Edited By Parminder Kaur,Updated: 21 Mar, 2025 12:38 PM

बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि शादी के 8 साल बाद यह जानने के लिए कि पति नपुंसक था या नहीं, मेडिकल जांच की अनुमति नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने माना कि समय के साथ व्यक्ति की शारीरिक स्थिति में बदलाव हो सकता है और इस प्रकार पुराने समय...
नेशनल डेस्क. बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि शादी के 8 साल बाद यह जानने के लिए कि पति नपुंसक था या नहीं, मेडिकल जांच की अनुमति नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने माना कि समय के साथ व्यक्ति की शारीरिक स्थिति में बदलाव हो सकता है और इस प्रकार पुराने समय की जांच को फिर से कराने का कोई औचित्य नहीं होगा। यह टिप्पणी जस्टिस माधव जामदार ने करते हुए फैमिली कोर्ट द्वारा दिए गए पति के फूल बॉडी चेकअप के आदेश को रद्द कर दिया।
यह मामला सतारा के फैमिली कोर्ट से संबंधित है, जहां पत्नी ने पति की नपुंसकता की वजह से विवाह को अमान्य घोषित करने की मांग की थी। फैमिली कोर्ट ने पत्नी की याचिका पर 54 वर्षीय पति की दोबारा चिकित्सकीय जांच का आदेश दिया था। पत्नी का दावा था कि विवाह के समय पति नपुंसक था, जिसके कारण उनका विवाह पूरी तरह से संपन्न नहीं हो सका।
पति ने हाईकोर्ट में दी थी चुनौती
पति ने फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। पति ने कहा कि वर्ष 2019 में पहले ही कोर्ट के आदेश पर जांच की जा चुकी है और अब फिर से जांच कराने की कोई आवश्यकता नहीं है।
फैमिली कोर्ट ने पत्नी की याचिका स्वीकार की थी
दंपती का विवाह 5 जून 2017 को हुआ था, लेकिन दोनों केवल 17 दिन ही एक साथ रहे। शादी के चार महीने बाद पत्नी ने 23 अक्टूबर 2017 को सिविल कोर्ट में हिंदू विवाह अधिनियम के तहत विवाह को अमान्य घोषित करने की याचिका दायर की थी। इसके बाद फैमिली कोर्ट ने पति की मेडिकल जांच का आदेश दिया था। जब रिपोर्ट पर पत्नी के वकील ने डॉक्टर से सवाल किए और डॉक्टर से संतोषजनक उत्तर नहीं मिला, तो पत्नी ने फिर से जांच की मांग की थी, जिसे फैमिली कोर्ट ने स्वीकार कर लिया था।
हाईकोर्ट ने जांच पर चार हफ्ते की रोक लगाई
जस्टिस जामदार ने कहा कि पति की नपुंसकता का पता लगाने के लिए आठ साल बाद फिर से जांच कराना कानूनी रूप से उचित नहीं होगा। पत्नी के वकील ने जस्टिस जामदार से अपने आदेश में चार हफ्ते की रोक लगाने की अपील की, जिसे जस्टिस जामदार ने न्याय के हित में स्वीकार कर लिया। इसके बाद फैमिली कोर्ट की कार्यवाही को चार हफ्ते तक आगे न बढ़ाने का आदेश दिया।