Edited By Rohini Oberoi,Updated: 02 Mar, 2025 02:50 PM
श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने कहा कि भारत ने अपने विकास के महत्वपूर्ण बिंदु को छुआ है और भविष्य में यह अमेरिका और चीन के साथ 2050 तक तीन वैश्विक महाशक्तियों में से एक बनकर उभरेगा। विक्रमसिंघे यह बयान दिल्ली में आयोजित NXT 2025...
नेशनल डेस्क। श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने कहा कि भारत ने अपने विकास के महत्वपूर्ण बिंदु को छुआ है और भविष्य में यह अमेरिका और चीन के साथ 2050 तक तीन वैश्विक महाशक्तियों में से एक बनकर उभरेगा। विक्रमसिंघे यह बयान दिल्ली में आयोजित NXT 2025 कॉन्क्लेव में दे रहे थे जहां उन्होंने भारत के साथ अपने छह दशकों के संबंधों पर भी विचार किया।
भारत की आर्थिक ताकत का विकास
विक्रमसिंघे ने कहा, "भारत अब आर्थिक महाशक्ति बनने के रास्ते पर है। भारत का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) आज करीब 3.5 ट्रिलियन डॉलर है जो 2050 तक 30 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है।" इस विकास से दक्षिण एशिया की समृद्धि में भी बदलाव आएगा जिससे बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका और अन्य देशों के लिए नए अवसर उत्पन्न होंगे। उन्होंने यह भी कहा कि भारत का उदय पूरे क्षेत्र को एक नए युग में प्रवेश दिला सकता है जहां समृद्धि का मार्ग एक साथ मिलकर तय किया जाएगा।
दक्षिण एशिया को अपनी पहचान पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता
हालांकि विक्रमसिंघे ने यह भी कहा कि दक्षिण एशिया को भारत के इस विकास से लाभ उठाने के लिए अपनी पहचान पर पुनर्विचार करना होगा। उन्होंने दक्षिण एशिया शब्द पर सवाल उठाते हुए कहा कि क्षेत्र को नए दृष्टिकोण से सोचना चाहिए जैसा कि आसियान ने किया। उन्होंने उदाहरण के तौर पर बताया कि आसियान देशों ने अपनी एकता और आपसी संबंधों को मजबूती से स्थापित किया जबकि दक्षिण एशिया में यह प्रक्रिया धीमी रही है। विक्रमसिंघे ने यह भी कहा कि दक्षिण एशिया में शासनाध्यक्षों की 2014 के बाद कोई बैठक नहीं हुई है जबकि क्षेत्रीय साझेदारी की आवश्यकता और महत्व बढ़ रहा है।
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एक विस्तारित "ग्रेटर साउथ एशिया" का विचार
विक्रमसिंघे ने एक "ग्रेटर साउथ एशिया" की परिकल्पना की जो वर्तमान सार्क (SAARC) सीमाओं से कहीं अधिक विस्तृत हो। इस क्षेत्र में भारत, गंगा का मैदान, भारतीय प्रायद्वीप, हिमालय, अफगानिस्तान, हिंद महासागर के द्वीप और दक्षिण-पूर्व एशिया के देश शामिल होने चाहिए। उन्होंने कहा कि यह क्षेत्र कभी व्यापारिक मार्गों, धार्मिक आदान-प्रदान और सांस्कृतिक साझेदारी से जुड़ा हुआ था जो आज भी विभिन्न देशों के बीच कायम है।
संस्कृतिक एकीकरण की गहरी जड़ें
विक्रमसिंघे ने यह भी बताया कि सांस्कृतिक एकीकरण पहले से ही इस क्षेत्र में गहरे स्तर पर मौजूद है। उन्होंने श्रीलंका के थेरवाद बौद्ध धर्म के उदाहरण का हवाला देते हुए बताया कि कैसे यह धर्म म्यांमार, थाईलैंड, कंबोडिया, लाओस और वियतनाम में फैला और कैसे ये देश आपस में जुड़े हुए हैं। उन्होंने यह कहा कि यह सांस्कृतिक एकीकरण इस क्षेत्र के लिए एक मजबूत आधार बन सकता है।
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आखिरकार खुद का भविष्य तय करना होगा
विक्रमसिंघे ने क्षेत्रीय देशों से यह अपील की कि वे खुद तय करें कि उनका भविष्य कैसे आकार लिया जाए। "2050 तक दुनिया में केवल तीन वैश्विक शक्तियां होंगी – अमेरिका, चीन और भारत। यह वास्तविकता है। अब समय आ गया है कि हम अपने क्षेत्रीय निर्माण को खुद तय करें और इसे दूसरों के मानदंडों के आधार पर न चलाएं," उन्होंने कहा।
विक्रमसिंघे ने यह निष्कर्ष निकाला कि अब वक्त आ गया है जब दक्षिण एशिया को अपने भविष्य के बारे में नए सिरे से सोचना होगा और इसे सशक्त बनाने की दिशा में कदम उठाने होंगे।
वहीं कहा जा सकता है कि रानिल विक्रमसिंघे की यह भविष्यवाणी और विचार इस बात को स्पष्ट करते हैं कि भारत का विकास न केवल खुद भारत के लिए बल्कि पूरे दक्षिण एशिया के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर हो सकता है। अगर दक्षिण एशिया अपनी पहचान को पुनः परिभाषित करता है और एकजुट होकर आगे बढ़ता है तो क्षेत्र की समृद्धि में बड़ी वृद्धि हो सकती है।