भारत की सबसे लंबी रेल सुरंग परियोजना पर मंडराया संकट, मगर चुनौतियों से पार पाकर रची सफलता की कहानी

Edited By Rahul Rana,Updated: 26 Apr, 2025 03:09 PM

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हिमालय की कठोर पर्वतीय चुनौती और प्राकृतिक खतरों के बीच भारत की सबसे लंबी रेल सुरंग  देवप्रयाग से जनासू तक का निर्माण कार्य अब सफलता के मुकाम पर पहुँच चुका है। यह न केवल इंजीनियरिंग की एक अनोखी मिसाल है, बल्कि परियोजना के दौरान आई कठिनाइयों और खतरों...

नेशनल डेस्क: हिमालय की कठोर पर्वतीय चुनौती और प्राकृतिक खतरों के बीच भारत की सबसे लंबी रेल सुरंग  देवप्रयाग से जनासू तक का निर्माण कार्य अब सफलता के मुकाम पर पहुँच चुका है। यह न केवल इंजीनियरिंग की एक अनोखी मिसाल है, बल्कि परियोजना के दौरान आई कठिनाइयों और खतरों को मात देने की एक प्रेरक गाथा भी है। लगभग 14.57 किलोमीटर लंबी यह सुरंग ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना का हिस्सा है और इसे दुनिया में सबसे तेज़ गति से बनी सुरंगों में गिना जा रहा है।

भयावह क्षण: जब सुरंग ढहने का बना खतरा
इस मेगाप्रोजेक्ट के पीछे कार्यरत कंपनी लार्सन एंड टुब्रो लिमिटेड के परियोजना निदेशक राकेश अरोड़ा ने बताया कि सुरंग बोरिंग मशीन (TBM) "शक्ति" को जब सुरंग के करीब 5 किलोमीटर अंदर भेजा गया था, तभी 1,500 लीटर प्रति मिनट की दर से पानी का अत्यधिक बहाव शुरू हो गया। इस वक्त सुरंग के भीतर करीब 200 लोग मौजूद थे। अरोड़ा के शब्दों में, "यह हमारे लिए सबसे कठिन और डरावने क्षणों में से एक था। उस समय सुरंग में बाढ़ आने या उसके ढहने का गंभीर खतरा मंडरा रहा था।"

महीनों तक चला संघर्ष, इंजीनियरों ने खोजा समाधान
खतरे को देखते हुए टीम ने फौरन सुधारात्मक उपाय शुरू किए। लेकिन परिस्थिति इतनी जटिल थी कि लगभग एक महीने तक कोई खास सुधार नहीं दिखा। अंततः इंजीनियरों ने सीमेंट ग्राउटिंग और रासायनिक मिश्रणों का इस्तेमाल कर सुरंग की रिंग और आसपास की चट्टानों को स्थिर करना शुरू किया। इससे पानी का दबाव कम हुआ और स्थिति धीरे-धीरे नियंत्रित हुई।

चट्टानों का दबाव और टीबीएम की भूमिका
प्राकृतिक तौर पर हिमालय की चट्टानें बेहद नरम और अस्थिर होती हैं। ऐसे में बोरिंग मशीन पर भारी दबाव आया, जिससे निर्माण बाधित होने का खतरा पैदा हो गया।
टीम ने स्थिति से निपटने के लिए बेंटोनाइट का उपयोग करते हुए टीबीएम के खुदाई कार्य को तेज किया। इसके चलते सुरंग निर्माण फिर से पटरी पर आया।


विश्व रिकॉर्ड: पहली बार हिमालय में प्रयोग हुआ सिंगल शील्ड हार्ड रॉक टीबीएम
यह परियोजना इसलिए भी ऐतिहासिक है क्योंकि पहली बार हिमालय की पहाड़ियों में खुदाई के लिए 9.11 मीटर व्यास वाली सिंगल शील्ड हार्ड रॉक टनल बोरिंग मशीन (TBM) का इस्तेमाल किया गया। इससे न केवल समय की बचत हुई, बल्कि जोखिम को भी काफी हद तक कम किया जा सका।

औपचारिक शुरुआत और ऐतिहासिक उपलब्धि
16 अप्रैल को रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और रेलवे के वरिष्ठ अधिकारियों की मौजूदगी में सुरंग के अंतिम ब्रेक-थ्रू की घोषणा की गई। देवप्रयाग और जनासू के बीच बनी यह सुरंग भारत की सबसे लंबी रेल सुरंग बन गई है।

ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना का हिस्सा
देवप्रयाग-जनासू सुरंग 125 किलोमीटर लंबी ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना का एक महत्वपूर्ण भाग है, जो उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों को रेल मार्ग से जोड़ने के लिए बनाई जा रही है। इस रेल लिंक के माध्यम से न केवल चारधाम यात्रा को सरल बनाया जा सकेगा, बल्कि सामरिक दृष्टि से भी यह एक महत्वपूर्ण उपलब्धि मानी जा रही है।

कठिनाइयों के बीच सफलता की मिसाल
इस परियोजना में जिस प्रकार प्राकृतिक आपदाओं और तकनीकी चुनौतियों को मात देकर लक्ष्य प्राप्त किया गया, वह भारतीय इंजीनियरिंग कौशल, समर्पण और दृढ़ संकल्प का प्रमाण है। देवप्रयाग-जनासू सुरंग केवल एक सुरंग नहीं, बल्कि भविष्य की राह को प्रशस्त करने वाली एक ऐतिहासिक उपलब्धि है।
 

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