शादी के कार्ड की जगह छिपवा दिए बेटी की तेरहवीं के कार्ड, पिता की हरकत पर सब हैरान

Edited By Mahima,Updated: 11 Dec, 2024 02:44 PM

instead of wedding cards he hid daughter s thirteenth day cards

राजस्थान के ब्यावर में एक पिता ने अपनी जिंदा बेटी के तेरहवीं के कार्ड छपवाए, जब उसने गैर समाज के लड़के से शादी की और अपने माता-पिता को पहचानने से इंकार कर दिया। पिता ने बेटी को मृत मानते हुए पूरे गांव में शोक पत्र बांटे, जिसके बाद यह घटना सोशल...

नेशनल डेस्क: राजस्थान के ब्यावर में एक ऐसी घटना हुई है, जिसने पूरे इलाके को हिला दिया है। एक पिता ने अपनी जिंदा बेटी के तेरहवीं के कार्ड छपवाए, वह भी उसकी शादी के मौके पर। यह घटना न केवल इलाके में चर्चा का विषय बनी, बल्कि सोशल मीडिया पर भी तेज़ी से वायरल हो गई। पिता के इस कदम को देखकर लोग हैरान हैं और उनका व्यवहार समाज के लिए एक बड़ा सवाल बन गया है। 

पूरा मामला: बेटी की शादी और पिता की प्रतिक्रिया
यह घटना ब्यावर शहर के एक छोटे से गांव से सामने आई है, जहां एक पिता ने अपनी बेटी के लिए शोक पत्र छपवाए, जिनमें लिखा था कि "11 दिसंबर को उठावन होगा"। अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसा कैसे हो सकता है? दरअसल, इस पिता की बेटी ने गैर समाज (इंटरकास्ट) के लड़के से शादी की थी और इसके बाद उसने अपने माता-पिता को पहचानने से साफ इंकार कर दिया था। यह घटना एक पारिवारिक विवाद से जुड़ी हुई है, जिसमें भावनाओं, रिश्तों और समाज की अपेक्षाओं का संघर्ष सामने आया।

बेटी ने परिवार से किया अपमान
पिता का कहना है कि उन्होंने अपनी बेटी को बहुत प्यार से पाला और अपनी सारी जिंदगी उसकी पढ़ाई और भलाई के लिए समर्पित कर दी। वह एक साधारण ड्राइवर थे, जिन्होंने अपने बच्चों को बेहतर भविष्य देने के लिए कड़ी मेहनत की। उन्होंने अपनी बेटी को टीचर बनाने का सपना देखा था और उसे इस दिशा में प्रेरित किया था। लेकिन जब उनकी बेटी ने एक गैर समाज के लड़के से शादी करने का फैसला किया, तो वह पूरी तरह से टूट गए। पिता का आरोप था कि बेटी ने न केवल उनके सपनों को तोड़ा, बल्कि उसने परिवार से भी दूरी बना ली। उसने न केवल अपने माता-पिता से बात करना बंद कर दिया, बल्कि उनका नाम तक लेने से इंकार कर दिया। पिता के अनुसार, यह स्थिति इतनी गंभीर हो गई कि वह अपनी बेटी को मृत मानने लगे और उन्होंने पूरी तरह से शोक पत्र छपवाकर पूरे गांव में वितरित कर दिए। इस शोक पत्र में लिखा था कि उनकी बेटी का 11 दिसंबर को उठावन (पश्चिमी संस्कृति में मृत व्यक्ति की विदाई का दिन) होगा।

परिवार से दूर जाने का निर्णय
इस घटना में बेटी की तरफ से भी काफी बयान सामने आए हैं। बेटी का कहना है कि उसने किसी भी गलत फैसले के तहत शादी नहीं की। उसने अपने माता-पिता को बार-बार समझाया, लेकिन जब वह नहीं माने, तो उसने अपने जीवन को स्वतंत्र रूप से जीने का निर्णय लिया। उसकी शादी में परिवार की कोई भागीदारी नहीं थी और उसने उनसे कहा था कि वह उनका कोई रिश्ता नहीं मानती। बेटी का दावा है कि उसके फैसले का परिवार पर कोई असर नहीं होना चाहिए था, लेकिन जब उसके माता-पिता ने उसके साथ इस तरह का व्यवहार किया, तो उसने पूरी तरह से उनसे संपर्क तोड़ लिया। 

एक अजीब और विवादास्पद कदम
पिता के इस कदम ने पूरे इलाके को हिलाकर रख दिया। उन्होंने शोक पत्र छपवाकर न केवल अपनी बेटी को मृत मान लिया, बल्कि उसका सार्वजनिक अपमान भी किया। यह कदम न केवल पारिवारिक रिश्तों की मर्यादा को चुनौती देता है, बल्कि समाज की पारंपरिक धारा के खिलाफ भी है। शोक पत्र में बेटी के नाम के साथ 11 दिसंबर का तारीख लिखा गया था, जिस दिन उनके अनुसार उनकी बेटी का अंतिम संस्कार होना था। कार्ड में यह भी लिखा था कि "11 दिसंबर को उठावन होगा", जिससे यह स्पष्ट होता है कि पिता ने अपनी बेटी को पूरी तरह से मरा हुआ मान लिया था। इस शोक पत्र को सोशल मीडिया पर वायरल होने में देर नहीं लगी। लोग इस कदम को बेहद असंवेदनशील और अत्यधिक भावुक मान रहे हैं। कुछ लोगों ने पिता की स्थिति को समझने की कोशिश की, जबकि अधिकतर ने इसे एक अतिवादी और अमानवीय कदम बताया। 

सोशल मीडिया पर हड़कंप
सोशल मीडिया पर इस घटना ने तेजी से सुर्खियां बटोरीं और लोगों ने इसे लेकर जमकर अपनी प्रतिक्रिया दी। कुछ लोगों ने इसे पारिवारिक रिश्तों में दूरियों की एक बुरी मिसाल बताया, तो वहीं कुछ ने पिता के भावनात्मक कष्ट को समझने की कोशिश की। सोशल मीडिया पर एक बड़े बहस का दौर शुरू हो गया है, जिसमें लोग एक तरफ पिता के अधिकारों की बात कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ बेटी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को महत्त्व दे रहे हैं। 

परिवार, समाज और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बीच संघर्ष
इस घटना ने एक बड़े सामाजिक और पारिवारिक प्रश्न को जन्म दिया है। रिश्तों में प्यार, उम्मीदें और समझदारी महत्वपूर्ण हैं, लेकिन कभी-कभी ये पारिवारिक ढांचे व्यक्तिगत स्वतंत्रता और पसंद के सामने कमजोर हो जाते हैं। एक पिता और बेटी के रिश्ते में असहमति और विवाद होते हैं, लेकिन क्या एक परिवार को इस प्रकार सार्वजनिक रूप से अपमानित करना सही है? क्या समाज के पारंपरिक मानदंडों के खिलाफ जाने पर किसी को इस तरह की प्रतिक्रिया का सामना करना चाहिए? यह घटना इन सभी सवालों का जवाब मांगती है। समाज में, जहां लोग अपनी पसंद और निर्णयों के बारे में खुलकर बात करते हैं, पारिवारिक समझ और समर्थन का बहुत बड़ा महत्व है। इस घटना ने यह साबित कर दिया कि रिश्ते, भले ही परिवार के हों या समाज के, कभी-कभी उस खामोश समझ और संवेदनशीलता की कमी के कारण टूट जाते हैं, जो किसी भी रिश्ते को मजबूत बनाए रखती है। 

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