Supreme Court का अहम फैसला: अनुसूचित जातियों और जनजातियों में सब कैटेगरी बनाने की दी मंजूरी

Edited By Mahima,Updated: 01 Aug, 2024 11:27 AM

important decision of the supreme court

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है, जिसमें उसने अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के लिए 'कोटे के भीतर कोटा' की अनुमति दी है।

नेशनल डेस्क: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है, जिसमें उसने अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के लिए 'कोटे के भीतर कोटा' की अनुमति दी है। यह निर्णय उन मामलों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जहां राज्य सरकारें SC और ST के भीतर उप-श्रेणियाँ बना सकती हैं, जिससे अधिक जरूरतमंद वर्गों को आरक्षण का लाभ मिल सकेगा।

सात जजों की पीठ ने इस निर्णय में 2004 के ईवी चिन्नैया मामले में दिए गए पांच जजों के फैसले को पलट दिया है। पुराने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि SC और ST के भीतर कोई उप-श्रेणियाँ नहीं बनाई जा सकतीं। लेकिन अब की बार, कोर्ट ने 6-1 के बहुमत से यह निर्णय लिया है कि SC और ST के भीतर सब-कैटेगिरी बनाने की अनुमति है। हालांकि, जस्टिस बेला माधुर्य त्रिवेदी ने इस फैसले से असहमति जताई है।

2004 के फैसले की पृष्ठभूमि
सुप्रीम कोर्ट के 2004 के फैसले में कहा गया था कि राज्यों को SC और ST की उप-श्रेणियाँ बनाने का अधिकार नहीं है। यह निर्णय एक महत्वपूर्ण विवाद का हिस्सा था, जिसमें यह तय किया गया था कि क्या SC और ST के भीतर सब-कैटेगिरी बनाने की अनुमति दी जा सकती है या नहीं। इस फैसले ने कई राज्यों की योजनाओं को प्रभावित किया, जो अनुसूचित जातियों और जनजातियों के भीतर विभिन्न वर्गों के लिए अलग-अलग आरक्षण की व्यवस्था कर रहे थे।

क्या है मामला ?
यह मामला 1975 से शुरू हुआ जब पंजाब सरकार ने अनुसूचित जातियों के लिए दो अलग-अलग श्रेणियों में आरक्षण की नीति लागू की थी। इनमें से एक श्रेणी बाल्मीकि और मजहबी सिखों के लिए थी, जबकि दूसरी श्रेणी बाकी अनुसूचित जातियों के लिए थी। यह व्यवस्था 30 साल तक लागू रही, लेकिन 2006 में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने इसे चुनौती दी और सुप्रीम कोर्ट के 2004 के फैसले का हवाला दिया। कोर्ट ने इस नीति को रद्द कर दिया, यह मानते हुए कि SC श्रेणी के भीतर सब-कैटेगिरी की अनुमति नहीं है।

हालांकि, पंजाब सरकार ने इस निर्णय को चुनौती दी और 2006 में एक नया कानून बनाया, जिसमें बाल्मीकि और मजहबी सिखों को फिर से आरक्षण देने की व्यवस्था की गई। लेकिन 2010 में इस कानून को भी हाई कोर्ट ने रद्द कर दिया। मामला फिर से सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, जहां पंजाब सरकार ने तर्क किया कि 1992 के इंद्रा साहनी मामले में ओबीसी के भीतर सब-कैटेगिरी की अनुमति दी गई थी, और इसलिए SC के भीतर भी ऐसा किया जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट का नया निर्णय
2020 में, सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने पाया कि ईवी चिन्नैया मामले के फैसले पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए। इसके बाद, सीजेआई के नेतृत्व में सात जजों की एक बेंच का गठन किया गया, जिसने जनवरी 2024 में तीन दिनों तक दलीलें सुनीं और अब अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। नए फैसले के अनुसार, राज्य सरकारें अब SC और ST के भीतर उप-श्रेणियाँ बना सकती हैं। इसका उद्देश्य उन वर्गों को अधिक लाभ पहुंचाना है जिनकी स्थिति विशेष रूप से खराब है। यह निर्णय समाज के विशेष वर्गों के लिए न्याय और समानता सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। 

फैसले का प्रभाव
इस फैसले से उन लोगों को लाभ होगा जो अब तक आरक्षण की मुख्य धारा से बाहर थे। इसके अलावा, यह निर्णय समाज के विभिन्न वर्गों के बीच समानता और न्याय सुनिश्चित करने में सहायक होगा। अब यह देखना होगा कि विभिन्न राज्य सरकारें इस निर्णय को कैसे लागू करती हैं और इसका वास्तविक प्रभाव समाज पर किस प्रकार पड़ता है।


 

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