Edited By Mahima,Updated: 03 Dec, 2024 10:39 AM
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने घटती फर्टिलिटी रेट पर चिंता जताई और समाज के लिए इसे खतरनाक बताया। उन्होंने कहा कि एक महिला को कम से कम तीन बच्चे पैदा करने चाहिए ताकि समाज का संतुलन बना रहे। भारत में फर्टिलिटी रेट 2.0 पर आ गई है, जबकि 2.1 का स्तर बनाए...
नेशनल डेस्क: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने घटती फर्टिलिटी रेट पर चिंता व्यक्त की है और समाज के लिए इसे एक गंभीर खतरे के रूप में देखा है। रविवार को एक कार्यक्रम में बोलते हुए उन्होंने कहा कि अगर समाज की जन्म दर (फर्टिलिटी रेट) 2.1 से नीचे गिर जाती है, तो समाज का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है। भागवत ने यह भी कहा कि प्रत्येक महिला को अपने जीवनकाल में कम से कम तीन बच्चों को जन्म देना चाहिए।
फर्टिलिटी रेट: क्या है स्थिति?
भारत में फर्टिलिटी रेट पिछले कुछ दशकों में लगातार घट रही है। 1990-92 में भारत का औसत फर्टिलिटी रेट 3.4 था, यानी औसतन एक महिला 3 से अधिक बच्चे पैदा करती थी। लेकिन अब यह रेट घटकर 2.0 पर आ गई है, यानी औसतन एक महिला दो बच्चों को जन्म देती है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, समाज के स्थायित्व के लिए फर्टिलिटी रेट का स्तर 2.1 होना चाहिए। अगर यह इससे नीचे चला जाता है तो समाज की जनसंख्या में गिरावट आनी शुरू हो जाती है, जिससे समाज के अस्तित्व और संस्कृति पर असर पड़ सकता है।
बुजुर्गों की बढ़ती संख्या और उसका असर
फर्टिलिटी रेट में गिरावट का एक बड़ा असर यह हो रहा है कि भारत में बुजुर्गों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, 2050 तक भारत में बुजुर्गों (60 साल और उससे ऊपर) की संख्या 34.7 करोड़ तक पहुँचने का अनुमान है। इससे भारत की कुल जनसंख्या में बुजुर्गों की हिस्सेदारी 20.8% तक हो जाएगी। इसके साथ ही, यह भी कहा जा रहा है कि 2022 से 2050 के बीच भारत की बुजुर्ग आबादी में 134% की वृद्धि होगी। वहीं, 80 साल से अधिक उम्र के लोगों की आबादी में 279% की वृद्धि हो सकती है। बुजुर्गों की बढ़ती संख्या से समाज पर सामाजिक और आर्थिक दबाव बढ़ सकता है, क्योंकि युवा और कार्यशील आबादी की संख्या कम हो रही है।
भारत की जनसंख्या वृद्धि
भारत की जनसंख्या में पिछले कुछ दशकों में वृद्धि की रफ्तार में गिरावट आई है। 2011 में भारत की जनसंख्या 121 करोड़ थी, और अब अनुमानित रूप से यह 140 करोड़ के करीब पहुँच चुकी है। हालांकि, जनसंख्या वृद्धि की दर में गिरावट आई है। 2001-2011 के बीच जनसंख्या वृद्धि की दर 18% से कम रही, जबकि 1991-2001 के बीच यह 22% थी। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, भारत में 15 से 29 साल के युवाओं की आबादी 27% है, और 30 से 59 साल के लोगों की आबादी 37% है। युवा आबादी की बड़ी संख्या के कारण, जनसंख्या में बढ़ोतरी जारी है, हालांकि फर्टिलिटी रेट में गिरावट आ रही है। भारत में अगले कुछ दशकों तक जनसंख्या में वृद्धि जारी रहने की उम्मीद है, लेकिन इसके बाद गिरावट शुरू हो सकती है। 2063 तक भारत की जनसंख्या 1.67 अरब तक पहुँचने का अनुमान है।
