Edited By Parminder Kaur,Updated: 03 Nov, 2024 03:52 PM
भारत और सिंगापुर ने सेमीकंडक्टर में सहयोग के लिए एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए हैं। इसके कुछ ही हफ्तों बाद भारत ने अमेरिका के साथ एक संयुक्त सेमीकंडक्टर निर्माण संयंत्र स्थापित करने का समझौता किया। कई देश सेमीकंडक्टर आपूर्ति श्रृंखलाओं को...
नेशनल डेस्क. भारत और सिंगापुर ने सेमीकंडक्टर में सहयोग के लिए एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए हैं। इसके कुछ ही हफ्तों बाद भारत ने अमेरिका के साथ एक संयुक्त सेमीकंडक्टर निर्माण संयंत्र स्थापित करने का समझौता किया। कई देश सेमीकंडक्टर आपूर्ति श्रृंखलाओं को मजबूत करने के लिए प्रयास कर रहे हैं। खासकर जब चिप की आयात लागत बढ़ रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने हमेशा भारत को सेमीकंडक्टर उत्पादन का एक विकल्प के रूप में पेश किया है और उन्होंने 2024 के SEMICON सम्मेलन में चिप निर्माताओं को इसी दिशा में प्रेरित किया।
भारत सेमीकंडक्टर मिशन
भारत सरकार ने दिसंबर 2021 में 76,000 करोड़ के बजट के साथ "भारत सेमीकंडक्टर मिशन" (ISM) शुरू किया। यह पहल निवेश आकर्षित करने और स्थानीय उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए है। इसमें कंपनियों को फैब्रिकेशन यूनिट, परीक्षण सुविधाएं और डिजाइन सेंटर स्थापित करने के लिए उत्पादन और डिजाइन से संबंधित प्रोत्साहन दिए जाते हैं। इस पहल ने अब तक माइक्रोन और टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स जैसी प्रमुख कंपनियों से ₹1.5 ट्रिलियन का निवेश प्राप्त किया है।
बड़ी बात यह है: क्या भारत अपनी सेमीकंडक्टर आत्मनिर्भरता बढ़ा सकेगा और वैश्विक सेमीकंडक्टर मूल्य श्रृंखलाओं में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकेगा?
चिप डिज़ाइन में प्रतिस्पर्धात्मक लाभ
सेमीकंडक्टर मूल्य श्रृंखला चार मुख्य चरणों डिज़ाइन, निर्माण, एटीपी (असेंबली, परीक्षण और पैकेजिंग) और वितरण में बंटी है। चिप डिज़ाइन के क्षेत्र में भारत ने पहले से ही अपनी क्षमता स्थापित की है। भारत में चिप डिज़ाइन के लिए 20% वैश्विक प्रतिभा है, जो ज्यादातर मल्टीनेशनल कंपनियों में कार्यरत हैं। हाल ही में AMD ने बेंगलुरु में अपना सबसे बड़ा डिज़ाइन केंद्र खोला। सरकार ने 100 से अधिक कॉलेजों में इलेक्ट्रॉनिक डिज़ाइन ऑटोमेशन टूल्स लगाने का भी काम किया है।
फैबलेस से फैब की ओर
हालांकि भारत की वर्तमान क्षमताएं "फैबलेस" चिप डिज़ाइन कंपनियों में हैं, लेकिन हाल की सरकारी स्वीकृतियों से संकेत मिलता है कि भारत घरेलू चिप निर्माण फैक्ट्रियां (फैब्स) बनाने की कोशिश कर रहा है। मार्च 2024 में ताइवान की PSMC और टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स द्वारा ढोलेरा में एक नया फैब खोला गया, जो पिछले 30 वर्षों में भारत का पहला फैब है। सरकार इस निवेश का 70% वित्तपोषण कर रही है।
चुनौतियाँ
नए फैब बनाने की प्रक्रिया में कई चुनौतियाँ हैं, खासकर उच्च लागत। एक आधुनिक सेमीकंडक्टर फैब का निर्माण करने में लागत $20 बिलियन से अधिक हो सकती है। फैब निर्माण के लिए लगातार बिजली और विशाल मात्रा में "अल्ट्रा प्योर वाटर" की आवश्यकता होती है। भारत में कुशल श्रमिकों की कमी भी एक बड़ी चुनौती है। 2022 की राष्ट्रीय कौशल विकास निगम की रिपोर्ट में कहा गया है कि सेमीकंडक्टर उद्योग में कुशल कार्यबल की आपूर्ति मांग से कम है।
असेंबली क्षमताओं पर ध्यान
भारत एक त्वरित और व्यवहार्य रणनीति अपना सकता है, जिसमें वह एटीपी (असेंबली, परीक्षण और पैकेजिंग) चरण पर ध्यान केंद्रित करे। एटीपी चरण में सिलिकॉन वाफर्स को तैयार चिप्स में बदलने का काम होता है। यह भारत के लिए प्रवेश करने में अपेक्षाकृत आसान है, क्योंकि इसमें पूंजी की आवश्यकता कम है। भारत ने पहले ही एटीपी क्षेत्र की संभावनाओं को पहचाना है। हाल ही में टाटा ने असम में एक नई असेंबली और परीक्षण सुविधा के लिए ₹27,000 करोड़ का निवेश किया है।
निष्कर्ष
भारत का लक्ष्य सेमीकंडक्टर मूल्य श्रृंखला के सभी चरणों में महारत हासिल करना आसान नहीं है। एक व्यावहारिक रास्ता यह है कि भारत अपनी ताकत को फैबलेस डिज़ाइन और एटीपी सुविधाओं में केंद्रित करे, जबकि साथ ही सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन में भी कदम रखे। चूंकि चिप कई देशों से होकर गुजरती हैं, भारत को इस यात्रा में अकेले नहीं चलना पड़ेगा। सिंगापुर और अमेरिका जैसे देशों के साथ रणनीतिक वैश्विक साझेदारियाँ भारत को सेमीकंडक्टर उद्योग में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनने में मदद करेंगी।