Edited By Rohini Oberoi,Updated: 19 Feb, 2025 11:22 AM
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आजकल के बच्चों में आंखों की समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं और इसका मुख्य कारण मोबाइल फोन, इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स और टीवी का अधिक इस्तेमाल है। यह समस्या सिर्फ शहरी इलाकों में ही नहीं बल्कि ग्रामीण इलाकों में भी देखने को मिल रही है। 10 साल और उससे ज्यादा...
नेशनल डेस्क। आजकल के बच्चों में आंखों की समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं और इसका मुख्य कारण मोबाइल फोन, इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स और टीवी का अधिक इस्तेमाल है। यह समस्या सिर्फ शहरी इलाकों में ही नहीं बल्कि ग्रामीण इलाकों में भी देखने को मिल रही है। 10 साल और उससे ज्यादा उम्र के बच्चों में अब कमजोर नजर, सिर दर्द, आंखों में दर्द और थकी हुई आंखों जैसी समस्याएं आम हो गई हैं।
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आंखों की समस्याओं में 10-12 प्रतिशत की बढ़ोतरी
रिपोर्ट्स के अनुसार पिछले 10 सालों में बच्चों में आंखों की समस्याएं 10-12 प्रतिशत बढ़ी हैं। पहले 100 बच्चों में से 15 बच्चे कमजोर नजर के शिकार होते थे लेकिन अब यह आंकड़ा बढ़कर 25 तक पहुंच चुका है। खासकर ग्रामीण इलाकों में पहले 3-4 मामले आते थे अब ये बढ़कर 7-8 मामले हो गए हैं। शहरी इलाकों में भी बच्चों में आंखों की समस्याएं बढ़ रही हैं जहां अब 15-17 केस सामने आ रहे हैं।
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➤ केस-1: सिर दर्द के साथ पहुंचा बच्चा
9 साल के एक बच्चे ने आंखों में थकान और सिर दर्द की शिकायत की थी। यह बच्चा ग्रामीण इलाके से था और पहले स्कूल में हुई जांच में उसकी आंखों की रोशनी कमजोर होने का पता चला था लेकिन उसके माता-पिता ने चश्मा लगाने की बजाय इसे नजरअंदाज किया। जब समस्या बढ़ने लगी तो फिर से जांच में पता चला कि आंखों की रोशनी कमजोर हो गई है और इलाज के बाद अब चश्मा लगाया गया है।
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➤ केस-2: एक आंख की कमजोर रोशनी
11 साल के एक बच्चे की एक आंख की रोशनी पहले से ही कम थी। हालांकि जांच में इसका पता चल गया था लेकिन चश्मा न लगने के डर से इलाज शुरू नहीं किया गया। समय के साथ उसकी आंख की रोशनी और कम होती गई और अब उसे चश्मा लगाया गया।
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सूरमा और काजल का असर
शहरी और ग्रामीण इलाकों में बच्चों की आंखों की समस्याएं बढ़ने का एक कारण इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स का ज्यादा इस्तेमाल, खराब डाइट और बदलती जीवनशैली है। वहीं ग्रामीण इलाकों में बच्चों की आंखों में सूरमा या काजल भरने की आदत भी उनकी आंखों की रोशनी पर असर डाल रही है। इस आदत से बच्चों की आंखों पर ज्यादा दबाव पड़ता है और उनकी रोशनी में कमी आ सकती है।
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परिवारों को जागरूक होने की आवश्यकता
इस बढ़ती समस्या के बावजूद कई माता-पिता बच्चों की आंखों की जांच करवाने में लापरवाही बरतते हैं और यह तब तक चलता रहता है जब तक समस्या गंभीर न हो जाए। यदि आंखों की रोशनी कमजोर होती है तो बच्चों को पढ़ाई में ही नहीं बल्कि खेलने और दौड़ने में भी परेशानी हो सकती है। डॉक्टरों के अनुसार बच्चों को 5 साल की उम्र के बाद हर साल एक बार आंखों की जांच जरूर करवानी चाहिए।
वहीं एम्स के आंकड़ों के अनुसार यदि किसी एक क्लास की जांच की जाए तो 15-20 बच्चों को चश्मे की आवश्यकता हो सकती है। इस बढ़ती समस्या को देखते हुए बच्चों के माता-पिता को उनकी आंखों की देखभाल और समय पर जांच करवाने के लिए जागरूक होने की आवश्यकता है।