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उच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण फैसला: जनजाति को आदिवासी कहना अपराध नहीं

Edited By Rahul Rana,Updated: 26 Apr, 2025 09:01 PM

important decision of the high court calling a tribe

उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जिसमें कहा गया कि किसी व्यक्ति को "आदिवासी" कहना अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत अपराध नहीं माना जाएगा। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि एससी/एसटी (अत्याचार निवारण)...

नेशनल डेस्क: उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जिसमें कहा गया कि किसी व्यक्ति को "आदिवासी" कहना अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत अपराध नहीं माना जाएगा। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत दंडनीय अपराध का मामला तब बनता है, जब पीड़ित व्यक्ति अनुसूचित जाति (एससी) या अनुसूचित जनजाति (एसटी) का सदस्य हो। इस फैसले ने यह साबित किया कि केवल "आदिवासी" शब्द का प्रयोग करना, यदि यह संविधान में उल्लिखित एससी/एसटी सूची में शामिल नहीं है, तो वह अपराध नहीं है।

न्यायमूर्ति अनिल कुमार चौधरी का महत्वपूर्ण बयान
न्यायमूर्ति अनिल कुमार चौधरी ने इस फैसले के दौरान कहा कि भारत के संविधान में आदिवासी शब्द का उल्लेख नहीं किया गया है, और जब तक पीड़ित व्यक्ति संविधान में उल्लिखित अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल नहीं है, तब तक एससी/एसटी अधिनियम के तहत कोई मामला नहीं बनाया जा सकता। इस फैसले के माध्यम से अदालत ने कानून के दुरुपयोग की संभावना को भी संबोधित किया।

सुनवाई और याचिका की पृष्ठभूमि
यह मामला लोक सेवक सुनील कुमार द्वारा दायर की गई याचिका से जुड़ा हुआ था। सुनील कुमार पर दुमका पुलिस थाने में एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी। महिला ने प्राथमिकी में आरोप लगाया था कि वह सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत एक आवेदन देने के लिए कुमार से मिलने गई थी, जहां कुमार ने उसे ‘‘पागल आदिवासी'' कहकर अपमानित किया और आवेदन स्वीकार करने से इनकार कर दिया। महिला ने यह भी आरोप लगाया कि कुमार ने उसे कार्यालय से बाहर निकाल दिया।

अदालत का निष्कर्ष: आपराधिक कार्यवाही का दुरुपयोग नहीं
कुमार की वकील, चंदना कुमारी ने अदालत में यह दलील दी कि कुमार ने किसी खास जाति या जनजाति का नाम नहीं लिया, बल्कि केवल ‘‘आदिवासी'' शब्द का इस्तेमाल किया था। इसके बाद अदालत ने यह स्पष्ट किया कि केवल आदिवासी शब्द का उपयोग कोई अपराध नहीं है और इस मामले में एससी/एसटी एक्ट के तहत कार्रवाई नहीं की जा सकती। अदालत ने 8 अप्रैल को अपने आदेश में कहा कि सुनील कुमार के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही जारी रखना कानून का दुरुपयोग होगा, और इस प्रकार प्राथमिकी को रद्द कर दिया गया।

अदालत का महत्वपूर्ण निर्णय: कानून की प्रक्रिया का सम्मान
अदालत ने यह फैसला दिया कि सुनील कुमार के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी और मामले की कार्यवाही को रद्द किया जाता है, क्योंकि इसमें कोई दंडनीय अपराध नहीं बनता। इस निर्णय से यह स्पष्ट होता है कि अदालत किसी भी मामले में कानून के दुरुपयोग को सहन नहीं करेगी, और केवल आरोपों पर कार्रवाई नहीं की जा सकती है जब तक कि वह कानून के दायरे में न हो।

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