर का कार्बन फुटप्रिंट माना जाता है। इन कंपनियों की बढ़ती संख्या यह दर्शाती है कि भारत में जलवायु परिवर्तन के प्रति गंभीरता बढ़ रही है।

एसबीटीआई: विज्ञान आधारित लक्ष्य पहल

एसबीटीआई (Science Based Targets Initiative) एक स्वैच्छिक पहल है जिसके तहत कंपनियां विज्ञान-आधारित लक्ष्य निर्धारित करने के लिए प्रतिबद्ध हो सकती हैं। इसके बाद इन लक्ष्यों का स्वतंत्र रूप से मूल्यांकन और सत्यापन भी किया जाता है। एसबीटीआई द्वारा दिए गए दिशा-निर्देशों के आधार पर ही ये कंपनियां अपने नेट-जीरो लक्ष्यों को निर्धारित करती हैं।

यूके सबसे ऊपर, चीन पीछे

आईसीआरए की रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि यूके नेट-जीरो लक्ष्यों के लिए प्रतिबद्ध सबसे अधिक कंपनियों के साथ दुनिया में सबसे ऊपर है। इसके विपरीत चीन जो दुनिया का सबसे बड़ा उत्सर्जक है ऐसी प्रतिबद्धता वाली कंपनियों के मामले में काफी पीछे है।

भारत के जलवायु लक्ष्यों का महत्व

आईसीआरए की मुख्य रेटिंग अधिकारी शीतल शरद ने कहा, "भारत के जलवायु लक्ष्यों के प्रति प्रतिबद्धता का महत्व बहुत बढ़ गया है। एसबीटीआई के साथ तालमेल बिठाने से जलवायु रणनीतियों को और मजबूत किया जा सकता है साथ ही यह पारदर्शिता और जवाबदेही को भी बढ़ावा देगा।" उन्होंने यह भी कहा कि भारत जैसे विकासशील देशों में बुनियादी ढांचे की वृद्धि के दिशा-निर्देशों को ध्यान में रखते हुए लक्ष्यों का निर्धारण किया जाना चाहिए जिससे और अधिक संस्थाएं जलवायु परिवर्तन की दिशा में कदम बढ़ा सकें।

नवीकरणीय ऊर्जा और अन्य बदलाव

रिपोर्ट में बिजली क्षेत्र में नवीकरणीय ऊर्जा की ओर एक महत्वपूर्ण बदलाव का भी खुलासा किया गया है। हालांकि कोयला आधारित उत्पादन अभी भी प्रचलित है फिर भी नेट-जीरो प्रतिबद्धताओं वाली कंपनियों के बीच अक्षय ऊर्जा को अपनाने की गति बढ़ी है जिसके कारण उत्सर्जन में कमी आई है।

सीमेंट और खनन क्षेत्रों में सुधार

सीमेंट क्षेत्र में उच्च उत्सर्जन को कम करने के लिए वैकल्पिक ईंधन और कार्बन कैप्चर प्रौद्योगिकियों का उपयोग किया जा रहा है। इसके अलावा धातु और खनन क्षेत्रों में भी कंपनियां टिकाऊ प्रथाओं को अपनाने के लिए कदम उठा रही हैं हालांकि इन क्षेत्रों में उत्सर्जन स्तर में बदलाव अभी भी मिश्रित दिखाई दे रहे हैं।

भारत में उत्सर्जन में कमी की चुनौतियां

आईसीआरए के विश्लेषण के अनुसार पिछले छह वर्षों में बहुत कम कंपनियां अपने पूर्ण उत्सर्जन को कम करने में सफल रही हैं हालांकि उत्सर्जन की तीव्रता को स्थिर या थोड़ा कम करने में कुछ कंपनियां सफल रही हैं। रिपोर्ट के अनुसार भारत के कुल उत्सर्जन में बिजली, ऊर्जा, और सीमेंट क्षेत्रों का योगदान 55% है लेकिन इन क्षेत्रों की केवल 10% कंपनियों ने ही नेट-जीरो लक्ष्य के लिए एसबीटीआई के माध्यम से प्रतिबद्धता जताई है।

इससे यह साफ़ होता है कि हालांकि लक्ष्य निर्धारण बढ़ रहा है लेकिन अभी भी उच्च उत्सर्जन वाली कंपनियां पूरी तरह से प्रतिबद्ध नहीं हैं जो नेट-जीरो लक्ष्य को प्राप्त करने में एक बड़ी चुनौती है।

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