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इलाहाबाद हाईकोर्ट का अहम फैसला: सिर्फ पोस्ट लाइक करना IT एक्ट के तहत अपराध नहीं

Edited By Rahul Rana,Updated: 21 Apr, 2025 12:25 PM

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इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में यह स्पष्ट किया है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे व्हाट्सऐप या फेसबुक पर किसी पोस्ट को केवल 'लाइक' करना, उस पोस्ट को प्रकाशित या प्रसारित करने के समान नहीं माना जा सकता है। इसलिए, महज किसी पोस्ट को...

नेशनल डेस्क: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में यह स्पष्ट किया है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे व्हाट्सऐप या फेसबुक पर किसी पोस्ट को केवल 'लाइक' करना, उस पोस्ट को प्रकाशित या प्रसारित करने के समान नहीं माना जा सकता है। इसलिए, महज किसी पोस्ट को पसंद करने के आधार पर किसी व्यक्ति पर आईटी अधिनियम की धारा 67 लागू नहीं की जा सकती है। आईटी अधिनियम की यह धारा अश्लील या आपत्तिजनक सामग्री के प्रकाशन या प्रसारण से संबंधित है। न्यायमूर्ति सौरभ श्रीवास्तव की एकल पीठ ने आगरा जिले के इमरान खान नामक व्यक्ति के खिलाफ चल रहे आपराधिक मुकदमे को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की। अदालत ने अपने आदेश में स्पष्ट रूप से कहा, "रिकॉर्ड में दर्ज तथ्यों से यह स्पष्ट होता है कि ऐसा कोई संदेश उपलब्ध नहीं है जिसकी प्रकृति भड़काऊ हो सकती है, और केवल एक संदेश को पसंद करने मात्र से ही आईटी अधिनियम की धारा 67 को लागू नहीं किया जा सकता है।"


याचिकाकर्ता इमरान खान ने अपने खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले को रद्द करने की मांग करते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय में दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 482 के तहत एक याचिका दायर की थी। सीआरपीसी की धारा 482 उच्च न्यायालय को अपनी अंतर्निहित शक्तियों का उपयोग करने का अधिकार देती है। इमरान खान पर चौधरी फरहान उस्मान की एक पोस्ट को लाइक करने के लिए मामला दर्ज किया गया था। उस्मान की वह पोस्ट राष्ट्रपति के नाम एक ज्ञापन सौंपने के लिए कलेक्ट्रेट के पास लोगों को इकट्ठा करने से संबंधित थी। इमरान खान के खिलाफ "सोशल मीडिया पर भड़काऊ संदेश" फैलाने के आरोप में मामला दर्ज किया गया था, क्योंकि बिना अनुमति के जुलूस निकालने के लिए मुस्लिम समुदाय के लगभग 600-700 लोग कथित तौर पर इस संदेश को पढ़कर एकत्रित हुए थे। अदालत ने इस मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि "आईटी अधिनियम की धारा 67 मुख्य रूप से अश्लील सामग्री से संबंधित है, न कि भड़काऊ सामग्री से।"


सुनवाई के दौरान, याचिकाकर्ता इमरान खान के वकील ने अदालत को बताया कि उनके मुवक्किल के फेसबुक अकाउंट पर ऐसी कोई भी आपत्तिजनक सामग्री नहीं पाई गई है। हालांकि, पुलिस ने तर्क दिया कि इमरान खान ने अपने फेसबुक अकाउंट से उस सामग्री को हटा दिया था, लेकिन वैसी ही सामग्री व्हाट्सऐप और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पाई गई थी। सभी पक्षों की दलीलों को सुनने और रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों का अवलोकन करने के बाद, न्यायमूर्ति सौरभ श्रीवास्तव ने पिछले बृहस्पतिवार को अपना निर्णय सुनाया। उन्होंने कहा, "वकील की दलील सुनने और रिकॉर्ड का अवलोकन करने के बाद, मुझे ऐसी कोई सामग्री नहीं मिली जो याचिकाकर्ता को किसी आपत्तिजनक पोस्ट से सीधे तौर पर जोड़ती हो।" इस टिप्पणी के साथ ही उच्च न्यायालय ने इमरान खान के खिलाफ चल रहे आपराधिक मुकदमे को रद्द कर दिया, जिससे उन्हें बड़ी राहत मिली है। यह फैसला सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं के लिए एक महत्वपूर्ण कानूनी स्पष्टता प्रदान करता है, खासकर 'लाइक' करने जैसी सामान्य ऑनलाइन गतिविधियों के संबंध में।

 

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