Edited By Rohini Oberoi,Updated: 27 Feb, 2025 11:14 AM
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भारत में पुरुषों में बढ़ती इनफर्टिलिटी एक गंभीर चिंता का विषय बन चुकी है। विशेषज्ञों के मुताबिक भारत में 40-50% इनफर्टिलिटी के मामले पुरुषों से जुड़े होते हैं जबकि वैश्विक स्तर पर यह आंकड़ा बहुत कम है। प्रदूषण, तनाव, खराब जीवनशैली, देर से शादी,...
नेशनल डेस्क। भारत में पुरुषों में बढ़ती इनफर्टिलिटी एक गंभीर चिंता का विषय बन चुकी है। विशेषज्ञों के मुताबिक भारत में 40-50% इनफर्टिलिटी के मामले पुरुषों से जुड़े होते हैं जबकि वैश्विक स्तर पर यह आंकड़ा बहुत कम है। प्रदूषण, तनाव, खराब जीवनशैली, देर से शादी, मोटापा, धूम्रपान और शराब जैसे कारक इसके प्रमुख कारण माने जा रहे हैं। इन कारणों के चलते भारत में स्पर्म फ्रीजिंग एक लोकप्रिय विकल्प बनता जा रहा है। यह तकनीक भविष्य में संभावित इनफर्टिलिटी से बचाव का अवसर देती है खासकर उन पुरुषों के लिए जो कैंसर जैसी बीमारियों के इलाज से गुजर रहे हैं या जो व्यस्त जीवनशैली और उच्च जोखिम वाले पेशों में कार्यरत हैं।
इसके अलावा स्पर्म फ्रीजिंग की कम लागत और इसकी उपलब्धता के कारण भारत में इस ट्रेंड में तेजी आई है। भारत में स्पर्म सैंपल कलेक्शन और इसकी शुरुआती प्रक्रिया की लागत 10-15 हजार रुपये के बीच होती है जबकि स्पर्म फ्रीज करने की लागत 8-10 हजार रुपये प्रति वर्ष होती है। वहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह लागत 50 हजार से एक लाख रुपये तक हो सकती है। भारत में फिलहाल 20 साल तक स्पर्म को सुरक्षित रखने की सुविधा दी जा रही है।
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स्पर्म फ्रीजिंग प्रक्रिया
स्पर्म फ्रीजिंग एक मेडिकल प्रक्रिया है जिसमें शुक्राणुओं को अल्ट्रा-लो टेम्परेचर पर संरक्षित किया जाता है ताकि वे 20 साल तक सुरक्षित रह सकें। यह प्रक्रिया तीन चरणों में होती है:
➤ सैंपल कलेक्शन: शुक्राणुओं का सैंपल प्राकृतिक तरीके से या मेडिकल प्रोसीजर के जरिए लिया जाता है।
➤ सैंपल प्रोसेसिंग: शुक्राणुओं से अशुद्धियां हटा कर उन्हें क्रायोप्रोटेक्टेंट से मिलाया जाता है ताकि वे फ्रीजिंग में सुरक्षित रहें।
➤ फ्रीजिंग: शुक्राणुओं को माइनस 196 डिग्री सेल्सियस पर फ्रीज किया जाता है और लिक्विड नाइट्रोजन में सुरक्षित रखा जाता है।
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महिलाओं में एग फ्रीजिंग का बढ़ता चलन
भारत में महिलाओं में भी एग फ्रीजिंग का चलन तेजी से बढ़ रहा है। इसे मेडिकल भाषा में ओसाइट क्रायोप्रिजर्वेशन कहा जाता है। इस प्रक्रिया में महिलाओं के अंडाणुओं को निकाला जाता है और उन्हें बहुत कम तापमान पर संरक्षित किया जाता है। बाद में जब महिला गर्भधारण करना चाहती है तो इन संरक्षित अंडाणुओं को डीफ्रीज कर आईवीएफ प्रक्रिया के जरिए गर्भधारण कराया जाता है।
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वहीं भारत में महिलाएं एग फ्रीजिंग का विकल्प करियर, स्वास्थ्य समस्याएं और देर से शादी करने के कारण प्राथमिकता दे रही हैं। एग फ्रीजिंग से बायोलॉजिकल क्लॉक से आजादी मिल जाती है। दरअसल उम्र बढ़ने के साथ महिला के अंडाणुओं की गुणवत्ता और संख्या घटने लगती है लेकिन एग फ्रीजिंग इस समस्या को रोकने में मदद करता है। हालांकि एग फ्रीजिंग का खर्च स्पर्म फ्रीजिंग से अधिक होता है लेकिन यह एक प्रभावी तरीका साबित हो रहा है।
अंत में कहा जा सकता है कि भारत में बढ़ती इनफर्टिलिटी के मामलों के चलते स्पर्म और एग फ्रीजिंग की प्रक्रिया में वृद्धि देखी जा रही है। यह दोनों तकनीकें पुरुषों और महिलाओं को भविष्य में संभावित इनफर्टिलिटी से बचाव का अवसर प्रदान करती हैं और बायोलॉजिकल समस्याओं को सुलझाने में मदद करती हैं। हालांकि एग फ्रीजिंग का खर्च स्पर्म फ्रीजिंग से अधिक है फिर भी यह विकल्प भारत में बढ़ता जा रहा है खासकर करियर और स्वास्थ्य कारणों से।