Edited By Rahul Rana,Updated: 29 Dec, 2024 01:52 PM
भारत का फार्मा उद्योग न केवल देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है बल्कि यह वैश्विक दवा बाजार में भी अहम भूमिका निभा रहा है। वहीं 2024 टिकाऊ विकास और सरल नियमों और वैश्विक मानकों के साथ सामंजस्य पर जोर देने के साथ मजबूत नींव पर निर्माण...
नेशनल डेस्क। भारत का फार्मा उद्योग न केवल देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है बल्कि यह वैश्विक दवा बाजार में भी अहम भूमिका निभा रहा है। वहीं 2024 टिकाऊ विकास और सरल नियमों और वैश्विक मानकों के साथ सामंजस्य पर जोर देने के साथ मजबूत नींव पर निर्माण का वर्ष रहा है। वर्तमान में भारतीय फार्मा उद्योग का आकार लगभग 58 बिलियन अमेरिकी डॉलर है जिसमें घरेलू बाजार और निर्यात दोनों का समान योगदान है। भारत दुनिया का प्रमुख विनिर्माण केंद्र है और वैश्विक जेनेरिक दवाओं की बिक्री में देश का योगदान 20% है।
आत्मनिर्भरता और वैश्विक प्रतिस्पर्धा की ओर कदम
भारत ने फार्मा उद्योग में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने और वैश्विक चैंपियन बनने के उद्देश्य से उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजनाएं (PLI) शुरू की हैं। इन योजनाओं के तहत पेनिसिलिन जी और क्लैवुलैनिक एसिड जैसे उत्पादों के लिए ग्रीन-फील्ड परियोजनाओं की शुरुआत हुई है। इसका उद्देश्य स्वास्थ्य सेवा सुरक्षा को सुनिश्चित करना और आपूर्ति श्रृंखलाओं की विविधता को बढ़ाना है।
गुणवत्ता पर जोर और नियामक सुधार
भारत में फार्मा उद्योग में गुणवत्ता एक महत्वपूर्ण पहलू है। सरकारी योजनाओं के तहत संशोधित अनुसूची एम का कार्यान्वयन से गुणवत्ता के मानक मजबूत होंगे। सरकार के विभिन्न तकनीकी सहायता और जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से फार्मा उद्योग में गुणवत्ता सुनिश्चित की जा रही है। इसके अलावा भारत ने अंतर्राष्ट्रीय ड्रग रेगुलेटरी अथॉरिटीज (ICDRA) के सम्मेलन की मेजबानी की जिसमें वैश्विक स्वास्थ्य संगठन (WHO) के सदस्य देशों के नियामक प्राधिकरणों ने मिलकर नियामक प्राथमिकताओं पर सहमति बनाई।
नवाचार और अनुसंधान में बढ़ावा
भारत में फार्मा उद्योग नवाचार और अनुसंधान को लेकर भी उत्साहित है। सरकार जल्द ही अनुसंधान और नवाचार कार्यक्रम की घोषणा कर सकती है जो उद्योग में नवाचार को बढ़ावा देगा। अग्रणी कंपनियां अब उच्च-मूल्य वाली दवाओं की श्रेणी में विविधता ला रही हैं और नैफिथ्रोमाइसिन तथा सरोग्लिटाज़र जैसे नए उत्पादों के जरिए अनुसंधान में नए रास्ते खोल रही हैं।
जटिल दवाओं और बायोलॉजिक्स में वृद्धि
भारत का फार्मा उद्योग अब अत्याधुनिक क्षेत्रों में भी अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है। CAR-T सेल थेरेपी, mRNA वैक्सीन्स और जटिल अणुओं जैसे क्षेत्रों में विकास हो रहा है। इन क्षेत्रों में प्रगति से भविष्य में उद्योग को नई दिशा मिल सकती है। इसके अलावा 2025 तक बायोलॉजिक्स के पेटेंट की समाप्ति के साथ भारत के बायोसिमिलर बाजार में महत्वपूर्ण विकास देखने को मिल सकता है।
CDMO का बढ़ता योगदान
भारत के अनुबंध विकास और विनिर्माण संगठन (CDMO) अब बायोलॉजिक्स विनिर्माण के लिए प्रमुख भागीदार बन रहे हैं। इन संगठनों को उनके लागत लाभ मजबूत विनियामक अनुपालन और तकनीकी विशेषज्ञता के कारण वैश्विक बाजार में अपनी जगह बनानी है।
भारत का भविष्य: वैश्विक स्वास्थ्य में अग्रणी भूमिका
भारतीय फार्मा उद्योग के बारे में यह अनुमान लगाया जा रहा है कि 2030 तक इसका आकार वर्तमान 58 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 120-130 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच सकता है। गुणवत्ता, नवाचार और वैश्विक पहुंच की दृष्टि से उठाए गए कदम भारत को फार्मा उद्योग में अपनी पूरी क्षमता को साबित करने में मदद करेंगे। साथ ही भारत की युवा जनसांख्यिकी और डिजिटल प्रतिभा का लाभ उठाते हुए देश आने वाले वर्षों में वैश्विक स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।