Edited By Mahima,Updated: 21 Nov, 2024 02:19 PM
ISRO प्रमुख एस. सोमनाथ ने बेंगलुरु टेक समिट में कहा कि भारत रॉकेट सेंसर बना सकता है, तो कार सेंसर भी बना सकता है, बशर्ते उत्पादन लागत कम हो। उन्होंने 2020 के अंतरिक्ष क्षेत्र सुधारों की सराहना की और निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए...
नेशनल डेस्क: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के प्रमुख एस. सोमनाथ ने बुधवार को बेंगलुरु टेक समिट 2023 के दौरान कार सेंसर के निर्माण के लिए भारत की क्षमता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि अगर भारत रॉकेट सेंसर का उत्पादन कर सकता है, तो वह कार सेंसर बनाने में भी सक्षम है, बशर्ते घरेलू उत्पादन में लागत घटाने के उपाय किए जाएं। उन्होंने यह भी कहा कि भारत को आयात पर निर्भर रहने के बजाय, घरेलू स्तर पर सेंसर तकनीक के निर्माण को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
भारत के घरेलू सेंसर निर्माण पर जोर
सुमनथ ने बेंगलुरु टेक समिट के दौरान कहा कि भारत ने रॉकेट सेंसर के निर्माण में महत्वपूर्ण निवेश किया है, लेकिन कार सेंसर के निर्माण में उच्च लागत एक बड़ी चुनौती बनकर सामने आई है। उनका मानना है कि कार सेंसर का उत्पादन केवल तब ही व्यवहार्य हो सकता है, जब इसके उत्पादन स्तर को बढ़ाया जाए और लागत को नियंत्रित किया जाए। उन्होंने उद्योग से अधिक सहयोग की आवश्यकता पर बल दिया और कहा कि इस दिशा में शिखर सम्मेलन में प्रस्तुत नीतिगत हस्तक्षेप से समाधान मिल सकता है। उन्होंने कहा, "अगर हम रॉकेट सेंसर बना सकते हैं, तो हम कार सेंसर भी बना सकते हैं। यह जरूरी है कि हम घरेलू विनिर्माण पर अधिक ध्यान केंद्रित करें, ताकि आयात पर निर्भरता कम हो सके।" सोमनाथ ने यह भी बताया कि कार सेंसर के उत्पादन में उच्च लागत के कारण, इसे घरेलू स्तर पर बनाना चुनौतीपूर्ण है, लेकिन यदि उत्पादन को बढ़ाया जाता है, तो लागत में भी कमी लाई जा सकती है और यह एक व्यवहार्य विकल्प बन सकता है।
अंतरिक्ष क्षेत्र सुधारों की सराहना
इस अवसर पर सोमनाथ ने 2020 के अंतरिक्ष क्षेत्र सुधारों और 2023 की अंतरिक्ष नीति की भी सराहना की। उन्होंने कहा कि इन सुधारों ने निजी क्षेत्र के विकास के लिए एक अनुकूल पारिस्थितिकी तंत्र तैयार किया है, जो भारत को अंतरिक्ष क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर एक प्रमुख खिलाड़ी बना सकता है। उन्होंने बताया कि वर्तमान में भारत में पांच कंपनियां उपग्रह बना रही हैं और कई अन्य कंपनियां रॉकेट और उपग्रहों के लिए उप प्रणालियां विकसित करने में अपने प्रयासों को तेज कर रही हैं। सोमनाथ ने कहा, "भारत में अंतरिक्ष क्षेत्र में बहुत रुचि है, और कई लोग चाहते हैं कि भारत में अगला स्पेसएक्स स्थापित हो। यह क्षेत्र निवेश के लिए बहुत उपयुक्त है और इसमें बड़ी संभावनाएं हैं।"
प्रमुख चुनौतियों का सामना
हालांकि, ISRO प्रमुख ने अंतरिक्ष क्षेत्र में कुछ प्रमुख चुनौतियों का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि एक बड़ी चुनौती प्रमुख खिलाड़ियों की कमी है, साथ ही अपस्ट्रीम अंतरिक्ष क्षमताओं में अपर्याप्त निवेश भी एक समस्या है। इस पर उन्होंने कहा कि, "हम डाउनस्ट्रीम क्षमताओं को विकसित करने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, जिससे बाजार में मांग पैदा हो और अपस्ट्रीम निवेश को आकर्षित किया जा सके।" सोमनाथ ने विश्वास जताया कि यह मॉडल देश के लिए लाभकारी साबित होगा, क्योंकि यह न केवल तकनीकी विकास को बढ़ावा देगा, बल्कि भारत के अंतरिक्ष उद्योग में निजी क्षेत्र की भागीदारी को भी सशक्त करेगा।
प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर जोर
ISRO प्रमुख ने यह भी बताया कि ISRO के भीतर विकसित की गई कई प्रौद्योगिकियां अब उद्योगों के लिए उपलब्ध हैं। इन प्रौद्योगिकियों का उपयोग उत्पादों, सेवाओं या सॉफ्टवेयर के रूप में किया जा सकता है, जिससे भारत में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के व्यावसायिक उपयोग को बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने कहा कि तकनीकी हस्तांतरण के माध्यम से उद्योगों को नई दिशा मिलेगी और भारत के निजी क्षेत्र को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने में मदद मिलेगी।
रक्षा और अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण
इस सत्र में रक्षा अनुसंधान विकास संगठन (DRDO) के महानिदेशक बीके दास, संयुक्त राज्य अमेरिका की उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ऐनी न्यूबर्गर और कर्नाटक के आईटी, जैव प्रौद्योगिकी, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री प्रियांक खड़गे ने भी भाग लिया। साथ ही, इलेक्ट्रॉनिक्स, आईटी और जैव प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव एकरूप कौर भी इस महत्वपूर्ण सत्र का हिस्सा बने। इन वक्ताओं ने इस बात पर चर्चा की कि भारत कैसे अंतरिक्ष और रक्षा क्षेत्र में नई प्रौद्योगिकियों को लागू कर सकता है, और किस तरह से अंतरराष्ट्रीय सहयोग से इन क्षेत्रों में विकास को बढ़ावा दिया जा सकता है। उन्होंने यह भी बताया कि भारत के लिए वैश्विक स्तर पर अधिक निवेश आकर्षित करने और तकनीकी विकास को गति देने के लिए एक मजबूत पारिस्थितिकी तंत्र बनाने की आवश्यकता है।
इसरो प्रमुख एस. सोमनाथ का यह बयान देश की तकनीकी क्षमता और भविष्य की दिशा को लेकर उत्साहजनक है। उनका मानना है कि यदि भारत को अपनी अंतरिक्ष और रक्षा प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भर बनाना है, तो उसे घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए उद्योगों के साथ मिलकर काम करना होगा। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि भारत में विकसित तकनीकों को व्यावसायिक रूप से लागू करना और निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देना, देश के समग्र विकास के लिए आवश्यक है।