Edited By Anu Malhotra,Updated: 14 Jan, 2025 09:25 AM
भारतीय रुपये की गिरावट थमने का नाम नहीं ले रही है। अंतरबैंक विदेशी मुद्रा बाजार में आज रुपये में बड़ी गिरावट दर्ज की गई। रुपया 57 पैसे टूटकर 86.61 प्रति डॉलर के नए सर्वकालिक निचले स्तर पर बंद हुआ। यह स्थिति करीब दो वर्षों में सबसे बड़ी गिरावट मानी...
नेशनल डेस्क: भारतीय रुपये की गिरावट थमने का नाम नहीं ले रही है। अंतरबैंक विदेशी मुद्रा बाजार में आज रुपये में बड़ी गिरावट दर्ज की गई। रुपया 57 पैसे टूटकर 86.61 प्रति डॉलर के नए सर्वकालिक निचले स्तर पर बंद हुआ। यह स्थिति करीब दो वर्षों में सबसे बड़ी गिरावट मानी जा रही है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि मिड टर्म में रुपया 88 प्रति डॉलर तक गिर सकता है। इस गिरावट की वजहें और इसके प्रभाव पर एक नजर डालते हैं।
मुद्रा की कीमत में उतार-चढ़ाव का गणित
विदेशी मुद्रा बाजार में किसी भी मुद्रा की कीमत उसकी मांग और आपूर्ति के आधार पर तय होती है। जब किसी मुद्रा की मांग बढ़ती है और आपूर्ति सीमित रहती है, तो उसकी कीमत चढ़ जाती है। इसके विपरीत, मांग घटने पर उसकी कीमत गिरती है। वस्तु बाजार और विदेशी मुद्रा बाजार के बीच मुख्य अंतर यह है कि विदेशी मुद्रा बाजार में वस्तुओं की जगह मुद्राओं का लेनदेन होता है।
रुपये में गिरावट के पीछे के कारण
रुपये की मौजूदा कमजोरी का मुख्य कारण भारत से विदेशी निवेशकों द्वारा पूंजी का बड़ा निकास है। वैश्विक निवेशक विभिन्न देशों की मौद्रिक नीतियों में बदलाव के कारण अपने निवेश स्थान बदल रहे हैं। साथ ही, अमेरिकी डॉलर इंडेक्स लगातार मजबूत हो रहा है, जो छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले डॉलर की ताकत को दर्शाता है। यह इंडेक्स 109.01 के स्तर पर पहुंच गया है। इसके अलावा, 10 साल के अमेरिकी बॉन्ड पर यील्ड भी 4.69 प्रतिशत तक बढ़ गई है, जिससे रुपये पर दबाव बढ़ा है।
रुपये में कमजोरी का असर
रुपये की कमजोरी का सीधा असर अर्थव्यवस्था, आम लोगों और व्यापार पर पड़ता है। आयात महंगा हो जाता है, जिससे घरेलू बाजार में वस्तुओं की कीमत बढ़ती है। विशेष रूप से कच्चे तेल का आयात महंगा होने से व्यापार घाटा बढ़ सकता है।
रुपये की गिरावट से विदेश यात्रा, विदेश में पढ़ाई, और आयातित वस्तुओं पर खर्च बढ़ जाता है। दूसरी ओर, निर्यातकों को फायदा होता है, क्योंकि उनके उत्पाद वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धी दामों पर उपलब्ध हो जाते हैं।
रुपये की गिरावट: असर
महंगाई में वृद्धि:
रुपये की कमजोरी के चलते आयातित वस्तुएं महंगी हो रही हैं, जिसका सीधा असर रोजमर्रा की जरूरतों पर पड़ रहा है।
विदेशी शिक्षा और यात्रा:
विदेश में पढ़ाई और यात्रा का खर्च बढ़ जाएगा।
तेल आयात महंगा:
भारत कच्चे तेल का बड़ा आयातक है। कमजोर रुपये के कारण पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ सकती हैं।
निर्यातकों को फायदा:
रुपये की गिरावट से निर्यातकों को लाभ होता है, क्योंकि उनके उत्पाद विदेशी बाजारों में सस्ते हो जाते हैं।