"देता न दशमलव भारत तो फिर चांद पे जाना मुश्किल था..."जानिए गणित का एक अद्भुत योगदान

Edited By Mahima,Updated: 01 Apr, 2025 02:42 PM

india had not given decimal places then it would have been difficult

दशमलव पद्धति का आविष्कार भारतीय गणितज्ञ आर्यभट्ट और ब्रह्मगुप्त ने किया था। आर्यभट्ट ने संख्याओं को स्थानिक मान के साथ प्रस्तुत किया, जबकि ब्रह्मगुप्त ने शून्य और ऋणात्मक संख्याओं के नियमों को स्पष्ट किया। इस प्रणाली का प्रसार अरब और यूरोप में हुआ,...

नेशनल डेस्क: मनोज कुमार की फिल्म पूरब-पश्चिम का एक मशहूर गाना "देता न दशमलव भारत तो फिर चांद पे जाना मुश्किल था..." गणित की दशमलव पद्धति की अहमियत को दर्शाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि गणित में दशमलव पद्धति का आविष्कार किसने किया? इस प्रणाली का भारतीय गणितज्ञों द्वारा दिया गया योगदान आज के आधुनिक गणित में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस लेख में हम जानेंगे दशमलव पद्धति के इतिहास और इसके विकास की पूरी कहानी।

हिसाब से व्यक्त करने की विधि
दशमलव पद्धति का आविष्कार भारत में हुआ था। यह पद्धति संख्याओं को उनके स्थान (place value) के हिसाब से व्यक्त करने की विधि है, जिसे समझने और गणना करने में बहुत आसानी होती है। इसके विकास का श्रेय प्रमुख रूप से दो महान भारतीय गणितज्ञों, आर्यभट्ट और ब्रह्मगुप्त को दिया जाता है।

आर्यभट्ट और दशमलव प्रणाली का प्रारंभ
आर्यभट्ट (476 ई.) भारतीय गणितज्ञ थे जिन्होंने गणना की दशमलव पद्धति का आधार तैयार किया। उनका प्रसिद्ध ग्रंथ आर्यभटीय (499 ई.) गणित और खगोलशास्त्र का महत्वपूर्ण काम है। इसमें उन्होंने संख्याओं को स्थानिक मान के साथ व्यक्त किया, जैसे 1, 10, 100, 1000, आदि, जो दशमलव प्रणाली की नींव बनी। आर्यभट्ट ने गणना की विधियों को बहुत व्यवस्थित किया, जिससे बड़ी संख्याओं की गणना करना सरल हुआ। उनकी कार्यप्रणाली ने गणित को एक नई दिशा दी और इसके बाद के भारतीय गणितज्ञों ने इसे और अधिक परिष्कृत किया।

ब्रह्मगुप्त और शून्य की भूमिका
ब्रह्मगुप्त (598-668 ई.) भारतीय गणितज्ञ और खगोलज्ञ थे, जिन्होंने ब्रह्मस्फुटसिद्धांत (628 ई.) में शून्य और दशमलव पद्धति के नियमों को स्पष्ट किया। ब्रह्मगुप्त ने शून्य की भूमिका को पूरी तरह से परिभाषित किया, जो गणित की दुनिया में एक क्रांतिकारी कदम था। उन्होंने यह सिद्धांत दिया कि किसी भी संख्या को शून्य से गुणा करने पर परिणाम शून्य होगा (a × 0 = 0), जो बाद में गणना के महत्वपूर्ण सिद्धांतों में से एक बन गया। साथ ही, उन्होंने ऋणात्मक संख्याओं के बारे में भी विचार किया और उनके लिए नियमों की स्थापना की। उनकी पुस्तक ब्रह्मस्फुटसिद्धांत गणित और खगोलशास्त्र का महत्वपूर्ण ग्रंथ है। इसमें शून्य और ऋणात्मक संख्याओं पर पहली बार स्पष्ट गणितीय नियम दिए गए थे। इसके अतिरिक्त, उन्होंने ग्रहों की गति, चंद्रग्रहण और सूर्यग्रहण की भविष्यवाणी के लिए आवश्यक गणनाएं भी दीं। ब्रह्मगुप्त का काम न केवल भारतीय गणित बल्कि पश्चिमी गणित और खगोलशास्त्र पर भी गहरा प्रभाव डालने वाला था।

अरब विद्वानों द्वारा दशमलव पद्धति को अपनाया जाना
8वीं शताब्दी में, अरब विद्वानों ने भारतीय गणित ग्रंथों का अनुवाद करना शुरू किया। इस अनुवाद कार्य के माध्यम से भारतीय गणित के महत्वपूर्ण सिद्धांत, विशेषकर दशमलव पद्धति, अरब देशों में पहुंचे। प्रसिद्ध गणितज्ञ अल-ख्वारिज्मी ने भारतीय गणित का अध्ययन किया और दशमलव पद्धति को अपनाया। अल-ख्वारिज्मी के काम ने अरब और इस्लामी जगत में गणित के विकास को गति दी। उनके द्वारा किए गए कार्यों ने इस प्रणाली को न केवल अरब में बल्कि अन्य क्षेत्रों में भी लोकप्रिय किया।

यूरोप में दशमलव पद्धति का प्रसार
12वीं शताब्दी में, अरब गणितज्ञों द्वारा विकसित दशमलव पद्धति यूरोप तक पहुंची। इसे 'हिंदू-अरबी संख्या प्रणाली' के नाम से जाना गया, क्योंकि यह भारतीय गणितज्ञों द्वारा विकसित की गई थी और अरब विद्वानों ने इसे विकसित और प्रचारित किया। यूरोपीय गणितज्ञों ने इसे अपनाया और इसका उपयोग गणना में शुरू किया। इस पद्धति के प्रसार के साथ ही गणित में नई दिशा और विकास हुआ। फ्रांसीसी गणितज्ञ पियरे साइमन लाप्लास ने इस प्रणाली के महत्व को समझते हुए लिखा था, "भारतीयों ने संख्याओं को अभिव्यक्त करने के लिए एक सरलतम प्रणाली विकसित की, जो अब पूरे विश्व में उपयोग की जाती है।"

दशमलव पद्धति का वैश्विक प्रभाव
दशमलव पद्धति ने गणना के तरीकों को बहुत सरल और सुविधाजनक बना दिया, जिससे गणित के विकास में तीव्र गति आई। इस पद्धति ने न केवल गणितीय कार्यों को आसान बनाया, बल्कि यह विज्ञान, खगोलशास्त्र और अन्य तकनीकी क्षेत्रों में भी अत्यधिक महत्वपूर्ण साबित हुई। आज, पूरी दुनिया में गणना के लिए इस प्रणाली का उपयोग किया जाता है, और यह आधुनिक गणित के आधार के रूप में कार्य करती है। दशमलव पद्धति का आविष्कार भारतीय गणितज्ञ आर्यभट्ट और ब्रह्मगुप्त ने किया। आर्यभट्ट ने संख्याओं को स्थानिक मान के साथ व्यक्त किया, जबकि ब्रह्मगुप्त ने शून्य और ऋणात्मक संख्याओं के नियमों को परिभाषित किया। बाद में यह पद्धति अरब और यूरोप तक पहुंची, और आज यह पूरी दुनिया में गणना के लिए उपयोग की जाती है। इसने गणित में अभूतपूर्व विकास को जन्म दिया।

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