महिलाओं की इच्छा
भारत में महिलाओं की औसत फर्टिलिटी रेट कम हो रही है, लेकिन परिवार नियोजन के मामले में उनकी इच्छाएँ अलग-अलग हैं। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS-5) के अनुसार, अधिकांश भारतीय महिलाएं एक या दो बच्चों की चाह रखती हैं। महिलाओं की औसत फर्टिलिटी रेट 1.6 है, जबकि वास्तविक फर्टिलिटी रेट 2.0 है। NFHS-5 के आंकड़ों के अनुसार, जिन दंपतियों के पास दो बच्चे हैं, उनमें से 86% तीसरे बच्चे का ख्याल नहीं रखते। इसके अलावा, यह भी देखा गया है कि जो महिलाएं शिक्षा से वंचित हैं, उनकी फर्टिलिटी रेट उच्च होती है। उदाहरण के लिए, जिन्होंने कभी स्कूल नहीं छोड़ा, उनकी फर्टिलिटी रेट 2.8 है, जबकि वे औसतन 2.2 बच्चे चाहती हैं।
लड़कियों की तुलना में लड़कों की प्राथमिकता
भारत में कई जगहों पर लड़कियों की तुलना में लड़कों को अधिक प्राथमिकता दी जाती है, जिसके कारण कुछ महिलाएं तीसरे बच्चे का फैसला करती हैं, ताकि वे लड़का पैदा कर सकें। एक सर्वे के अनुसार, 35% महिलाएं जिनके पास कोई लड़का नहीं है, वे तीसरा बच्चा पैदा करने की इच्छा रखती हैं। जबकि केवल 9% महिलाएं हीं जो पहले से दो लड़के हैं, फिर भी तीसरा बच्चा चाहती हैं।
भागवत का दृष्टिकोण
मोहन भागवत का कहना है कि अगर समाज की संरचना को बचाए रखना है और हमारी संस्कृति और भाषाओं का संरक्षण करना है, तो फर्टिलिटी रेट को 2.1 के स्तर से ऊपर बनाए रखना जरूरी है। उन्होंने यह भी कहा कि एक महिला को तीन बच्चों को जन्म देना चाहिए ताकि समाज में संतुलन बना रहे और एक मजबूत जनसंख्या का निर्माण हो सके। भागवत ने चिंता जताई कि यदि यह गिरावट जारी रही, तो समाज के लिए गंभीर परिणाम हो सकते हैं। उनका कहना है कि यह मुद्दा न केवल समाज के लिए, बल्कि राष्ट्र की स्थिरता के लिए भी महत्वपूर्ण है।
भारत की जनसंख्या नीति
भारत में पहले से ही जनसंख्या नियंत्रण पर ध्यान दिया जा रहा है, और 1998 या 2002 में सरकार ने जनसंख्या नीति बनाई थी। इसमें कहा गया था कि फर्टिलिटी रेट 2.1 से नीचे नहीं होनी चाहिए। हालांकि, बढ़ती उम्र और कम होती जन्म दर के कारण सरकार को इस पर गंभीरता से विचार करना होगा। भारत की जनसंख्या वृद्धि और फर्टिलिटी रेट पर हालिया आंकड़े और मोहन भागवत के बयान से यह साफ है कि समाज के लिए यह एक गंभीर मुद्दा बन चुका है। जहां एक ओर फर्टिलिटी रेट घट रही है और महिलाएं कम बच्चों की चाहत रख रही हैं, वहीं दूसरी ओर युवा आबादी के कारण जनसंख्या वृद्धि की दर में कमी आई है। आने वाले दशकों में भारत की जनसंख्या में गिरावट आ सकती है, लेकिन यह समस्या सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण से और भी जटिल हो सकती है, खासकर जब बुजुर्गों की संख्या बढ़ेगी और युवा कार्यशील आबादी कम होगी। इसलिए, यह जरूरी है कि जनसंख्या नीति को संतुलित और समग्र दृष्टिकोण से लागू किया जाए, ताकि समाज का संरचनात्मक संतुलन बना रहे और हर वर्ग की जरूरतों को ध्यान में रखा जा सके।