Edited By Rohini Oberoi,Updated: 23 Jan, 2025 10:25 AM
इंटरनेट अब केवल सूचना और मनोरंजन का साधन नहीं रह गया है बल्कि यह अपराध का मंच भी बनता जा रहा है। हाल ही में हुए एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि इंटरनेट के कारण बच्चों के लिए खतरे की स्थिति बढ़ गई है खासकर ऑनलाइन यौन उत्पीड़न के मामले में। एक...
नेशनल डेस्क। इंटरनेट अब केवल सूचना और मनोरंजन का साधन नहीं रह गया है बल्कि यह अपराध का मंच भी बनता जा रहा है। हाल ही में हुए एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि इंटरनेट के कारण बच्चों के लिए खतरे की स्थिति बढ़ गई है खासकर ऑनलाइन यौन उत्पीड़न के मामले में। एक अध्ययन के अनुसार पिछले साल दुनिया भर में लगभग 12 में से 1 बच्चा ऑनलाइन यौन उत्पीड़न का शिकार हुआ। यह अध्ययन द लैसेट चाइल्ड एंड एडोलसेंट हेल्थ में प्रकाशित हुआ था जो एडिनबर्ग विश्वविद्यालय और चीन कृषि विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया था।
बच्चों के यौन उत्पीड़न के मामलों में वृद्धि
यह अध्ययन 2010 से 2023 तक किए गए 123 अध्ययनों पर आधारित था और इसमें यह पाया गया कि जैसे-जैसे डिजिटल तकनीकी का विस्तार हुआ है और स्मार्टफोन का उपयोग बढ़ा है वैसे-वैसे 18 साल से कम उम्र के बच्चों के यौन शोषण के मामले भी बढ़े हैं। अध्ययन के लीड लेखक डॉ. जियांगमिंग फेंग ने कहा कि विशेषकर विकासशील देशों में यह समस्या और भी विकराल रूप ले रही है जहां अधिकतर मामले रिपोर्ट ही नहीं किए जाते। रिपोर्ट के अनुसार हर सेकेंड में 10 बच्चे ऑनलाइन यौन शोषण और उत्पीड़न का शिकार हो रहे हैं।
मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर असर
शोधकर्ताओं का कहना है कि बच्चों के यौन शोषण के मामले न केवल बच्चों की मानसिक और शारीरिक विकास को प्रभावित करते हैं बल्कि इसका असर उनकी भविष्य की रोजगार संभावनाओं और जीवन प्रत्याशा पर भी पड़ता है। 2024 में चाइल्डगेट के अध्ययन में अनुमान लगाया गया था कि हर साल 30 करोड़ बच्चे यौन उत्पीड़न का शिकार हो रहे हैं।
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इस समस्या को रोका जा सकता है
इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि इसे इंटरनेट के साइड इफेक्ट के रूप में अनिवार्य नहीं माना जा सकता। इस समस्या को सही दिशा में कदम उठाकर रोका जा सकता है जैसा कि अन्य स्वास्थ्य समस्याओं जैसे अस्थमा और मोटापा को रोकने के लिए उपाय किए जाते हैं। यदि इस मुद्दे को गंभीरता से लिया जाए तो इसे भी काबू किया जा सकता है।
इंटरनेट का शिकार वयस्क भी
बच्चों के साथ-साथ इंटरनेट वयस्कों के लिए भी खतरा बनता जा रहा है। एक ताजा अध्ययन में यह सामने आया कि जब वयस्क किसी भावनात्मक संकट से गुजरते हैं जैसे रिश्तों में तनाव या ब्रेकअप तो वे परिवार या दोस्तों की मदद लेने के बजाय इंटरनेट का सहारा लेने लगते हैं। हालांकि यह एक अस्थायी समाधान होता है लेकिन यह उनकी असल भावनात्मक जरूरतों को पूरा नहीं करता। ऐसे मामलों में लोग सोशल मीडिया की लत की ओर बढ़ते हैं जिससे उनका मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है। इससे एक नया व्यवहार फबिंग (फोन का उपयोग करते हुए सामने वाले को अनदेखा करना) विकसित होता है जो अंततः असामाजिक आचरण में बदल जाता है।
यह अध्ययन दिखाता है कि इंटरनेट की बढ़ती लत बच्चों और वयस्कों दोनों के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से हानिकारक साबित हो रही है। हालांकि इसे रोका जा सकता है इसके लिए संगठनों, सरकारों और समाज को मिलकर कदम उठाने होंगे। यदि इस पर सही तरीके से काम किया गया तो इसे नियंत्रित किया जा सकता है और ऑनलाइन सुरक्षा के उपायों को मजबूत किया जा सकता है।