मुख्यमंत्री एमके स्टालिन बोले- अगर आप थोपेंगे नहीं तो हम हिंदी का विरोध नहीं करेंगे

Edited By rajesh kumar,Updated: 26 Feb, 2025 03:12 PM

if you don t impose it we will not oppose hindi stalin

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एवं सत्तारूढ़ द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डीएमके) के अध्यक्ष एम. के. स्टालिन ने बुधवार को कहा कि अगर तमिलनाडु और तमिलों के आत्मसम्मान के साथ खिलवाड़ कर जबरन उन पर हिंदी भाषा ‘थोपी' नहीं जाए तो पार्टी इस भाषा का विरोध नहीं करेगी।

नेशनल डेस्क: तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एवं सत्तारूढ़ द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डीएमके) के अध्यक्ष एम. के. स्टालिन ने बुधवार को कहा कि अगर तमिलनाडु और तमिलों के आत्मसम्मान के साथ खिलवाड़ कर जबरन उन पर हिंदी भाषा ‘थोपी' नहीं जाए तो पार्टी इस भाषा का विरोध नहीं करेगी। कथित रूप से हिंदी थोपे जाने के मुद्दे पर पार्टी कार्यकर्ताओं को लिखे पत्र में स्टालिन ने कहा कि आत्मसम्मान तमिलों की ‘विशेषता' है। उन्होंने कहा, ‘‘जो लोग पूछ रहे हैं कि द्रमुक अब भी हिंदी का विरोध क्यों कर रही है, तो मैं आप में से एक होने के नाते उन्हें विनम्रता से जवाब देता हूं - क्योंकि आप अब भी इसे हम पर थोप रहे हैं।''

आप नहीं थोपेंगे तो हम विरोध नहीं करेंगे- स्टालिन
उन्होंने कहा, ‘‘अगर आप नहीं थोपेंगे तो हम विरोध नहीं करेंगे, तमिलनाडु में हिंदी के शब्दों पर कालिख नहीं पोतेंगे। आत्म-सम्मान तमिलों की अनूठी विशेषता है और हम किसी को भी, चाहे वह कोई भी हो, इसके साथ खिलवाड़ नहीं करने देंगे।'' स्टालिन की यह टिप्पणी राज्य में भाषा को लेकर जारी विवाद के बीच आई है। द्रमुक ने आरोप लगाया है कि केंद्र की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) में तीन-भाषा फार्मूले के माध्यम से हिंदी को थोपने की कोशिश कर रही है। हालांकि, केंद्र सरकार ने इस आरोप का खंडन किया है। इस मुद्दे पर द्रमुक और भाजपा की तमिलनाडु इकाई के बीच जुबानी जंग शुरू हो गई है। पार्टी की तमिलनाडु इकाई के प्रमुख के. अन्नामलाई इसकी अगुवाई कर रहे हैं।

प्रधानमंत्री-गृह मंत्री से पूछे सवाल 
अपने पत्र में स्टालिन ने राज्य में 1937-39 के बीच हुए हिंदी विरोधी आंदोलन को याद किया और कहा कि ईवी रामासामी ‘पेरियार' सहित विभिन्न नेताओं ने आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया था। कुछ भाजपा नेताओं का कहना है कि रेलवे स्टेशनों पर हिंदी नामों पर कालिख पोतने से राज्य में आने वाले उत्तर भारतीय यात्री प्रभावित होंगे। द्रमुक प्रमुख ने कहा, ‘‘उन्हें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह एवं शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान से यह सवाल पूछना चाहिए कि क्या उत्तर प्रदेश में इस तरह के बोर्ड पर तमिल और अन्य दक्षिण भारतीय भाषाएं लिखी होती हैं, ताकि काशी संगम और प्रयागराज में कुंभ मेले के लिए वहां जाने वाले क्षेत्र के यात्रियों को लाभ मिल सके?''

तमिलों ने किसी भी भाषा को दुश्मन नहीं माना
उन्होंने यह भी पूछा कि क्या अन्य भारतीय भाषाओं में घोषणाएं की जाती हैं। स्टालिन ने कहा, ‘‘जो लोग तमिल विरोधी और तमिलनाडु के साथ लगातार विश्वासघात करने वाले संगठन में शामिल हुए हैं, वे तमिलों और उनके कल्याण के लिए चिंता कैसे व्यक्त कर सकते हैं। द्रविड़ आंदोलन की किसी भी भाषा से कोई दुश्मनी नहीं है। तमिलों ने किसी भी भाषा को दुश्मन नहीं माना और उसे नष्ट नहीं किया। अगर किसी अन्य भाषा ने तमिल पर हावी होने की कोशिश की, तो उसने कभी भी ऐसा नहीं होने दिया।'' पूर्व में द्रविड़ आंदोलन से जुड़े नेताओं जैसे कि पिट्टी थेगरयार ने संस्कृत का सम्मान किया, लेकिन तमिल के साथ कभी समझौता नहीं किया।

केंद्र पर लगाया धोखा देने का आरोप 
स्टालिन ने कहा कि राज्य में द्रविड़ आंदोलन के मूल संगठन के रूप में देखी जाने वाली ‘जस्टिस पार्टी' के कई नेताओं और तमिल विद्वानों ने 1937-39 के बीच हिंदी विरोधी आंदोलन में भाग लिया था, जिसमें तत्कालीन सी. राजगोपालाचारी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा हिंदी को अनिवार्य बनाकर इसे ‘‘थोपने'' के प्रयासों का विरोध किया गया था। मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य आज तीन-भाषा फार्मूले के नाम पर ‘‘हिंदी और फिर संस्कृत थोपने'' के भाजपा के प्रयासों के खिलाफ है और इसके लिए मंच द्रविड़ नेताओं द्वारा वर्षों पहले तैयार किया गया था। स्टालिन ने कहा कि तमिलनाडु की दो-भाषा नीति (तमिल और अंग्रेजी) के परिणामस्वरूप राज्य स्कूली शिक्षा, उच्च शिक्षा, कौशल विकास और रोजगार के अवसरों के सृजन में अच्छी प्रगति के साथ पहला स्थान बना पाया है। उन्होंने केंद्र की भाजपा सरकार पर दक्षिणी राज्य को ‘‘धोखा'' देने का भी आरोप लगाया और तमिलों की रक्षा के लिए सभी कदम उठाने का आश्वासन दिया। 

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